दुनिया भर के शेयर बाजार ताबड़तोड ग़िर रहे हैं ऐसे में जाहिर है इक्विटी आधारित म्युचुअल फंडों की हाल बेहतर नहीं रह सकती। इक्विटी के डाइवर्सिफाइड फंड हों या बैलेन्स्ड इस बाजार में धक्के खा रहे हैं।
ऐसे में निवेशकों ने भी धीरे धीरे इक्विटी से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। हालत यह है कि कुछ फंड हाउसों की एनएफओ में इक्विटी स्कीमें 100 करोड़ रु भी नहीं जुटा पाई हैं। इन फंड हाउस में मिरे असेट और मॉर्गेन स्टेनली जैसे बड़े फंड हाउस भी शामिल हैं। ऐसे में कमोडिटी के चढ़ते सूरज को निवेशक सलाम करना शुरू कर रहे हैं और यह उनकी पसंद बन रही है।
कई फंड हाउस तो इस बदलते गणित को भांप कर अब ज्यादा ध्यान कमोडिटी आधारित फंडों पर दे रहे हैं। मिरे असेट ने हाल ही में अपना कमोडिटी आधारित फंड ग्लोबल कमोडिटी स्टॉक फंड लांच किया है। एचएसबीसी और आईएनजी ने भी कमोडिटी आधारित फंड लाने के लिए अर्जी दे रखी है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि कमोडिटी में केवल गोल्ड फंडों ने ही बेहतर रिटर्न दिए हैं और जिन फंडों ने बाकी कमोडिटी में निवेश किया है वे भी कमोबेश धक्के ही खा रहे हैं। एसबीआई मैगनम कॉमो फंड भी ऐसा ही एक फंड है।
हालांकि जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी बाजार में निवेश के लिए फंड उतारे हैं उन्होंने बेहतर कमाई की है। क्रिसिल में फंड सर्विस और फिक्सड इनकम के प्रमुख कृष्णन सीतारामन का कहना है कि जब इक्विटी आधारित स्कीमें बेहतर प्रदर्शन नहीं करती हैं तो फंड हाउस धातुओं, कृषि उत्पादों और विज्ञान-प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियों में पैसा लगाना पसंद करते हैं। इन स्कीमों के प्रदर्शन ने फंड हाउस केसाथ निवेशकों को भी अच्छा रिटर्न दिया है।
पिछले छह महीनों के आंकड़े देखें तो जहां बडे फ़ंड हाउसों की इक्विटी आधारित स्कीमों ने निगेटिव रिटर्न दिया है वहीं कमोडिटी आधारित (खासकर सोना)फंडों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। चूंकि फंड हाउस कमोडिटी में सीधे निवेश नहीं कर सकते हैं इसलिए फंड हाउस ऐसी कंपनियों में निवेश करते हैं जो कमोडिटी या कमोडिटी आधारित कारोबार से जुड़ी होती हैं।