सुरक्षा नियमों पर दूरसंचार कंपनियां नाराज | सुरजीत दास गुप्ता / नई दिल्ली January 21, 2021 | | | | |
प्रस्तावित नए सुरक्षा प्रमाणन (संचार सुरक्षा प्रमाणन या कॉमसेक) के लिए दूरसंचार विभाग (डीओटी) की ओर से दूरसंचार उपकरणों और मोबाइल फोन डिवाइसों के अनिवार्य परीक्षण का एक समानांतर ढांचा बनाने पर जोर देने से दूरसंचार उद्योग परेशान है।
दूरसंचार ऑपरेटरों के संगठन सेलुलर ऑपरेटर एसोसएिशन आफ इंडिया (सीओएआई) ने दूरसंचार विभाग के सचिव को भेजे गए पत्र में कहा है कि कुछ खास दूरसंचार उपकरणों व मोबाइल डिवाइस के कई परीक्षण से न सिर्फ परीक्षणों का दोहराव होगा बल्कि ओईएम की लागत बढ़ेगी और कारोबार सुगमता की कवायदों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
उदाहरण के लिए इस समय टेलीकॉम उपकरण और मोबाइल डिवाइस के लिए डीओटी की डब्ल्यूपीसी शाखा से प्रमाणपत्र लेना होता है, उसके बाद डीओटी की टेलीकम्युनिकेशन इंजीनिरिंग सेंटर (सीईसी) शाखा अनिवार्य परीक्षण और टेलीकॉम उपकरण प्रमाण पत्रों की जांच करानी होती है। अब इसमें एक और परत कॉमसेक की जोड़ दी गई है, जिसका प्रमाणन डीओटी की एक और शाखा नैशनल सेंटर फॉर कम्युनिकेशन सिक्योरिटी (एनसीसीएस) को करना है। मोबाइल उपकरणों के लिए एक चौथा प्रमाणन बीआईएस से मंजूरी लेना भी शामिल है।
डीओटी ने 2018 में दूरसंचार उपकरमों का प्रमाणन और परीक्षण अनिवार्य किया था। इसमें सुरक्षा के लिए परीक्षण, तकनीकी मानक और सुरक्षा संबंधी मसले शामिल हैं, और परीक्षण टीईसी द्वारा किया जाना है। इसके लिए ढांचा बनाने को लेकर हिस्सेदारों से चर्चा हो रही थी, जिसमें सरकार द्वारा नियुक्त थर्ड पार्टी लैब तय किया जाना शामिल है। बहरहाल डीओटी ने हाल में एक नया प्रमाणन कॉमसेक पेश किया, जो सुरक्षा के हिसाब से एनसीसीएस द्वारा ही किया जाएगा।
मोबाइल उपकरण कारोबारियों का कहना है कि इस प्रक्रिया से नए मोबाइल फोन पेश करने में देरी होगी क्योंकि नई सुरक्षा मंजूरी में वक्त लगेगा और नए मॉडल अव्यावहारिक हो जाएंगे (क्योंकि उनकी शेल्फ लाइफ सीमित है)। दिशानिदेर्शों में उल्लेख है कि पंजीकरण से प्रमाणन तक मेंं 16 सप्ताह लगेंगे। साथ ही अगर मोबाइल उपकरण एक ही ओएस डिवाइस पर चल रहे हों, लेकिन उसमें फीचर जोड़ दिए गए हों तो उनके अलग प्रमाणन की जरूरत होगी। ऐसा तब भी कराना होगाा, अगर ओएस ऑर्किटेक्चर पहले जैसा ही बना रहे।
सीओएआई ने सुझाव दिया है कि इसकी जगह सुरक्षा सहित परीक्षण और प्रमाणन के लिए एकल खिड़की व्यवस्था होनी चाहिए, न कि अलग अलग प्रयोगशालाओं व अलग एजेंसियों द्वारा ऐसा किया जाना चाहिए। सीओएआई का कनहा है कि यह एक पंजीकरण शुल्क और एक परीक्षण पर प्रमाणन शुल्क पर होना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि देश में डीओटी द्वारा तय परीक्षण प्रयोगशालाओं की कमी है। पत्र में लिखा गया है कि सुरक्षा के परीक्षण के लिए भारत में इस समय सिर्फ एक प्रयोगशाला है। इसके अलावा उपकरण को कई परीक्षण योजनाओं के तहत भेजने से ओईएम पर एक और लागत बढ़ती है।
सीओएआई ने यह भी कहा है कि ओईएम में एक साल में कम से कम 3 से 4 सॉफ्टवेयर अपग्रेड होता है और इनका इस समय अनुपालन के हिसाब से आंतरिक परीक्षण होता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों का पालन किया जा सके। लेकिन नए नियम के मुताबिक डीओटी अस्थाई प्रमाणपत्र देगा और एक साल के भीतर उसके लिए स्थायी प्रमाणपत्र लेना होगा।
लेकिन सीओएआई का कहना है कि सॉफ्टवेयर पूरी दुनिया के लिए जारी किया जाता है और यह किसी बाजार विशेष के लिए नहीं होता। ऐसे में किसी विशेष देश के हिसाब से सुरक्षा जरूरतों के लिए किसी भी परीक्षण पर भारी लागत आएगी और इसमें अतिरिक्त कवायद और वकक्त की जररूरत होगी, जिससे सॉफ्टवेयर पेश करने में बहुत देरी होगी। इसके अलावा हर बार के सॉफ्टवेयर अपडेट में किसी देश विशेष पर केंद्रित सुरक्षा परीक्षण करना करीब असंभव होगा क्योंकि एक साल में कई अपडेट होते रहते हैं।
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