आप यह नहीं कह सकते कि सुनील ग्रोवर बेहद दिलचस्प वक्ता हैं। लेकिन अगर आप उन्हें माइक्रोफोन थमा दें और उन्हें सुदर्शन नहीं बल्कि 'सुड' कहें, तो उसके बाद देखिए उनका कमाल और फिर हंसी के फुहारे का आप भी मजा ले सकते हैं।
जी हां, जिस आवाज में चुटकुले सुनने का सबको इंतजार होता है उस 'सुड' की आवाज आप रेडियो मिर्ची के देशभर में 22 रेडियो स्टेशनों पर अक्सर सुन सकते हैं। बेहद मामूली आवाज में थोडे नाटकीय अंदाज से सुड अपनी किताब 'हंसी के फुहारे' से कई ऐसे चुटकुले आपको सुनाते है कि आप हंसते-हंसते लोट पोट हो सकते हैं।
सुड के हंसी के फुहारे का प्रसारण लगभग 8 महीने पहले रेडियो पर प्रसारित किया गया जो उस वक्त रेडियो मिर्ची के लिए हंसी का सबसे मशहूर फार्मूला बन गया। अगर आप दिल्ली में रेडियो मिर्ची का सुबह का शो सुन रहे हैं तो आप रेडियो जॉकी अनंत और सौरभ की कोशिशों पर भी गौर कर सकते हैं। वे दोनों भी अपने श्रोताओं को हंसाने की भरपूर कोशिश करते हैं।
रेडियो मिर्ची पर शाम में नावेद लेकर आते हैं 'सनसेट समोसा', जो सुनने वालों का पसंदीदा शो है। हालांकि नावेद इससे भी ज्यादा मशहूर है 'मिर्ची मुर्गा' के लिए, जिसमें वे श्रोताओं को अपने गंभीर मजाक से हैरान कर देते हैं। आप यह मान सकते हैं कि रेडियो मिर्ची अपनी टैगलाइन के मुताबिक ही दिल्ली को हंसी से भिगोने की पूरी तैयारी से हरदम लैस रहता है।
दिल्ली में मिर्ची की प्रोग्रामिंग प्रमुख सपना राना का कहना है, 'हम एक बेहद सफल चैनल साबित हो रहे है और यह माना जा सकता है कि दिल्ली में ही हमें ज्यादा प्रतियोगिता करनी होती है। यह भी सच है कि हम आपको इतना नहीं हंसा सकते कि आप हंसते-हंसते जमीन पर गिर जाएं, लेकिन हम आपके चेहरे पर मुस्कुराहट जरूर बिखेर सकते हैं।'
अगर आपने सुनील ग्रोवर उर्फ सुड से शाहरुख खान की नकल के अंदाज में 'क्या आप पांचवी फेल चंपू है' सुना होगा तो आपको जरूर हंसी आई होगी। चंडीगढ़ से थियेटर की पढ़ाई करने वाले सुनील ग्रोवर कहते हैं, 'मुझे सुड को सुनकर बहुत मजा आता है, हंसी के लिए यह मेरा सबसे पसंदीदा काम है।'
हालांकि सबके चेहरे पर हंसी लाने वाले सुड को थियेटर की पढ़ाई करने के दौरान कालीदास, हेमलेट और ओडिपस जैसे चरित्रों के लिए भी अभिनय करना पड़ा था। वह हंसते हुए कहते हैं, 'दरअसल हंसी के फुहारे नाम की कोई किताब नहीं है, मैं जो अलग टोन में चुटकुले सुनाता हूं वह तो हमारी प्रोग्रामिंग टीम तय करती है।'
मुल्क में प्राइवेट एफएम चैनलों के इतिहास पर नजर डालें तो उन्होंने खुद को श्रोताओं के लिए हास्य का जरिया बनाने की भरपूर कोशिशें कीं। रेडियो सिटी पर हंसी के ये कार्यक्रम 'बब्बर शेर' के नाम से प्रसारित होना शुरू हुआ जो उर्दू शेरो-शायरी की महफिल से काफी हद तक प्रेरित था।
