केंद्र सरकार ने विनिर्माण के लिए अपनी अग्रणी योजना उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) को लेकर अपनी रणनीति में बदलाव किया है। इसके तहत उसने निर्यात संबंधी रुझान को वापस ले लिया है। इसकी वजह यह है कि सरकार विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में इसको लेकर किसी भी प्रतिक्रिया से दूर रहना चाहती है। इसके तहत सरकार पिछले हफ्ते केंद्रीय बैबिनेट द्वारा मंजूर की गई कपड़ा के लिए पीएलआई में निर्यात संबंधी कोई रुझान नहीं देगी। सरकारी अधिकारियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि भले ही योजना को सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है और इसमें वैश्विक व्यापार संगठन के नियमों का अनुपालन किया गया है उसके बावजूद वे इस बात को लेकर सचेत हैं कि कहीं डब्ल्यूटीओ के दलदल में न फंस जाएं।अब तक सरकार हरेक पीएलआई के संबंध में निवेश, उत्पादन, रोजगार के साथ साथ निर्यातों में वृद्घि के संदर्भ में रुझानों और परिणामों का खाका खिंचती रहीं है। उदाहरण के लिए अप्रैल में वाणिज्य एंव उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि मोबाइल उत्पादन और विशिष्टï इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों के लिए पीएलआई योजना से पांच वर्ष में करीब 10.5 लाख करोड़ रुपये का कुल उत्पादन होने के आसार हैं जिनमें से 60 फीसदी से अधिक का निर्यात किए जाने की उम्मीद है। घरेलू इलेक्ट्रॉनिक सामानों के मामले में सरकार ने पांच वर्ष में 64,400 करोड़ रुपये मूल्य के निर्यात की उम्मीद जताई थी। खाद्य उत्पादों के मामले में यह 27,816 करोड़ रुपये रहने की उम्मीद जताई गई है। वहीं 2 लाख करोड़ रुपये के दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों के निर्यात की उम्मीद जताई गई है। गत डेढ़ वर्ष में कैबिनेट ने इस्पात, खाद्य प्रसंस्करण, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक सामानों, मोबाइल फोन विनिर्माण, दूरसंचार उपकरण सहित कई अन्य उत्पाद क्षेत्रों से संबंधित 12 पीएलआई योजनाओं को मंजूरी दी है। इसका मकसद स्थानीय तौर पर उत्पादित वस्तुओं की लागत प्रतिस्पर्धाओं में सुधार करना, रोजगार के अवसर तैयार करना और सस्ती आयातों पर रोक लगाना है। सरकार के अनुमान के मुताबिक पांच वर्षों में योजना की बदौलत न्यूनतम 500 अरब डॉलर से अधिक का उत्पादन किया जाएगा। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले हफ्ते कहा, 'देश में जब उत्पादन बढ़ता है, अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएं निर्मित होती हैं तब गुणवत्ता और उत्पादकता दोनों मिलकर भारत के उत्पादों की प्रतिस्पर्धा को बढ़ाते हैं जिससे स्वाभाविक तौर पर उनके निर्यात की संभावना बढ़ जाती है।'
