जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में एक बार इस्तेमाल वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध रूप से खत्म करने का आह्वान किया था तब जगदीश भाटिया के लिए नई संभावनाओं का आगाज हो रहा था। उन्होंने 'नो प्लास्टिक शॉप' की स्थापना की, जो पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बेचने वाली वेबसाइट है जहां मुख्य रूप से कॉटन बैग की थोक और खुदरा बिक्री की जाती है। जब कोविड ने दस्तक दी और कपास की कीमतें बढ़ गईं तो कारोबार पर बहुत असर पड़ा। लेकिन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 के प्रभावी होने और पिछले 10 महीने से कॉन्फ्रेंस फिर से शुरू करने की वजह से कॉरपोरेट जगत से पूछताछ बढ़ी है। भाटिया अब वित्त वर्ष 2023 में बिक्री में 200 प्रतिशत की तेजी की उम्मीद कर रहे हैं। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 पिछले साल 30 सितंबर से प्रभावी हुआ जिसमें 75 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक कैरी बैग के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब 31 दिसंबर, 2022 से यह मानक बढ़कर 120 माइक्रोन हो जाएगा और कॉटन और जूट बैग निर्माता इस मौके के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। भाटिया की आपूर्तिकर्ता कंपनी, सेकावती इम्पेक्स, कपास बैग के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक है लेकिन यह बड़े पैमाने पर निर्यात बाजार पर दांव लगाती है। सेकावती के अध्यक्ष दिनेश गुप्ता ने कहा, ‘हम जल्द ही घरेलू बाजार में प्रवेश की बड़ी योजना के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं। अभी हम घरेलू बाजार में बड़ी मात्रा में कारोबार नहीं कर रहे हैं। लेकिन हम बड़ी कंपनियों और खुदरा श्रृंखलाओं को लक्षित करेंगे।’ सेकावती इम्पैक्स की स्थापना 1991 में की गई थी और यह अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और जापान में आपूर्ति करती है। पिछले पांच साल में इसने 50 लाख बैग के उत्पादन को दोगुना कर 1 करोड़ तक कर दिया है। कपास का अधिक महंगा विकल्प जूट भी निर्यात बाजार में बड़ी पैठ बनाने के बाद घरेलू बाजार में अपनी जगह बनाने के लिए मुकाबला कर रहा है। भारतीय जूट मिल संगठन (आईजेएमए) ने कपड़ा मंत्रालय एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के सामने प्रेजेंटेशन दिया है। आईजेएमए के अध्यक्ष राघव गुप्ता ने कहा, ‘हम मंत्रालय को एक अखिल भारतीय अभियान ‘ब्रिंग योग ओन बैग’ (बीवाईओबी) चलाने का प्रस्ताव दे रहे हैं। ग्राहकों के बीच जूट बैग की शुरुआत करने और इस तरह के रुझान को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख खुदरा विक्रेताओं, जूट उद्योग और भारत सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय व्यवस्था बनाई जा सकती है।’ बीवाईओबी अभियान टेस्को जैसे वैश्विक खुदरा विक्रेताओं के अभियान के ही समान जो कई सालों से चल रहा है। जूट उद्योग और सरकार के बीच इस अभियान से जुड़ी चर्चा पहली बार 2019 में शुरू हुई थी लेकिन इस पर आगे कोई बात नहीं बनी। अब इसके लिए नया मैदान तैयार किया जा रहा है। हालांकि प्लास्टिक के विकल्प के लिए अवसर केवल कैरी बैग तक ही सीमित नहीं है। इसमें 100 माइक्रोन से कम,कई वस्तुओं की सूची शामिल है जिन पर 1 जुलाई, 2022 से ही प्रतिबंध लगा दिया गया है मसलन प्लास्टिक स्टिक वाले ईयर बड्स, गुब्बारे के लिए प्लास्टिक स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक्स, आइसक्रीम स्टिक्स, सजावट