यूरोपीय यूनियन (EU) के कार्बन शुल्क का शुरुआती चरण रविवार से शुरू हो गया है। इस दौरान कर नहीं चुकाना है। मगर आयातक देशों को कार्बन उत्सर्जन की पूरी जानकारी देना है। इससे छोटे कारोबारी अपनी औद्योगिक वस्तुओं के कारोबार में रुकावट की आशंका को लेकर त्रस्त हैं। दूसरी तरफ इन विनियमन से प्रभावित होने वाली बड़ी कंपनियां ने चिंता जताई। इससे निपटने के लिए बड़ी कंपनियां पहले ही पहल शुरू कर चुकी हैं और वे अधिक तैयार हैं।
कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) सीमेंट, लोहा, एल्युमीनियम, उर्वरक और हाइड्रोजन के ईयू के निर्यात पर 1 अक्टूबर लागू होगा। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव स्टील और एल्युमीनियम क्षेत्रों पर पड़ेगा। हालांकि भारत ईयू को सीमेंट, उर्वरक, हाइड्रोजन और बिजली का निर्यात नहीं करता है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के भारतीय फेडरेशन (एफआईएसएमई) ने सरकार से अनुरोध किया है कि वे लघु और मध्यम उद्यमों को सतत विकास की जरूरतों को अपनाने के लिए हरित पहल अपनाने में मदद करे और ‘संक्रमणकालीन मदद’ के उपबंध मुहैया करवाए। इस क्रम में क्षमता निर्माण, वित्तीय मदद और तकनीकी मदद मुहैया करवाई जा सकती है।
एफआईएसएमई के महासचिव अनिल भारद्वाज ने जोर दिया, ‘भारत को विकासशील देशों के लघु उद्योगों के लिए अलग तौर-तरीके की मांग करने की जरूरत है।’इन उत्पादों का निर्यात करने वाली कंपनियां को आयातकों के समक्ष उत्सर्जन संबंधी आंकड़े मुहैया कराने होंगे और इस चरण पर कोई कर नहीं देना होगा। आयातकों को तिमाही आधार पर सीबीएएम रिपोर्ट मुहैया नहीं कराने या गलत आंकड़े, आंकड़ों को कम करके पेश करने पर दंड लगेगा।
अधिकारियों ने कहा कि वे ईयू के समक्ष कार्बन सीमा शुल्क से संबंधित भारत की चिंताओं को सक्रिय रूप से उजागर कर रहे हैं। हालांकि अभी कोई हल या छूट मिलने की उम्मीद नहीं है।
जेएसडब्ल्यू स्टील की मुख्य कार्याधिकारी व संयुक्त प्रबंध निदेशक जयंत आचार्य ने कहा, ‘इसमें एमआरवी (निरीक्षण, रिपोर्टिंग और प्रमाणीकरण) की प्रक्रिया है। हमने इसकी निगरनी व रिपोर्टिंग के लिए प्रणाली व ऑटोमेशन तैयार कर दिया है और इसकी जांच करने पर लागत भी आएगी।’
जिंदल स्टैनलेस के चीफ सस्टेनेबिल्टी ऑफिसर कल्याण भट्टाचार्जी ने बताया कि सीबीएएम के रिपोर्टिंग दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए 1 जनवरी, 2023 से उत्सर्जन के आंकड़ों को रिकार्ड करना शुरू कर दिया गया है। यह आंकड़े ईयू में हर ग्राहक को मुहैया करवाए जा रहे हैं ताकि वे सीमा शुल्क विभाग से मंजूरी प्राप्त कर सकें।