कर्ज न चुका पाएं तो दिवालिया हो जाएं | |
बिंदिशा सारंग / 07 26, 2020 | | | | |
पिछले कुछ अरसे में हमने माइकल जैकसन, माइक टायसन और विजय माल्या जैसी हस्तियों के दिवालिया होने या दिवालिया घोषित किए जाने की अर्जी देने की खबरें सुनी हैं। हालांकि किसी व्यक्ति के दिवाला होने की खबरें मुश्किल से ही आती हैं क्योंकि इसके कानून बहुत सख्त हैं और समाज में इससे बदनामी भी होती है। मगर करीब एक सदी पुराने मौजूदा कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति आपका 500 रुपये का उधार भी नहीं लौटा सकता तो आप उसके खिलाफ दिवालियापन का मामला दर्ज करा सकते हैं। यह बात अलग है कि इसकी प्रक्रिया बहुत पेचीदा है। आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराणा ने कहा, 'दिवालिया होने का मामला वहां बनता है, जहां कोई व्यक्ति अपने कर्ज चुकाने में नाकाम हो जाता है। वैसे किसी को दिवालिया तभी माना जाता है, जब कानूनी तौर पर उसे दिवालिया घोषित किया जाता है।'हालांकि ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता, 2016 (आईबीसी) 2 दिसंबर, 2016 को लागू हुई और इसमें व्यक्तिगत दिवालियेपन के लिए भी नियम हैं मगर अभी तक उनकी अधिसूचना जारी नहीं हुई है। पीएसएल एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स के संस्थापक और प्रबंध साझेदार संदीप बजाज ने कहा, 'इस समय व्यक्तिगत ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला के संबंध में प्रक्रिया प्रेसिडेंसी टाउन्स इन्सॉल्वेंसी ऐक्ट 1909 (कलकत्ता, बंबई और मद्रास के उच्च न्यायालयों में शुरू होने वाली प्रक्रियाओं पर लागू) और प्रॉविंशियल इन्सॉल्वेंसी ऐक्ट 1920 (शेष भारत पर लागू) के हिसाब से चलती है। संहिता के प्रावधानों की अधिसूचना जारी होने के बाद संहिता का खंड 23 निरस्त हो जाएगा और उपरोक्त कानून निष्प्रभावी हो जाएंगे।' गौरतलब है कि दोनों ही अधिनियमों में प्रावधान समान हैं।
एनए शाह एसोसिएट्स में पार्टनर गोपाल बोहरा ने कहा, 'मौजूदा दिवालिया कानून वेतनभोगी और अपना व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों के बीच किसी तरह का फर्क नहीं करते। यदि किसी व्यक्ति पर किसी और का कर्ज चढ़ा है तथा वह बिगड़ती वित्तीय स्थिति के कारण कर्ज चुकाने में समर्थ नहीं है तो वह दिवालिया होने के लिए आवदेन कर सकता है।'
क्या है प्रक्रिया
अगर आपने दिवालिया घोषित किए जाने के लिए आवेदन करने का फैसला कर लिया है तो आपको किसी वकील से मिलना होगा, जिसे जरूरी दस्तावेज दिखाकर आप अदालत में प्रस्ताव दायर कर सकें। इसके बाद न्यायालय यह देखेगा कि आवेदन करने की सभी शर्तें पूरी की गई हैं या नहीं। उसके आधार पर ही न्यायालय याचिका को मंजूर या रद्द कर सकता है। आपकी तरफ से याचिका दायर किए जाने के बाद सुनवाई की एक तारीख घोषित की जाती है। अदालत एक अंतरिम प्राप्तकर्ता नियुक्त करती है, जो आपकी समूची संपत्तियों पर फौरन कब्जा कर लेता है।
