बिहार में डिजिटल अभियान की बहार | आदिति फडणीस / September 08, 2020 | | | | |
साल 2000 में सितंबर-अक्टूबर का महीना था और गुजरात में विधानसभा चुनाव का प्रचार जोर-शोर से जारी था। भीड़ नरेंद्र मोदी का इंतजार कर रही थी। माजदा ट्रक वहां पहुंचा जिसे एक वातानुकूलित रथ में बदल दिया गया था और उस पर हाइड्रोलिक लिफ्ट के जरिये छतरी वाला एक अस्थायी मंच नजर आने लगा। मंच के केंद्र में खड़े होकर हाथ उठाते हुए नरेंद्र मोदी मुस्कुराते हुए नजर आए। भीड़ की आवाज भी सुनाई दे रही थी।
हालांकि कोविड-19 के इस दौर में बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को इस तरह के नजारे नहीं देखने को मिलेंगे। कुछ जनसभाएं होंगी और चुनावी यात्रा तो उससे भी कम होंगी। मतदाताओं के साथ संवाद स्थापित करने के लिए जूम और सिस्को वेबेक्स को ज्यादा तरजीह दी जा रही है। रथ अभी भी वहां होगा लेकिन इसे एलईडी लाइटों के साथ फिट कर दिया जाएगा और प्रधानमंत्री के पिछले भाषणों और देशभक्ति गानों के क्लिप चलाने के साथ ही इस पर तोरणद्वार-पोस्टर भी लगाए जाएंगे और यह एक तरह का मोबाइल ऑडियो-विजुअल डिस्प्ले होगा जो गांवों और कस्बों में घूमेगा। इस बार जनसभाओं के बजाय चुनाव में भाजपा का अभियान डिजिटल तरीके से संचालित किया जाएगा।
प्रचार समिति के सह संयोजक और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के महासचिव देवेश कुमार ने कहा, 'हमने तकनीक को मंडल और बूथ स्तर तक पहुंचाया है।' हालांकि सच तो यह है कि अब कोई विकल्प नहीं बचा है। निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दिशानिर्देशों में यह निर्धारित किया गया है कि मतदाताओं के घर-घर जाने के अभियान के लिए भी पांच से अधिक लोगों को अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके अलावा रोड शो में अधिकतम पांच वाहनों का उपयोग किया जा सकता है और जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा पहले से तय किए गए मैदानों में सार्वजनिक रैलियों की अनुमति दी जाएगी जहां शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए सैनिटाइजर, मास्क के साथ 100 लोगों को ही अनुमति दी जाएगी। कुमार कहते हैं कि पंचायत स्तर पर भी लोग जूम और सिस्को वेबेक्स को समझने लगे हैं। भाजपा की प्रदेश इकाई ने अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए व्यापक कार्यशालाएं शुरू की हैं ताकि वे यह समझ सकें कि कोई ऐप कैसे डाउनलोड किया जाता है और उसे कैसे चलाया जाता है। इसके अलावा उन्हें म्यूट और अनम्यूट फंक्शन समझाने के साथ ही कैसे बोलना है यह भी समझाया जा रहा है। वह कहते हैं, 'हमारे पदाधिकारियों ने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए हर विधानसभा क्षेत्र का दौरा किया है। पहले हमने वर्चुअल कॉन्फ्रेंस की और फिर हमने लोगों के साथ छोटे सत्र का आयोजन करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उन जगहों का दौरा किया। इन सत्रों में एक बार में 50-55 से अधिक लोग नहीं थे और सभी मास्क पहने हुए थे। सत्र का अंतिम दौर अररिया और किशनगंज में हुआ।'
जब गृहमंत्री अमित शाह ने जून में पहली वर्चुअल जनसभा की थी तब पार्टी को इसमें 1 लाख लोगों के शामिल होने की उम्मीद थी। शाह को सुनने वालों की संख्या 1.50 करोड़ थी। यह तकनीक से परिचित कराने के अभ्यास का परिणाम था। इस जनसभा का प्रसारण फेसबुक लाइव, यूट्यूब और जूम पर वेबकास्ट के जरिये किया गया था। सभी न्यूज चैनलों को इससे जोड़ा गया और इस सभा का प्रसारण लाइव चलाया गया। बूथ स्तर पर छोटे-छोटे स्क्रीन लगाए गए थे। सभा में शामिल होने के लिए किसी को बहुत दूर नहीं जाना पड़ा।
कुमार का कहना है कि भविष्य में भी इसी तरह की प्रक्रिया का पालन किया जाएगा और प्रधानमंत्री द्वारा संबोधित रैलियों में भी इसी प्रक्रिया को अपनाया जाएगा। उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री मुजफ्फरपुर में 100 लोगों की रैली में हिस्सा ले सकते हैं। तकनीक का इस्तेमाल करते हुए इसे पूरे राज्य में प्रसारित किया जाएगा।' इस हफ्ते की शुरुआत में बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के प्रमुख नीतीश कुमार ने भी वर्चुअल जनसभा में हिस्सा लिया था। मीडिया में दिलचस्पी रखने वाले भाजपा सांसद राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि कोविड महामारी के दौरान चुनाव प्रचार डिजिटल मीडिया के अलावा टेलीविजन के जरिये किया जाएगा जिसके लिए भुगतान करके समय लिया जाएगा। सभी राजनीतिक दलों को अपने चुनाव प्रचार अभियानों को इसके ही अनुरूप तैयार करना होगा। उन्होंने कहा, 'आप देखेंगी कि टीवी पर प्रचार अभियान खर्च बढ़ेगा।'
हालांकि, समाज विज्ञानी मिलन वैष्णव सत्ता चुनाव के लिए तकनीकी क्षमताओं को लेकर थोड़ा सतर्क रहने की बात करते हैं। वैष्णव ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'यदि आप जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों मसलन उपभोक्ता उत्पादों, खेल, फिल्म, संगीत और काम को देखें तो डेटा और डिजिटल ऐप्लिकेशन का काफी तेजी से प्रसार हो रहा है। राजनीति को आखिर इन व्यापक बदलावों से मुक्त क्यों किया जाना चाहिए? लेकिन आपको भारत की हकीकत को भी नहीं भूलना चाहिए। डिजिटल संचार की राह में अभी काफी बाधाएं हैं। स्मार्टफोन सब तक नहीं पहुंचा है। डिजिटल मंचों के दुरुपयोग की काफी संभावना है जिसकी प्रतिक्रिया उलटी भी हो सकती है। अगर प्रौद्योगिकी ही प्रमुख वजह होती तो भाजपा सत्ता पाने के बाद 2017 में प्रमुख राज्यों के चुनाव नहीं हारती।'
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