वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की बुधवार को समाप्त हुई 47वीं बैठक शायद नयी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के क्रियान्वयन के बाद की सबसे महत्त्वपूर्ण बैठक थी। यह बैठक न केवल क्रियान्वयन के पांच वर्ष पूरे होने के अवसर पर हुई बल्कि इस बैठक का एजेंडा भी बहुत व्यापक था। फिलहाल यह दलील देना उचित होगा कि यह व्यवस्था अपेक्षाओं के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी है। राजस्व संग्रह के मोर्चे पर भी प्रदर्शन कमजोर रहा है, जिससे राजकोषीय तनाव कम हुआ है जबकि व्यवस्था ढांचागत दिक्कतों से दो-चार होती रही है। उदाहरण के लिए दरों की बहुलता और अनुपालन में कठिनाई। हालांकि बीते कई महीनों में संग्रह में सुधार हुआ है लेकिन उम्मीद यह थी कि चंडीगढ़ में आयोजित बैठक में इनमें से कुछ ढांचागत मुद्दों पर चर्चा होगी। इस संदर्भ में परिषद ने चार मंत्री समूह गठित किए हैं जो विभिन्न मसलों पर ध्यान देंगे। परिषद ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज एस बोम्मई की अध्यक्षता वाले उस मंत्री समूह की वह रिपोर्ट स्वीकार कर ली है जो रियायतों और उलट शुल्क ढांचे में सुधार से संबंधित थी। आशा तो यह भी थी कि समूह दरों को तार्किक बनाने के बारे में निर्णय करेगा। इसके लिए उसे पहले ही अवधि विस्तार दिया गया था। दरों को तार्किक बनाना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मौजूदा समग्र दर जीएसटी में समाहित करों की तुलना में राजस्व प्रतिपूर्तिकारक नहीं है। राजस्व संग्रह में कमी की यह भी एक बड़ी वजह रही है। समूह ने रियायतों और शुल्क ढांचे में सुधार को लेकर जो अनुशंसाएं कीं उन्हें भी स्वीकार कर लिया गया। इससे भी संग्रह में सुधार होना चाहिए। परिषद ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार की अध्यक्षता वाले मंत्री समूह की अनुशंसाओं को भी स्वीकार किया। समूह ने अन्य बातों के अलावा यह कहा है कि उच्च जोखिम वाले करदाताओं की बेहतर ट्रैकिंग की जाए। मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनार्ड संगमा की अध्यक्षता वाला मंत्री समूह ऑनलाइन गेमिंग, कसीनो तथा घुड़दौड़ आदि से संबंधित था और उसने कुछ राज्यों द्वारा जतायी गई चिंताओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है। बहरहाल, कुछ राज्यों के लिए सबसे बड़ी चिंता थी क्षतिपूर्ति की व्यवस्था का समाप्त होना। राज्यों को जीएसटी संग्रह में होने वाली कमी की भरपाई की जा रही थी और इसके लिए राजस्व में 14 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया था। पांच वर्ष पूरे होने के साथ ही यह क्षतिपूर्ति बंद की जा रही है। जैसा कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैठक के बाद के संवाददाता सम्मेलन में कहा भी, कई राज्यों ने क्षतिपूर्ति भुगतान बढ़ाने के पक्ष में भी दलील दी है। उनका कहना है कि कठिन समय में ऐसा किया जाना चाहिए। बैठक में इस विषय में कोई निर्णय नहीं लिया गया। सरकार ने पहले ही क्षतिपूर्ति उपकर का संग्रह बढ़ा दिया है। इसका इस्तेमाल उस कर्ज को चुकाने में किया जाएगा जो बीते दो वर्षों में कम उपकर संग्रह के कारण राज्यों को क्षतिपूर्ति चुकाने में किया गया। क्षतिपूर्ति भुगतान बढ़ाना वास्तव में जटिल होगा। कानून में संशोधन के अलावा इसके लिए परिषद को यह भी तय करना होगा कि राज्यों को किस वृद्धि दर के हिसाब से क्षतिपूर्ति दी जाएगी। स्पष्ट है कि 14 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि दर व्यावहारिक नहीं थी। इसके अलावा एक नयी व्यवस्था भी तलाश करनी होगी जिसके माध्यम से राज्यों को क्षतिपूर्ति की जाएगी क्योंकि क्षतिपूर्ति उपकर संग्रह का इस्तेमाल उस कर्ज को चुकाने में किया जाएगा जो गत दो वर्षों में राज्यों को भुगतान के लिए लिया गया। अतिरिक्त उपकर लगाने से कर ढांचा और जटिल हो सकता है। ऐसे में क्षतिपूर्ति की व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है और यह मामला अब तक निपट जाना चाहिए था। जैसी कि संभावना भी है, अगर क्षतिपूर्ति नहीं बढ़ायी गई तो दरों को तार्किक बनाने संबंधी अनुशंसाएं और महत्त्वपूर्ण हो जाएंगी। कम स्लैब के साथ राजस्व प्रतिपूर्ति दर हासिल करने से केंद्र और राज्य दोनों का राजस्व बढ़ाने में मदद मिलेगी।
