कोरोना महामारी के बीच खरीदार अपार्टमेंट के बजाय अलग घरों को महफूज मान रहे हैं और भूखंड यानी प्लॉट की मांग बढ़ गई है। एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स की रिपोर्ट कहती है कि प्लॉट बाजार में नामी-गिरामी डेवलपरों के आने से भी यह सिलसिला बढ़ गया है। कम रकम में घर बनाना चाह रहे लोगों के लिए प्लॉट बेहतर विकल्प होता है। जेएलएल इंडिया के प्रबंध निदेशक (चेन्नई) शिव कृष्णन का कहना है कि किसी प्लॉट की खरीद में अपार्टमेंट के मुकाबले कम खर्च होता है। जो अलग घर चाहते हैं मगर ज्यादा रकम खर्च नहीं कर सकते, वे शहरों के बाहर सस्ते प्लॉट खरीदकर बाद में मकान बनवा सकते हैं। स्क्वायर याड्र्स के मुख्य साझेदार और प्रमुख (इंडिया सेल्स) राहुल पुरोहित कहते हैं कि प्लॉट खरीदने पर यह तय करने की आजादी मिल जाती है कि मकान कब बनाना है। जब रकम आए तब मकान बनवा लें। इसमें जरूरत के मुताबिक खास किस्म का मकान बनवाने की सहूलियत भी होती है। प्लॉट खरीदें तो डिलिवरी से जुड़ा जोखिम भी कफी हद तक खत्म हो जाता है। सौदे के साल-छह महीने के भीतर प्लॉट मिल जाता है। बाद में प्लॉट मालिक जाने कि उसे क्या बनवाना है और कब बनवाना है। मगर किसी निर्माणाधीन परियोजना में मकान खरीदा जाए तो डिलिवारी में तीन-चार साल लग ही जाते हैं। कभीकभार तो इससे भी ज्यादा देर होने का खतरा रहता है। प्लॉट खरीदने में एक फायदा यह भी होता है कि पूरी जमीन पर खरीदार का ही मालिकाना हक रहता है। अपार्टमेंट वाली इमारत में हरेक फ्लैटवासी का जमीन के छोटे से हिस्से पर हक होता है। खाली पड़े प्लॉट की कीमत 10-15 साल में अच्छी खासी बढ़ सकती है मगर बने-बनाए फ्लैट की कीमत बढऩे के बजाय घट भी सकती है। बीपीटीपी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (बिक्री) अमितराज जैन कहते हैं कि प्लॉट को 10 साल बाद बेचना आसान होता है और निवेश पर प्रतिफल मिलने की भी अच्छी संभावना रहती है। लेकिन अगर किसी सोसाइटी का रखरखाव ठीक नहीं हो तो अपार्टमेंट बेचना मुश्किल हो जाता है क्योंकि आम तौर पर खरीदार पुरानी इमारत खरीदने को तैयार नहीं होते। ऐनारॉक की रिपोर्ट बताती है कि डीएलएफ, रहेजा ग्रुप, गोदरेज प्रॉपर्टीज, पूर्वंकरा, श्रीराम जैसे बड़े डेवलपरों ने भी प्लॉट बाजार में कदम रख दिया है। इनके आने से खरीदारों को प्लॉट में निवेश करने का भरोसा मिला है। प्लॉट काटने वाले डेवपलपर सड़क, बिजली बैकअप, सुरक्षा के लिए गेट जैसी सुविधाओं का वादा करते हैं। कंपनियां रसूख वाली हों तो खरीदार को भरोसा होता है कि ये सुविधाएं निश्चित रूप से मिलेंगी। जैन कहते हैं कि महंगे अपार्टमेंट परिसर में मासिक रखरखाव का शुल्क अधिक होता है। अगर अपार्टमेंट में कब्जा नहीं लिया जाता है, तो मालिक को बिना मतलब पैसा चुकाना पड़ता है। मगर प्लॉट पर रखरखाव में कम खर्च करना पड़ता है। मगर आप डेवलपर की परियोजना के बजाय सीधे प्लॉट मालिक से जमीन लेते हैं तो मालिकाना हक से जुड़ा जोखिम पैदा हो सकता है। जोखिम से बचने के लिए किसी वकील से कागजात की जांच जरूर करा लें। प्लॉट पर अतिक्रमण का जोखिम भी रहता है। गगनचुंबी अपार्टमेंट वाली इमारत में सुरक्षा अधिक होती है मगर प्लॉट में सुरक्षा का जोखिम रहता है। इसके अलावा प्लॉट के बजाय अपार्टमेंट खरीदने के लिए ज्यादा कर्ज मिल सकता है। प्लॉट काटने और बेचने का काम आम तौर पर शहर के बाहर होता है। इसलिए उस इलाके पर दांव लगाएं, जो समय के साथ विकसित हो सके। पुरोहित की राय ऐसे इलाके ढूंढने की है, जहां दफ्तर हों या आईटी पार्क बनने वाले हों। ऐसे इलाकों में लोगों की आमद बढऩे के साथ ही कीमत भी बढ़ेगी।
