महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलें किसानों को उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) से 20 से 30 रुपये अधिक भुगतान करने पर विचार कर रही है। ये मिलें ऐसा केंद्र द्वारा मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के माध्यम से एफआरपी या वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) से अधिक गन्ना मूल्य के भुगतान पर लंबे समय से लंबित कर भुगतान विवाद का समाधान करने के बाद करने जा रही हैं। यह उन किसानों के लिए एक वरदान है, जो इन सहकारी चीनी मिलों से सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं।
उद्योग के सूत्रों के अनुसार पूरे भारत में मोटे तौर पर लगभग 1.5 करोड़ किसान अपने परिवारों के साथ सहकारी चीनी मिलों पर निर्भर हैं। जिनमें से लगभग 85 लाख यानी 57 प्रतिशत अकेले महाराष्ट्र में हैं। महाराष्ट्र में गन्ना किसान और उनकी भलाई खासकर चुनावों में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा है।
महाराष्ट्र में सहकारी चीनी मिलों द्वारा वर्ष 2020-21 के गन्ना सीज़न (अक्टूबर से सितंबर) में औसत एफआरपी 319 प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान किया गया था, जो सीजन 2021-22 में बढ़कर 324 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। सीजन 2022-23 में महाराष्ट्र में सहकारी चीनी मिलों ने औसतन 333 रुपये प्रति क्विंटल का एफआरपी भुगतान किया।
सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में सहकारी चीनी मिलें औसत एफआरपी से कुछ भी ज्यादा भुगतान करने के मामले में सावधान थी क्योंकि इस बारे में स्पष्टता नहीं थी कि अधिक भुगतान को लाभ या कारोबारी व्यय का वितरण माना जाएगा। लेकिन अब आयकर विभाग द्वारा ऐसे नियम बनाए जाने से, जिनके माध्यम से सहकारी चीनी मिलें व्यवसाय व्यय के रूप में एफआरपी या एसएमपी से अधिक किसानों को भुगतान की गई पिछली गन्ना कीमत का दावा कर सकती हैं।
ऐसे में अब कई मिलें अगले सीज़न से किसानों को निर्धारित एफआरपी पर अतिरिक्त भुगतान शुरू करने पर विचार कर रही हैं। कुछ सप्ताह पहले आयकर विभाग ने नियम बनाए थे जिसके माध्यम से सहकारी चीनी मिलें पिछले (2016-17 आकलन वर्ष से पहले) एसएमपी के गन्ना एफआरपी से अधिक किए गए भुगतान को व्यावसायिक व्यय के रूप में समायोजित कर सकती हैं।
कुछ रिपोर्टों के अनुसार 2016-17 मूल्यांकन वर्ष से पहले किए गए अतिरिक्त भुगतान के मुकदमों के निपटान के माध्यम से लगभग 10,000 करोड़ रुपये का अप्रत्यक्ष लाभ होगा।
नरेंद्र मोदी सरकार ने 2015-16 के बजट में वित्त अधिनियम में किए गए संशोधन में प्रावधान किया था कि एसएमपी पर सहकारी चीनी मिलों द्वारा किए गए अतिरिक्त भुगतान को व्यावसायिक आय की गणना के लिए व्यावसायिक व्यय के रूप में अनुमति दी गई थी। लेकिन यह संशोधन केवल वर्ष 2016-17 से ही लागू था।
संशोधन ने पिछली मांगों का समाधान नहीं किया जो 2016-17 मूल्यांकन वर्ष से काफी पहले हुई थीं। इसके बाद केंद्र सरकार के सामने कई बार यह मामला उद्योग ने उठाया और अंततः गृह मंत्री अमित शाह के तहत बने नए सहकारी मंत्रालय के गठन के बाद यह मामला फोकस में आया।
इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के बजट में इस मामले को खत्म करने की कोशिश की और कटौती का लाभ 2015-16 से पहले शुरू होने वाले सभी वित्तीय वर्षों तक बढ़ा दिया। इनमें से कुछ मांगें 1985 से पहले की हैं। हालांकि मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अभाव में जमीन पर कर अधिकारियों को यह पता नहीं था कि प्रस्ताव को कैसे प्रशासित किया जाए।
आयकर विभाग द्वारा कुछ हफ्ते पहले एक एसओपी जारी करने के बाद इसे भी आखिरकार सुलझा लिया गया, जो अब पिछली व्यावसायिक आय की पुनर्गणना की प्रक्रिया शुरू करेगा।