मुद्रास्फीति की आशंकाओं से चिंतित है बाजार | सुंदर सेतुरामन / May 16, 2022 | | | | |
बीएस बातचीत
अपनी बैलेंस शीट में नरमी लाने के अमेरिकी फेडरल के निर्णय के बीच इस साल बाजारों में बड़ी गिरावट आई है। वेलेंटिस एडवायजर्स के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक ज्योतिवद्र्घन जयपुरिया ने सुंदर सेतुरामन के साथ बातचीत में कहा कि भविष्य में प्रतिफल मूल्यांकन में बदलाव के बजाय आय वृद्घि पर केंद्रित रहेगा। उन्होंने कहा कि विदेशी पूंजी प्रवाह उभरते बाजारों (ईएम) में कमजोर प्रदर्शन वाले बाजारों से बाहर जा सकता है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
सख्त मौद्रिक व्यवस्था से इक्विटी बाजारों पर कितना प्रभाव पड़ेगा?
कोविड-19 के बाद इक्विटी बाजारों में तेजी को कुछ हद तक वैश्विक केंद्रीय बैंकों, खासकर फेडरल रिजर्व द्वारा बढ़ावा मिला, क्योंकि वहां व्यवस्था में नकदी डाले जाने पर बड़ा जोर दिया गया। फेड की बैलेंस शीट करीब 4.5 लाख करोड़ डॉलर (महामारी से पूर्व) से बढ़कर 9 लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच गई। चूंकि फेड की बैलेंस शीट में नरमी आई है, लेकिन हमारा मानना है कि कुछ दबाव ऊंचे इक्विटी बाजार मूल्यांकन पर दिखेगा। अगले कुछ वर्षों में प्रतिफल की चाल मूल्यांकन में बदलाव के बजाय आय वृद्घि पर केंद्रित होगी।
क्या बाजारों में फेड की दर वृद्घि का असर दिख चुका है?
पिछले रिकॉर्डों से पता चलता है कि बाजारों को सामान्यत: फेड की दर वृद्घि के शुरुआती चरण में संघर्ष करना पड़ा, लेकिन बाद में उनमें सुधार दर्ज किया गया और साल के अंत में बाजारों में सकारात्मक बदलाव आया। हमारा मानना है कि बाजार में इस बार भी इसी तरह का रुख देखा जा सकता है, क्योंकि माना जा रहा है कि फेड नरम उधारी में सक्षम है। इससे बाजार में गिरावट सीमित होगी। हालांकि हमें उम्मीद है कि बाजार मुद्रास्फीति की आशंका को लेकर चिंतित बने रहेंगे, जिससे तेजी भी सीमित हुई है।
क्या घरेलू बाजारों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) प्रवाह बरकरार है?
एफपीआई प्रवाह ईएम में प्रवाह की आंशिक गतिविधि है और कुछ हद तक ईएम से भारत के लिए निवेश आवंटन हुआ है। हमारा मानना है कि ईएम के प्रवाह में अल्पावधि में दबाव पड़ेगा, क्योंकि वैश्विक तौर पर ब्याज दरें बढ़ी हैं। भारत मजबूत प्रदर्शक रहा है और कमजोर प्रदर्शन करने वाले बाजारों से और निकासी हो सकती है। साथ ही भारत का मूल्यांकन काफी ऊंचे स्तरों (अन्य ईएम के मुकाबले) पर है। हालांकि भारत की दीर्घावधि स्थिति मजबूत है और निवेशक सामान्य तौर पर यह स्वीकार करते हैं कि भारत अगले पांच से दस वर्षों के दौरान सबसे तेज बढऩे वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल रहेगा। जहां हम अल्पावधि में एफपीआई पूंजी निकासी देख रहे हैं, वहीं मूल्यांकन उचित होने पर मजबूत एफपीआई निवेश को लेकर सकारात्मक हैं।
क्या आप मानते हैं कि अन्य ईएम के मुकाबले भारत का मूल्यांकन प्रीमियम घटेगा?
भारत ने हमेशा से ईएम के मुकाबले ऊंचे मूल्यांकन पर कारोबार किया है। उदाहरण के लिए, पीई आधार पर, मूल्यांकन प्रीमियम औसत तौर पर करीब 55 प्रतिशत था। हालांकि मौजूदा मूल्यांकन प्रीमियम 90 प्रतिशत के आसपास सर्वाधिक ऊंचाई पर है। भारत लगातार ऊंचे मूल्यांकन पर कारोबार करता रहेगा, लेकिन मौजूदा प्रीमियम ज्यादा महंगा दिख रहा है।
क्या आप आरबीआई की दर वृद्घि से चकित थे। क्या इससे इक्विटी बाजारों पर दबाव पड़ेगा?
आरबीआई के कदम ने हमें चकित नहीं किया, लेकिन इस दर वृद्घि का समय अस्पष्ट था। ऊंची मुद्रास्फीति दर को देखते हुए इस तरह का कदम जरूरी था। इससे बाजारों को झटका लगा, क्योंकि दर वृद्घि अचानक की गई थी। जहां दर वृद्घि इक्विटी बाजारों के लिए अच्छी नहीं है, वहीं लगातार ऊंची मुद्रास्फीति भी शायद खराब है। लेकिन हमारा मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की नरम उधारी इक्विटी बाजारों के लिए दीर्घावधि तौर पर सकारात्मक होगी।
जनवरी-मार्च तिमाही आय कैसी रही है? जिंस कीमतों में महंगाई से कॉरपोरेट आय पर कितना प्रभाव पड़ेगा?
हमारा मानना है कि मुद्रास्फीति दबाव अप्रैल-जून तिमाही में मार्च तिमाही के मुकाबले ज्यादा दिखेगा, क्योंकि जिंस कीमतों में वृद्घि का असर मार्च तिमाही के कुछ ही सप्ताह में महसूस किया गया था। मार्च तिमाही कंपनियों द्वारा मार्जिन दबाव को लेकर जताई गई आशंका के अनुरूप रही है।
आप किन क्षेत्रों पर सकारात्मक/नकारात्मक हैं?
कुल मिलाकर, हमारा मानना है कि वृद्घि को अगले कुछ वर्षों के दौरान खपत के बजाय निवेश से बढ़ावा मिलेगा। हम पूंजीगत वस्तु, सीमेंट और वित्त पर सकारात्मक हैं। हम वाहन पर गंभीरता से नजर रख रहे हैं। वहीं कंज्यूमर स्टैपल्स पर नकारात्मक है।
इस साल प्रतिफल अच्छा नहीं रह सकता हैं। ऐसे में क्या आपको छोटे निवेशकों और घरेलू म्युचुअल फंडों से मजबूत निवेश प्रवाह बरकरार रहने की संभावना है?
हम छोटे निवेशकों के प्रवाह में कुछ नरमी देख सकते हैं। हालांकि हमारा मानना है कि बड़ी संख्या में छोटे निवेशक अब समझदार हो गए हैं और उन्होंने मंदी में भी अपने एसआईपी निवेश को बरकरार रखा है। दीर्घावधि में हमें रिटेल इंडिया द्वारा इक्विटी निवेश की अपनी भागीदारी बढ़ाए जाने की संभावना है, भले ही भारतीय निवेशक इक्विटी पर फिलहाल अंडरवेट बने हुए हैं।
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