के लिए पॉलिस्टीरीन (थर्मोकोल), प्लास्टिक प्लेटें, कप, गिलास, कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू, ट्रे, मिठाई बक्से का पैकिंग वाली पन्नी, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट के पैकेट, प्लास्टिक या पीवीसी बैनर आदि। इसकी वजह से विविध वस्तुएं बनाने वाले समूह, मसलन आईटीसी के लिए भी संभावनाएं तैयार की हैं। आईटीसी का पेपरबोर्ड डिवीजन कुछ समय के लिए प्लास्टिक के विकल्प के लिए तैयारी कर रहा था और अब त्वरित सेवाएं देने वाले रेस्तरां, व्यक्तिगत देखभाल और पैकेट वाले खाद्य पदार्थों से जुड़े उद्योगों के लिए पैकेजिंग समाधान दे रहा है। सूत्रों ने संकेत दिया कि निर्यात का दायरा बड़ा रहा है बाजार में वहीं घरेलू बाजार में भी मांग बढ़ रही है।निर्यात में तेजी भारत में प्लास्टिक के विकल्प की मांग अभी भी शुरुआती अवस्था में है। लेकिन दुनिया भर के देश कुछ समय से प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं, चाहे वह जरिया कपास, जूट या बेहतर पेपरबोर्ड हो और भारतीय खिलाड़ी इसका सबसे अधिक लाभ उठा रहे हैं। इस पर विचार करें। आईजेएमए के आंकड़ों से पता चला है कि वर्ष 2015-2016 में जूट हैंड बैग / शॉपिंग बैग का निर्यात 321.61 करोड़ रुपये था जो 2021-2022 में बढ़कर 820.36 करोड़ रुपये हो गया था। मात्रा के लिहाज से यह इस अवधि के दौरान लगभग 4.7 करोड़ बैग से बढ़कर 10.4 करोड़ बैग तक चला गया। जूट मिलों के बारे में कहा जाने लगा था कि अब ये बंद होने वाले उद्योगों में शुमार होगा लेकिन इसे एक बार फिर से टेस्को, मुजी, लिडल, एल्डी, एस्डा जैसे प्रमुख विदेशी खुदरा विक्रेता भारत से बैग ले रहे हैं जिसकी वजह से इस उद्योग को नया जीवनदान मिला है। मांग पूरी करने के लिए मिलें क्षमता बढ़ा रही हैं। बिड़ला कॉरपोरेशन की एक इकाई, बिड़ला जूट मिल्स के अध्यक्ष जी आर वर्मा कहते हैं, ‘पिछले साल, हमने 27 लाख बैग का निर्यात किया था और इस साल, मुझे 50 लाख बैग की उम्मीद है।’ बिड़ला कॉरपोरेशन यूरोप, अमेरिका, चीन और जापान को आपूर्ति करता है। ग्लोस्टर एक मिल बना रही है जो पिछले दशक में संगठित क्षेत्र में उतरने वाली आखिरी नई कंपनी थी। ग्लोस्टर के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत बांगड़ ने कहा, ‘हमने एक नई मिल लगाने का फैसला किया क्योंकि हम निर्यात ऑर्डर छोड़ने के लिए मजबूर किए गए थे। वैश्विक स्तर पर, जहां भी व्यावसायिक रूप से व्यवहारिक रहा है वहां प्लास्टिक से बदलाव का एक स्पष्ट रुझान दिखा है।’ नई मिल तीन वर्षों में पूरी तरह से चालू हो जाएगी और इससे क्षमता 50,000 टन से बढ़कर 80,000 टन हो जाएगी। सेकावती इम्पेक्स कपास के थैलों की बढ़ती मांग को भुनाने के लिए अगले दो वर्षों में उत्पादन दोगुना करने की योजना बना रही है।कीमत है कारक भारत में प्लास्टिक के विकल्पों के इस्तेमाल में तेजी की उम्मीद है जिसमें कीमतों की अहम भूमिका होगी। क्रिसिल रिसर्च के निदेशक पुषाण शर्मा ने कहा, ‘मूल्य निर्धारण के मामले में कागज,प्लास्टिक पैकेजिंग की तुलना में अगला सबसे सस्ता विकल्प है और अधिकांश विकल्पों में कांच की कीमत काफी अधिक है। जूट और कपास की कीमत अब भी कागज की तुलना में अधिक है और इसलिए ज्यादातर मामलों में कागज की तुलना में इसे कम कम पसंद किया जाता है।’ बिड़ला जूट के वर्मा ने बताया कि विदेशी बाजार में जूट के थैलों की पैठ काफी बढ़ी है। उन्होंने कहा, ‘भारत में भी ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तब इसका एकमात्र कारण लागत होगी।’
