हाल में ही शुरू हुए मुद्रा के वायदा कारोबार में विदेशी संस्थागत निवेशकों की संभावित हिस्सेदारी को लेकर भारतीय उद्योगपति बहुत चिंतित नजर आ रहे हैं।
उन्हें डर सता रहा है कि मुद्रा केवायदा कारोबार में विदेशी निवेशकों की भागीदारी से उनकी भूमिका कम हो सकती है। पीडब्ल्यूसी के प्रमुख सलाहकार चिराग चक्रवर्ती का कहना है कि अगर विदेशी संस्थागत निवेशकों को उनका डॉलर का जोखिम कम करने की छूट दी जाती है तो फिर इसमें भारतीय उद्योगपतियों की हिस्सेदारी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
मुद्रा वायदा कारोबार में विदेशी संस्थागत निवेशकों के उतरने से बाजार में ठीक वैसा ही अनिश्चितता का वातावरण पैदा हो सकता है जैसा इक्विटी बजार में देखा गया।
चक्रवर्ती के अनुसार मुद्रा वायदा कारोबार को परिपक्व होने के लिए कम से कम दो साल का समय और दिया जाना चाहिए और इसकेबाद ही विदेशी संस्थागत निवेशकों को इसमें कारोबार की अनुमति मिलनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि पूंजी बाजार में हो रहे कारोबार में एफआईआई की अहम भूमिका को देखते हुए उद्योगपति मुद्रा वायदा कारोबार में अपनी भागीदारी को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं।
इस समय एमसीएक्स-एसएक्स, एनएसई और बीएसई में मुद्रा वायदा कारोबार हो रहा है। मुद्रा के वायदा कारोबार की शुरुआत में जमकर आलोचना हुई थी लेकिन अब इस कारोबार में धीरे-धीरे तेजी आती जा रही है।
भारतीय उद्योगपतियों की चिंता का मुख्य कारण ज्यादातर विश्लेषकों की वह राय है जिसमें उन्होंने सेंसेक्स में आई जबरदस्त गिरावट केलिए एफआईआई को जिम्मेदार बताया है।
विश्लेषकों के अनुसार एफआईआई की ज्यादा भागीदारी के कारण बड़े घरेलू कारोबारियों का विकास नहीं हो पाया जिससे बाजार में गिरावट को चुनौती देनेवाला कोई नहीं रहा।
इस साल 8 जनवरी को मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक यानि सेंसेक्स ने 21,000 के स्तर को छू लिया था लेकिन फिर उसके बाद बाजारमें गिरावट का दौर शुरू हो गया।