विश्व बैंक की दक्षिण एशिया की मुख्य अर्थशास्त्री फ्रांजिस्का ओन्सॉर्ज ने कहा कि नवंबर 2022 में चैटजीपीटी के आने के बाद से भारत का कंप्यूटर सेवा निर्यात 30 फीसदी बढ़ गया है, जबकि कुल सेवा निर्यात स्थिर रहा है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और अधिक व्यापार समझौतों पर मुहर लगने की प्रक्रिया ‘विनिर्माण क्षेत्र में पुनर्जागरण’ जैसी स्थिति ला सकती है। उन्होंने इसे भारत के लिए आने वाले वर्षों में दो सबसे बड़े निवेश अवसर भी बताया।
ओन्सॉर्ज ने संकेत दिया कि महामारी के बाद से भारत में निजी निवेश धीमा हुआ है, हालांकि यह अब भी अन्य विकासशील देशों की तुलना में तेज गति से बढ़ रहा है। लेकिन, कमजोर शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह एक चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि भारत का जीडीपी के मुकाबले एफडीआई अनुपात काफी समय से कम है और अन्य उभरते बाजारों की तुलना में यह बहुत नीचे है।
ओन्सॉर्ज ने भारत से व्यापार बाधाओं को कम करने और टैरिफ (आयात शुल्क) घटाने का आग्रह किया ताकि इसकी बाजार पहुंच को जीडीपी के 12 फीसदी से बढ़ाकर लगभग 50 फीसदी तक किया जा सके जैसा कि इसके कई प्रतिद्वंद्वी देशों ने किया है। उन्होंने कहा कि इससे विनिर्माण क्षेत्र में तेजी आ सकती है और भारत के युवाओं को कृषि जैसे कम उत्पादकता वाले कारोबार से निकालकर उन्हें दूसरे क्षेत्रों में अधिक नौकरियां मिल सकती हैं।
अर्थशास्त्री ने अमेरिका के भारतीय माल आयात पर 50 फीसदी टैरिफ का जिक्र करते हुए और भारत द्वारा यूरोपीय संघ (ईयू), कनाडा और अन्य देशों के साथ सुरक्षित व्यापार समझौते करने के प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा, ‘दुनिया बहुत बड़ी है… यदि एक व्यापारिक भागीदार कम सुलभ है, तब व्यापार समझौतों के साथ बाकी साझेदार अधिक सुलभ हो सकते हैं।’
विश्व बैंक की अर्थशास्त्री ने ‘कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन’ के दौरान एक चर्चा में कहा, ‘महामारी के बाद से निजी निवेश की वृद्धि धीमी हुई है। यह अन्य उभरते बाजारों में जो हो रहा है, उसके विपरीत है और सार्वजनिक निवेश में जो ‘अभूतपूर्व तेजी’ आई है, उसके भी उलट है। लेकिन इस मंदी के बावजूद, भारत में निजी निवेश की वृद्धि, अन्य उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक है। यह भारतीय मानकों के लिहाज से धीमा है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मानकों के लिहाज से धीमा नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय मानकों के लिहाज से एफडीआई कमजोर है। मेरे पास एक चार्ट है जिसमें यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि आप अन्य उभरते बाजारों में जीडीपी अनुपात के सभी एफडीआई का इंटरक्वार्टाइल दायरा देखते हैं और फिर आप भारतीय स्तर को बहुत नीचे देखते हैं। ऐसे में समझ आता है कि एफडीआई ही अंतरराष्ट्रीय मानकों के लिहाज से धीमी है।’
उनकी यह टिप्पणी वर्ष 2024-25 में शुद्ध एफडीआई प्रवाह में लगभग 97 प्रतिशत की गिरावट के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं, जिसका आंशिक कारण मौजूदा विदेशी निवेशकों द्वारा बड़े पैमाने पर पैसे वापस निकालना है। ओन्सॉर्ज ने समझाया, ‘संभव है कि वर्तमान में, संयोगवश प्रत्यावर्तन (किसी व्यक्ति या वस्तु की मूल देश में वापसी, विदेशी मुद्रा का देश की मुद्रा में परिवर्तित होना) की रफ्तार बढ़ी हो लेकिन यह एक बड़ा संयोग है। प्रत्यावर्तन, सकल एफडीआई प्रवाह की भरपाई करता है। लेकिन मैंने शुद्ध प्रवाह को देखा है और तर्क यह है कि कम सकल एफडीआई या अधिक धन वापसी के संकेत निवेशक के आत्मविश्वास को लेकर समान हैं।’
