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आज के युवा उच्च शिक्षा से बना रहे हैं दूरी

Last Updated- December 15, 2022 | 4:01 AM IST

भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के गेट के सामने मौजूद मॉडर्न कॉलेज ऑफ  कॉमर्स में हजारों छात्र स्नातक की पढ़ाई करते हैं। हर शैक्षणिक सत्र में जुडऩे वाले छात्रों की संख्या पिछले साल से अधिक होती है। इसी हिसाब से फ ीस में भी रुझान दिखता है। लेकिन संस्थान के परीक्षा केंद्र से जुड़े नामदेव डोके कहते हैं, ‘लगभग 30 प्रतिशत छात्र तीसरे साल तक पढ़ाई छोड़ देते हैं जब हम उनके फाइनल ग्रेड और स्नातक प्रमाण पत्र संकलित करना शुरू करते हैं।’ उनका कहना है, ‘अगर पुणे में यह स्थिति है जो शहर अपनी शिक्षा विरासत के लिए जाना जाता है तो राज्य के दूसरे शहरों में इसकी स्थिति के बारे में सोच कर घबराहट होती है।’
पुणे से 350 मील की दूरी पर कपास के लिए समृद्ध माने जाने वाले यवतमाल जिले में अक्षय व्यावहरे ने अकाउंटिंग में अपना सर्टिफि केट कोर्स पूरा किए बिना ही पढ़ाई छोडऩे का फैसला किया है। पढ़ाई छोडऩे के पीछे दो वजहें थी कि वह अपने बीमार पिता के इलाज के खर्चों के लिए कैब चलाने के लिए ज्यादा वक्त देना चाहते थे और दूसरी वजह यह थी कि वह कॉलेज, प्राइवेट ट्यूशन, पढ़ाई की सामग्री और ईंधन के लिए बचत करना चाहते हैं। व्यावहारे जैसे कई लोग उनके नक्शेकदम पर चल रहे हैं। वर्ष 2017-18 में आधिकारिक तौर पर कॉलेज से बाहर होने वाले डिप्लोमा और सर्टिफि केट स्तर के छात्रों का अनुपात 12.7 फ ीसदी पर पहुंच गया जो 2014 के 4.4 फ ीसदी से अधिक था। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2017-18 में नौवीं और दसवीं कक्षा में स्कूल की पढ़ाई छोडऩे वालों की तादाद करीब 20 प्रतिशत तक रही।
वर्ष 2014-2018 की अवधि के दौरान देश के उच्च शिक्षा तक की पहुंच में स्पष्ट गिरावट है। हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने बुधवार को दिल्ली में अपनी सरकार की नई शिक्षा नीति की पेशकश की। नई शिक्षा नीति का मकसद देश में शिक्षा खर्च को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6 फ ीसदी तक बढ़ाना है। विश्व बैंक का कहना है कि भारत फिलहाल शिक्षा पर जीडीपी का 3.8 फ ीसदी खर्च करता है जबकि वैश्विक औसत 4.5 प्रतिशत है।
रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि स्नातक कर रहे लोगों के बीच पढ़ाई छोडऩे की दर 5 प्रतिशत के करीब है जिसमें साल 2014-2018 से कोई सुधार नहीं हुआ है। यह निचले शैक्षणिक स्तर पर स्कूल छोडऩे की ऊंची दरों की तुलना में ज्यादा भयावह है क्योंकि स्नातक स्तर पर नामांकन भारत में 26 प्रतिशत तक ही है जबकि प्राथमिक स्तर पर नामांकन की दर 100 फीसदी तक है। अगर आप 5 से 29 आयु वर्ग को आधार मानें तो यह दर्शाता है कि फि लहाल स्कूल और कॉलेज में जा रहे लोगों की हिस्सेदारी में कमी आई है। इसके साथ ही उन व्यक्तियों की हिस्सेदारी बढ़ गई है जिन्होंने एक बार दाखिला लिया था लेकिन वर्तमान में स्कूल-कॉलेज में उपस्थित नहीं हो रहे हैं। सरकार के फंड से चलने वाले राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान की प्रमुख प्रणति पांडा का कहना है कि अब बेहद कम ही युवा उच्च शिक्षा का विकल्प चुन रहे हैं । उन्होंने बताया,  ‘माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर से शिक्षा के उच्च स्तर की ओर रुझान में कमी आ रही है और इसके कई कारण हैं।’ हालांकि कुछ सुधार गौर करने लायक हैं। उदाहरण के तौर पर छात्रों की उपस्थिति अनुपात में सुधार हुआ है। एक विशेष आयु वर्ग के छात्रों का एक बड़ा हिस्सा कक्षा में आता है। हालांकि माध्यमिक विद्यालय (कक्षा 8, 9 और 10) में होने वाले लगभग 40 प्रतिशत छात्र अब भी स्पष्ट तौर पर अनुपस्थित रहते हैं। 
एनएसओ की रिपोर्ट में पाया गया है कि लगभग 12 प्रतिशत लड़कियां शादी करने के लिए पढ़ाई छोड़ देती हैं जबकि बाकी 32 प्रतिशत लड़कियां घरेलू कामकाज के बोझ की वजह से पढ़ाई छोड़ती हैं। लड़कों में एक-तिहाई से अधिक कमाई करने के लिए पढ़ाई छोड़ देते हैं। शिक्षकों और विशेषज्ञों का कहना है कि यह डेटा जमीनी स्थिति को दर्शाता है। पुणे में शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाली संस्था लीडरशिप फ ॉर इक्विटी के सह संस्थापक सिद्धेश सरमा कहते हैं, ‘लड़कों के लिए पढ़ाई छोडऩे की वजह आर्थिक ही है। ज्यादातर लड़कियों की शादी उनके डिग्री कोर्स के पहले या दूसरे साल में हो जाती है।’ सरमा शिक्षा नीति में सुधार के लिए महाराष्ट्र राज्य सरकार के साथ मिलकर काम करते हैं। सरमा कहते हैं, ‘शादी करने के लिए कॉलेज की पढ़ाई बंद करने वाली लड़कियों के अनुपात को देखकर आप हैरान रह जाएंगे। बहरहाल, स्कूल छोडऩे की दर में आर्थिक कारण की दर चिंताजनक रूप से ज्यादा है।’
करीब 70 प्रतिशत से अधिक छात्रों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा मिलती है और चार में से केवल एक को ही माध्यमिक स्तर की शिक्षा मिलती है। स्नातक स्तर पर 10 में से नौ छात्र शिक्षा के लिए भुगतान करते हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि आधे से अधिक छात्र महंगे निजी संस्थानों में पढ़ाई करते हैं खासतौर पर कक्षा 12 के बाद। सरमा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि भारत में प्रति व्यक्ति आमदनी कम होने की तुलना में उच्च शिक्षा पर खर्च अधिक है। देश भर के विशेषज्ञों ने स्कूलों में सुधार के साथ-साथ भावी छात्रों के लिए शिक्षा पर सरकारी खर्च बढ़ाने की वकालत की है ।
नागपुर से करीब 200 मील की दूरी पर अकोट के शिवाजी कॉलेज में विज्ञान पढ़ाने वाले गजानन विरकर का कहना है कि जो अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में दाखिला दिलाने को तरजीह देते हैं वे भी उच्च शिक्षा के लिए फ ीस चुकाने से पीछे हट जाते हैं। विरकर कहते हैं, ‘धन की कमी का मतलब है स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी और शिक्षकों से जुड़ी रिक्तियां तेजी से नहीं भरी जाती हैं। छात्रों के साथ शिक्षक शहरों में रहना चाहते हैं और किसी को भी देश के सुदूर इलाकों में शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति की परवाह नहीं है।’

First Published - August 2, 2020 | 10:55 PM IST

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