रेडियो सिटी के एक्जीक्युटिव वाइस प्रेसीडेंट और नैशनल प्रोग्रामिंग हेड राना बरुआ का कहना है, 'यह कहा जा सकता है यह अब तक का सबसे बेहतर मजाकिया फीचर था, क्योंकि इसका अंदाज बेहद अनूठा था और इससे आपको सचमुच किसी महफिल में शामिल होने का अहसास होता था।'
अनिल धीरुभाई अंबानी समूह का बिग एफएम फिलहाल रेडियो कारोबार में अभी बिल्कुल नया है। हालांकि इसने मुंबई रेडियो स्टेशन में हास्य को अपने 'बिग' अंदाज में ही पेश करके अलग छाप छोड़ी है। बिग एफएम के प्रोग्रामिंग प्रमुख निरुपम सोनु का कहना है, 'हमारे पास सुनील ग्रोवर थे। इसके अलावा लाफ्टर चैलेंज चैपिंयन सुनील पॉल और राजू श्रीवास्तव भी हैं जो हमारे शो की रौनक बढ़ाते हैं।
कभी-कभी शेखर सुमन भी हमारे शो के रेडियो जॉकी होते हैं।' उनका कहना है कि मुंबई स्टेशन में हमारी कोशिश अपने शो को ज्यादा मनोरंजक बनाने की होती है। सोनू का ऐसा मानना है कि ऐसे शो की वजह से ही चैनल की सफलता तय होती है। मुंबई बाजार में बिग एफएम को रेड एफएम के साथ कड़ी प्रतियोगिता मिल रही है। अब प्राइम टाइम शो में उनकी कोशिश फिर से राजू श्रीवास्तव को पेश करने की है।
दिल्ली में रेड एफएम भी अपने हास्य कार्यक्रमों को पेश करने में किसी से पीछे नहीं है। उसका एक हास्य कार्यक्रम 'शर्मा जी से पूछो' काफी मशहूर है जहां हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा अपने अनोखे अंदाज में अपने श्रोताओं के सवालों का जवाब देते हैं। यह चैनल कॉमेडी नंबर वन कार्यक्रम का प्रसारण भी सुरेश मेनन और जोस के साथ करता है। दिल्ली में इस चैनल के आरजे खुराफाती नितिन भी खासे मशहूर हैं।
हालांकि अनंत और सौरभ की तरह नितिन का नाम लेते ही उन्हें एकदम रेडियो के साथ जोड़ा नहीं जा सकता, लेकिन दिल्ली के श्रोता उनके हास्य के अलग अंदाज से खुद को जोड़ लेते हैं। जहां तक प्रोग्रामिंग में हास्य की बात की जाए तो एफएम पर अब भी 80 से 90 फीसदी हिस्सा संगीत का ही है।
हालांकि रेडियो मिर्ची के चीफ प्रोग्रामिंग ऑफिसर तपस सेन का कहना है, 'रेडियो पर हंसी का एपीसोड जारी होने से ही श्रोताओं का आकर्षण बढता है। हालांकि यह सबसे सशक्त माध्यम होने के साथ ही बेहद मुश्किल जरिया भी कहा जा सकता है अपनी हास्य प्रतिभा को पेश करने का।'
रेड एफएम के सीओओ अब्राहम थॉमस इस बात पर सहमति जताते है कि टीवी या प्रिंट के मुकाबले रेडियो पर हास्य कार्यक्रम को पेश करना बेहद मुश्किल है। रेडियो में आप हास्य को दिखा कर पेश नहीं कर सकते। यह पूरी तरह से स्क्रिप्ट और किसी भी चुटकुले को बेहतर तरीके से सुनाने की काबिलियत पर निर्भर करता है।