अमेरिकी डॉलर (US Dollar) के मुकाबले रुपया गिरकर नए रिकॉर्ड पर चला गया है। डीलरों का कहना है कि अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिफल में बढ़ोतरी और कच्चे तेल की कीमत में तेजी की वजह से ऐसा हुआ है। सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 83.27 के निचले स्तर पर बंद हुआ। इसके पहले रुपया 7 सितंबर को सबसे निचले स्तर 83.21 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
डीलरों का कहना है कि संभवतः भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये पर उल्लेखनीय दबाव को संज्ञान में लिया है और उसने डॉलर के मुताबिक धीरे-धीरे गिरने दिया है।
कोटक सिक्योरिटीज लिमिटेड में करेंसी डेरिवेटिव्स ऐंड इंटरेस्ट रेट्स डेरिवेटिव्स के वाइस प्रेजिडेंट अनिंद्य बनर्जी ने कहा, ‘कच्चे तेल के दाम गिरने और अमेरिका में प्रतिफल बढ़ने के कारण रुपये में गिरावट हुई।’
बनर्जी ने कहा, ‘आरबीआई ने ज्यादा हस्तक्षेप नहीं किया। वह 20-30 करोड़ अमेरिकी डॉलर बेच सकता था। यहां से डर है कि रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच सकता है।’
रुपया 20 अक्टूबर, 2022 को डॉलर के मुकाबले निचले स्तर 83.29 पर पहुंच गया था। आरबीएल बैंक की अर्थशास्त्री अचला जेठमलानी ने कहा, ‘अगस्त में अनुमान से अधिक कारोबारी घाटा और भारत के इक्विटी बाजार से 1 से 14 सितंबर के दौरान 0.7 अरब डॉलर की निकासी होने के कारण रुपये में गिरावट आई। कच्चे तेल के दाम बढ़ने का असर अमेरिकी डॉलर और भारतीय रुपये की जोड़ी पर भी पड़ा। विदेशी मुद्रा के बाजार में आरबीआई के हस्तक्षेप का असर केंद्रीय बैंक की इस हफ्ते जारी होने वाली मौद्रिक नीतियों और कच्चे तेल के दामों पर पड़ेगा।’
बाजार के एक हिस्से का विश्वास है कि स्थानीय मुद्रा में और गिरावट नहीं होगी। इसका कारण यह है कि डॉलर सूचकांक करीब 105 के उच्च स्तर और यूएस फेडरल रिजर्व की बैठक में ब्याज दरों में बदलाव नहीं होने की उम्मीद है।
यस सिक्योरिटीज इंडिया लिमिटेड के इंस्टीट्यूशनल इक्विटी रिसर्च के रणनीतिकार हितेश जैन के अनुसार, ‘डॉलर के सूचकांक के 105 के शीर्ष स्तर पर पहुंचने के कारण रुपये के आधार को मजबूती मिली। इस धारण से भी भारतीय रुपये को मजबूती मिली कि 20 सितंबर को होने वाली बैठक में ब्याज दरें 99 प्रतिशत यथावत रहेंगी।
हालांकि फेड के नवंबर में होने वाली बैठक में ब्याज दरें 70 प्रतिशत अपरिवर्तित रहने की उम्मीद है। हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि आरबीआई 83-83.5 के स्तर पर हस्तक्षेप कर रहा है। हमें उम्मीद है कि इस हफ्ते भी हस्तक्षेप किया जाएगा और इससे रुपये को मजबूती मिलेगी।’
चालू वित्त वर्ष के दौरान रुपये में 1.3 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। यह बीते वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 23) में 7.8 प्रतिशत गिरा था। चालू कलैंडर साल में रुपये में 0.6 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। सितंबर में स्थानीय मुद्रा में 0.7 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।
मुद्रा में अवमूल्यन कई कारणों से होता है। इन कारणों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का इक्विटी बेचना और डॉलर की होल्डिंग करना भी शामिल है। इसके अलावा तेल कंपनियां भी तेजी से डॉलर खरीद रही हैं ताकि वे तेल के आयात के लिए धन दे सकें। इसने भी रुपये की गिरावट में योगदान दिया है।