नई प्राथमिकियां दर्ज नहीं करने का निर्देश | भाषा / May 11, 2022 | | | | |
उच्चतम न्यायालय ने देशभर में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर बुधवार को रोक लगा दी और केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार का एक 'उचित मंच' औपनिवेशिक युग के कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेता, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए। प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली के एक पीठ ने कहा कि देश में नागरिक स्वतंत्रता के हितों और नागरिकों के हितों को संतुलित करने की जरूरत है। केंद्र की चिंताओं पर गौर करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, 'भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की धारा 124ए (राजद्रोह) वर्तमान सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है' और इसके साथ ही उसने प्रावधान पर पुनर्विचार की अनुमति दी। पीठ ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक राजद्रोह कानून पर 'पुनर्विचार' नहीं हो जाता, तब तक राजद्रोह का आरोप लगाते हुए कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए। अदालत ने मामले को जुलाई के तीसरे सप्ताह के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि उसके सभी निर्देश तब तब लागू रहेंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी प्रभावित पक्ष संबंधित अदालतों से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही, अदालतों से अनुरोध किया जाता है कि वे वर्तमान आदेश को ध्यान में रखते हुए मामलों पर विचार करें। पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून के उक्त प्रावधान पर फिर से विचार नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र तथा राज्य नई प्राथमिकियां दर्ज करने, भादंसं की धारा 124ए के तहत कोई जांच करने या कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से बचेंगे।'
प्रधान न्यायाधीश ने आदेश में कहा, 'अटॉर्नी जनरल ने पिछली सुनवाई में राजद्रोह कानून के दुरुपयोग के कुछ स्पष्ट उदाहरण दिए थे, जैसे कि 'हनुमान चालीसा' के पाठ के मामले में, इसलिए कानून पर पुनर्विचार होने तक, यह उचित होगा कि सरकारों द्वारा कानून के इस प्रावधान का उपयोग न किया जाए।' पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी देने के केंद्र के सुझाव पर पीठ सहमत नहीं हुई।
रीजीजू ने 'लक्ष्मण रेखा' की बात कही
केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रिजीजू ने कार्यपालिका और न्यायपालिका समेत विभिन्न संस्थानों के लिए 'लक्ष्मण रेखा' की बात कही और कहा कि किसी को इसे पार नहीं करना चाहिए। कानून मंत्री ने कहा, 'हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अदालत को सरकार, विधायिका का सम्मान करना चाहिए। इसी तरह सरकार को भी अदालत का सम्मान करना चाहिए। हमारी स्पष्ट सीमाएं हैं और उस 'लक्ष्मण रेखा' को किसी को पार नहीं करना चाहिए।'
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