मई के शुरू से नवंबर में अपने 52 सप्ताह के ऊंचे स्तरों पर पहुंच चुके प्रमुख फुटवियर कंपनियों के शेयर (बाटा इंडिया और रिलैक्सो फुटवियर) ने इस अवधि के दौरान बीएसई-500 के प्रतिस्पर्धियों को मात देते हुए 40-66 प्रतिशत की तेजी दर्ज की है। कोविड-19 महामारी के मामले घटने के बाद शुरू हुई अनलॉक की प्रक्रिया से डिस्क्रेशनरी यानी गैर-जरूरी खर्च को बढ़ावा मिला है जिससे इन कंपनियों की बिक्री करीब महामारी से पहले जैसे स्तरों पर पहुंच चुकी है। यह तेजी इस उम्मीद से भी दर्ज की गई थी कि विस्तार, ऊंची परिचालन दक्षता, और कीमतों में तेजी से राजस्व वृद्घि और इन दो कंपनियों के मार्जिन को मदद मिलेगी। जहां दलाल पथ मध्यावधि में इन कंपनियों के परिदृश्य को लेकर उत्साहित है, वहीं कुछ ऐसी अल्पावधि समस्याएं हैं जिनसे मांग और मार्जिन पर प्रभाव देखा जा सकता है। इनमें से एक समस्या है फुटवियर पर जीएसटी 5 प्रतिशत से बढ़कर 12 प्रतिशत किया जाना, जिससे फुटवियर की लागत में इजाफा हुआ है। संशोधित दरों का मतलब है शुल्क संरचना में बदलाव, जिसमें फुटयिर क्षेत्र के लिए कच्चे माल पर 12 प्रतिशत कर लगना, जबकि तैयार उत्पादों पर 5 प्रतिशत कर लगना, जिसके परिणामस्वरूप इनपुट टैक्स क्रेडिट में बदलाव आना। इससे मार्जिन के साथ साथ जीएसटी दर वृद्घि से मांग पर दोहरा प्रभाव देखा जा सकता है। येस सिक्योरिटीज के हिमांशु नय्यर के नेतृत्व में विश्लेषकों का मानना है कि कुछ अल्पावधि दबाव पड़ा है क्योंकि कंपनियां मौजूदा इन्वेंट्री खपाने के लिए अतिरिक्त डिस्काउंट का सहारा ले सकती हैं, जिसमें कीमतों में बदलाव कठिन हो सकता है। रिलेक्सो के लिए इन्वेंट्री स्तर सितंबर के अंत में 542 करोड़ रुपये, जबकि बाटा के लिए 728 करोड़ रुपये था। औसत बिक्री कीमत रिलेक्सो के लिए 150 रुपये प्रति यूनिट, जबकि बाटा के लिए 750 रुपये को देखते हुए, उन्हें कीमत वृद्घि की वजह से प्रभाव पडऩे की आशंका है। अन्य समस्या जीएसटी वृद्घि का बोझ उपभोक्ताओं पर पडऩे और इससे मांग प्रभावित होने की है। येस सिक्योरिटीज के नय्यर का कहना है, 'लगातार महंगाई और इसके अलावा जीएसटी दरों में कीमत वृद्घि के साथ साथ आगामी सीजन में 15-20 प्रतिशत की कीमत वृद्घि की उम्मीद है जिससे खपत में ताजा रिकवरी प्रभावित होने की आशंका है।' दरअसल, कच्चे माल की ऊंची लागत से सितंबर तिमाही में मार्जिन दबाव को बढ़ावा मिला था। रिलेक्सो का सकल मार्जिन 660 आधार अंक घट गया था, जबकि परिचालन मुनाफा मार्जिन एक साल पहले की तिमाही के मुकाबले 560 आधार अंक प्रभावित हुआ। मार्जिन में गिरावट इस साल अब तक कंपनी द्वारा घोषित 15 प्रतिशत की कीमत वृद्घि के बावजूद दर्ज की गई है। इस क्षेत्र के लिए समस्याएं ऐसे समय में सामने आई हैं जब मजबूत बाहरी गतिविधि, शैक्षिक संस्थानों के खुलने, और सभी श्रेणियों मेें बिक्री सुधरने की वजह से मांग सुधर रही है। आनंद राठी रिसर्च के अनुसार, फुटवियर कंपनियों के लिए औसत वृद्घि सालाना आधा पर 41 प्रतिशत तक थी। बाटा ने सर्वाधिक वृद्घि दर्ज की, जिसके बाद खादिम इंडिया ने 33 प्रतिशत और रिलेक्सो ने 24 प्रतिशत की वृद्घि दर्ज की। जहां स्लिपर और खुले फुटवियर के लिए मांग पिछले साल के दौरान सर्वाधिक थी, वहीं बाद में यह रुझान बदला है और आउटसाइड वियर और क्लोज्ड फुटवियर की बिक्री दूसरी तिमाही में बढ़ी है। इसी तरह, फैशन, वेडिंग और फेस्टिवल सेगमेंटों में सुधार देखा गया, लेकिन यदि नए कोविड वैरिएंट की वजह से इवेंट/ट्रैवल पर सख्ती बढ़ी तो प्रभाव देखा जा सकता है। अल्पावधि दबाव को देखते हुए निवेशकों को बाटा तथा रिलेक्सो पर दांव लगाने से पहले कंपनियों द्वारा मूल्य निर्धारण के प्रभाव, मांग के रुझान स्पष्ट होने का इंतजार करना चाहिए।
