दुबई में होने वाले 28वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (COP28) में भारत जलवायु एजेंडा आगे बढ़ाने के साथ कच्चे तेल और जैव ईंधन पर भी चर्चा की तैयारी कर रहा है।
अधिकारियों ने बताया कि कॉप28 में सरकार अपने वैश्विक जैव ईंधन गठजोड़ (जीबीए) को विकासशील देशों के एक बड़े समूह के सामने रखेगी। मगर उस दौरान कच्चे तेल की आपूर्ति पर पश्चिम एशिया के भागीदारों के संग बातचीत की भी उम्मीद है।
कॉप28 शिखर बैठक गुरुवार से दुबई में शुरू होगी और 12 दिसंबर तक चलेगी। यह बैठक तब हो रही है, जब तमाम देशों में इस बात पर मतभेद बढ़ रहा है कि वैश्विक तापमान में 2050 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि नहीं होने देने के लिए तेल एवं गैस की मांग कैसे कम की जाए।
इस बीच वैश्विक तेल उद्योग के तमाम शीर्ष अधिकारी दुबई पहुंचने के लिए तैयार हैं। एक साल से अधिक समय तक रूस से कच्चा तेल खरीदने के बाद भारत पश्चिम एशिया के अपने पुराने व्यापार भागीदारों के साथ नए सिरे से आपूर्ति शुरू करना चाहता है।
मामले की जानकारी रखने वाले विभिन्न लोगों ने बताया कि सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों के शीर्ष अधिकारी भी इस शिखर सम्मेलन के लिए दुबई पहुंचेंगे। इस दौरान वे अन्य प्रमुख वैश्विक तेल कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक करेंगे।
एक अधिकारी ने कहा, ‘ऐसे अंतरराष्ट्रीय आयोजन व्यापार वार्ता के लिए प्रमुख मंच उपलब्ध कराते हैं। यह साल भी अपवाद नहीं है। इसलिए हमारी कंपनियों से अपेक्षा है कि वे सुरक्षित आपूर्ति के लिए नए अवसरों की तलाश में रहें।’
लंदन की कमोडिटी डेटा एनालिटिक्स फर्म वोर्टेक्सा के आकलन से पता चलता है कि सितंबर तक भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 38 फीसदी थी, जो 42 फीसदी की रिकॉर्ड ऊंचाई से कम है। वोर्टेक्सा आयात का हिसाब लगाने के लिए जहाजों की आवाजारी पर नजर रखती है। पिछले कुछ महीनों में भारत के तेल आयात में सऊदी अरब और इराक की हिस्सेदारी बढ़ी है।
तेल एवं गैस जैसे पारंपरिक हाइड्रोकार्बन में निवेश भी जलवायु वार्ता में गतिरोध का बड़ा मसला है। पिछले सप्ताह अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने कहा था कि तेल एवं गैस की आपूर्ति में निवेश अब भी जरूरी है। घटती मांग की भरपाई के लिए आदर्श परिस्थिति में 2030 तक 800 अरब डॉलर सालाना की मौजूदा दर को दोगुना करना होगा।
मगर भारत शायद अपने पुराने रुख पर कायम रहेगा कि कार्बन मुक्त विकल्पों की खोज के साथ तेल एवं गैस संसाधनों के विकास एवं उत्पादन में निवेश की आवश्यकता है। 2023 में वैश्विक तेल मांग में भारत की हिस्सेदारी 5.5 फीसदी रही है, जो अमेरिका की 20 फीसदी और चीन की 16.1 फीसदी हिस्सेदारी से काफी कम है। मगर इसमें तेजी से वृद्धि हो रही है और अगले 5 साल में वह 6.6 फीसदी के पार पहुंच सकती है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने यह भी बताया है कि स्वच्छ ऊर्जा के लिए वैश्विक निवेश में तेल एवं गैस उद्योग की हिस्सेदारी महज 1 फीसदी है और इसमें करीब 60 फीसदी निवेश महज 4 कंपनियों ने किया है। इसलिए निवेश का दायरा बढ़ाने और पूरे क्षेत्र को इसके लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है।