स्वतंत्र विधि सलाहकार और समूह विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में रिसर्च फेलो ऐश्वर्या सतीजा ने कहा, 'आईबीसी में स्वत: रोक की व्यवस्था है। लेकिन मौजूदा कानूनों के तहत आप अदालत में रोक के आदेश के लिए आवेदन कर सकते हैं और वह कर्जदार की संपत्ति के खिलाफ किसी कानूनी प्रक्रिया पर रोक लगा सकता है।'
न्यायिक फैसला
सुनवाई की तारीख पर अगर न्यायालय यह पाता है कि आपकी याचिका संतोषजनक है तो वह 'न्यायिक आदेश' पारित कर सकता है, जिससे आप यानी ऋणी अनडिस्चार्जड इनसॉल्वेंट बन जाएंगे। इसके बाद अगर आपकी कोई संपत्ति है तो न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारी उसकी बिक्री करेगा। बिक्री से प्राप्त पैसे को ऋणदाताओं के बीच बांटा जाएगा। बोहरा ने कहा, 'यह बंटवारा वरीयता क्रम में होगा। सबसे पहले दिवालिया खर्च, कामगारों का बकाया, सुरक्षित ऋणदाताओं और कर्मचारियों का बकाया चुकाया जाएगा। उसके बाद पैसा बचता है तो उसे केंद्र सरकार और राज्य सरकार को बांटा जाएगा। अगर दिवालिया व्यक्ति पर पहले का कोई आयकर बकाया है तो उसका भुगतान भी वरीयता क्रम में अन्य ऋणदाताओं के भुगतान के बाद बची रकम से ही होगा। रकम इतनी कम हो कि बांटने के बाद आयकर चुकाने के लिए पैसा ही नहीं बचे तो कर देनदारी अपने आप खत्म हो जाएगी।'
जब अदालत में दिवालिया प्रक्रिया चल रही होती है तो आप गुजर-बसर के लिए न्यूनतम राशि की खातिर आवेदन कर सकते हैं। लेकिन यह स्वैच्छिक राहत है, जो हर मामले में अलग-अलग होती है। आखिर में आपको अदालत से 'पूर्ण भुगतान प्रमाणपत्र' लेने की जरूरत होगी। यह वितरण की पूरी प्रक्रिया समाप्त होने पर ही मिलेगा। अदालत यह तय करने के लिए कई मापदंडों पर विचार करती है कि कर्जदार दुर्भाग्यवश दिवालिया हुआ है। वह यह भी देखती है कि कर्जदार ने धोखाधड़ी या बेईमानी तो नहीं की है। इसके बाद बाकी बची देनदारी खत्म कर दी जाती है कर्ज देने वाली संस्था या व्यक्ति दिवालिया व्यक्ति को बकाया चुकाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
अगर आप पर सरकार का बकाया है या आपने कोई वित्तीय धोखाधड़ी की है तो आप सभी ऋणों के संबंध में क्लीन चिट हासिल नहीं कर सकते। आपको यह पैसा चुकाना ही होगा। सतीजा कहती हैं, 'आप कर्ज चुकाने में असमर्थ हैं, यह तय करने के मापदंड भी समय लेते हैं।' हालांकि यह आसान फैसला नहीं है। यह प्रक्रिया भी जटिल है और इसमें काफी समय लगता है क्योंकि हम अभी पुराने कानून में अटके हैं। यह रास्ता बहुत अधिक लोगों ने नहीं चुना है, जिसके लिए कुछ हद तक सामाजिक बदनामी, कुछ हद तक पुराने नियम और कुछ हद तक वकीलों एवं अदालतों से संपर्क साधने का डर जिम्मेदार हैं। डीएसके लीगल में पार्टनर अजय शॉ ने कहा, 'आईबीसी एक संयोजित ढांचा है, जिसमें व्यक्तियों के लिए कर्ज न चुका पाने की स्थिति से निपटने के लिए पारदर्शी एवं क्रमबद्ध प्रक्रिया है। इससे यह प्रक्रिया मौजूदा कानूनी की तुलना में ज्यादा समयबद्ध बनने की उम्मीद है।'
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