जब उनसे पूछा गया कि क्या विदेशी निवेशक घरेलू निजी निवेश की धीमी गति से कोई संकेत ले रहे होंगे, तब उन्होंने कहा, ‘मैं मानूंगी कि कुछ संबंध है लेकिन मैंने इस पर गौर नहीं किया है। मैं बस इतना जानती हूं कि ऐतिहासिक रूप से, दो साल पहले भी यह (एफडीआई प्रवाह) कम था। यह हमेशा उभरते बाजारों के सबसे निचले चतुर्थांश में था। संभव है कि अब यह और भी कम हो गया हो।’
एफडीआई व्यापार योग्य क्षेत्रों में आता है ऐसे में ओन्सॉर्ज ने इसे भारत की वस्तुओं के निर्यात में मौके से जोड़ा, जो ‘असाधारण रूप से कम’ है। इसका एक कारण मध्यवर्ती वस्तुओं पर उच्च आयात शुल्क है। उन्होंने कहा, ‘जब लोग भारत के व्यापार- जीडीपी अनुपात के कम होने की बात करते हैं तब यह वास्तव में वस्तुओं के निर्यात का प्रतिबिंब है न कि सेवा निर्यात का, जो असाधारण रूप से अधिक है और एक सफलता की कहानी है़।’
उन्होंने टिप्पणी की, ‘हर किसी के दिमाग में बड़ा टैरिफ आंकड़ा होता है, लेकिन लोग यह ध्यान नहीं देते हैं कि इसका मतलब मध्यवर्ती वस्तुओं पर टैरिफ है जो अन्य जगहों की तुलना में दोगुना है। अन्य उद्योगों में, आप कृषि क्षेत्र की तरह मध्यवर्ती वस्तुओं को लोगों से बदल सकते हैं। आप विनिर्माण क्षेत्र में ऐसा नहीं कर सकते, जिसे मध्यवर्ती इनपुट पर टैरिफ से वास्तव में नुकसान होता है। ऐसे में यदि इन्हें कम किया जा सकता है और आदर्श रूप से एक व्यापक व्यापार समझौते में शामिल किया जा सकता है जो टैरिफ से कहीं आगे जाता है तब भारत में एक वास्तविक विनिर्माण पुनर्जागरण वाली स्थिति बन सकती है।
उन्होंने निष्कर्ष निकाला, ‘यदि आप उन व्यापारिक साझेदारों को देखें जिनके साथ अन्य देशों के व्यापार समझौते हैं जैसे कि मेक्सिको, वियतनाम के लिए तो उनकी बाजार पहुंच जीडीपी के 50 फीसदी जितनी है। यह बहुत अधिक है। वर्ष 2023 तक के आंकड़ों के अनुसार, भारत के लिए यह जीडीपी का 12 फीसदी है। इसलिए, यदि ब्रिटेन समझौता, यूरोपीय संघ समझौता, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा और संभवतः अमेरिका का समझौता वास्तव में होता है तब भारत की बाजार पहुंच भी जीडीपी के 50 फीसदी तक हो सकती है। यह वह चीज है जो वास्तव में विनिर्माण क्षेत्र में एक पुनर्जागरण जैसी स्थिति बना सकता है।’
भारत एआई से लाभ उठाने के लिए अच्छी स्थिति में है इसीलिए उन्होंने सेवा निर्यात और बीपीओ क्षेत्र में इसके तेज अपनाने की ओर इशारा किया। उन्होंने टिप्पणी की, ‘चैटजीपीटी (नवंबर 2022 में) के जारी होने के बाद से बीपीओ क्षेत्र में 12 फीसदी नौकरी के लिए एआई कौशल की आवश्यकता है और यह चैटजीपीटी के जारी होने से पहले की तुलना में दोगुना है और अन्य क्षेत्रों की तुलना में तीन गुना है। बीपीओ क्षेत्र वास्तव में इसे उत्साहपूर्वक अपना रहा है और कंप्यूटर सेवा निर्यात में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि कुल सेवा निर्यात बस स्थिर रहा है।’
ओन्सॉर्ज ने निष्कर्ष निकाला, ‘ऐसा लगता है कि चैटजीपीटी के जारी होने के बाद से जो कुछ भी हो रहा है उसके कारण विशेष रूप से कंप्यूटर सेवा निर्यात लाभान्वित हो रहा है। ऐसे में यह सेवा निर्यात पक्ष में निवेश का अच्छा अवसर है। वह क्षेत्र फलफूल रहा है।’