आगरा ताजमहल के लिए मशहूर रहा है, लेकिन यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) से भरा एक विनिर्माण केंद्र भी बन गया है जहां इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्जे से लेकर धातु उत्पादों, पेंट और रसायनों से लेकर जूते तक सब कुछ बनाए जाते हैं।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत के पांच साल बाद भी एमएसएमई की शिकायत यह है कि अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था परिवर्तनकारी रही है और कई करों को दर्ज कराने की आवश्यकता भी कम हो गई है लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी क्रेडिट रिफंड में देरी रही है।
आप जिस किसी से भी बात करें चाहे वह एमएसएमई मालिक हों, कर वकील हो, नैशनल चैंबर्स ऑफ इंडस्ट्रीज ऐंड कॉमर्स (एनसीआईसी), आगरा फुटवियर मैन्युफैक्चरर्स ऐंड एक्सपोर्टर्स चैंबर (एएफएमईसी) और आगरा शू मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आसमा) जैसे उद्योग निकाय हों, वे सभी इस बात पर जोर देते हैं कि जीएसटी कुछ प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहा है।
एनसीआईसी के अध्यक्ष और पेंट तथा रसायन कारोबार संचालित करने वाले शलभ शर्मा का कहना है, ‘जीएसटी लागू करना एक स्वागत योग्य कदम था। लेकिन समस्याएं बरकरार हैं। सबसे बड़ी दिक्कत तब होती है जब कोई किसी कारोबार के सिलसिले में आपूर्तिकर्ता के साथ सौदा किया जाता है और जीएसटी का भुगतान करना पड़ता है लेकिन आपूर्तिकर्ता को ऐसा नहीं करना पड़ता है। इसका मतलब है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट के लिए मनाही हो जाती है।’
पुराने आगरा के पुराने केंद्र में एनसीआईसी का कार्यालय ऐसी गली में है जहां कई व्यावसायिक प्रतिष्ठान मौजूद हैं। एनसीआईसी के कार्यालय में बैठे शर्मा का कहना है कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं खासतौर पर कोविड-19 महामारी के दौरान, जब एक वास्तविक आपूर्तिकर्ता या विक्रेता को कार्यशील पूंजी के अभाव या कारोबारी वजहों के कारण दुकान बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उस प्रतिष्ठान से इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) बकाया तब हमेशा के लिए अटक गया।
शर्मा का कहना है, ‘कुछ मामलों में कारोबार के मालिकों को इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि तंत्र में फंसा 20-25 प्रतिशत क्रेडिट उन तक कभी भी नहीं पहुंचेगा।’ वह कहते हैं कि यह संभव है कि रिफंड में देरी हो रही है क्योंकि सरकार बेहतर जीएसटी संग्रह दिखाना चाहती है।
एक और मुद्दा यह है कि आयकर अद्यतन रिटर्न की अनुमति देता है जिसके तहत किसी व्यक्ति के पास गलतियों को ठीक करने का मौका रहता है लेकिन जीएसटी के मामले में ऐसा संभव नहीं है।
आगरा में एक चार्टर्ड अकाउंटेंट सुशील माहेश्वरी कहते हैं, ‘हम धोखाधड़ी पर शिकंजा कसने की जरूरत को समझते हैं। लेकिन वास्तविक गलतियों या लिपिकीय त्रुटियों को ठीक करने का प्रावधान होना चाहिए। जीएसटी फॉर्म या अपडेटेड रिटर्न में इन त्रुटियों को ठीक करने का कोई प्रावधान नहीं है। यह कारोबारों के लिए भारी संकट का कारण बनता है।’ नियम में बदलाव किए जा रहे हैं जिससे सीए और कर वकीलों की चिंता बढ़ी है।
हालांकि नाम न बताने की शर्त पर आगरा में एमएसएमई के मालिकों ने उन रिश्वत के बारे में बात की है जो उन्हें अपने इनपुट टैक्स क्रेडिट को पाने और जीएसटी का काम पूरा कराने के लिए भुगतान करना पड़ा है क्योंकि महामारी के दौरान आर्थिक मंदी के कारण उनके कई आपूर्तिकर्ताओं और विक्रेताओं को अपनी दुकान बंद करनी पड़ी थी।
माहेश्वरी कहते हैं, ‘जब किसी प्रोप्राइटरशिप कंपनी के मालिक की मृत्यु हो जाती है, तब जीएसटी नंबर उस व्यक्ति को नहीं मिल जाता है जो भी अगला व्यक्ति उस कारोबार को संभाल रहा है। उन्हें नए जीएसटी नंबर के लिए आवेदन करना होगा और इसमें कुछ महीने लगते हैं। तब तक कोई कारोबार नहीं होता है। महामारी के दौरान हमारे पास ऐसे कई मामले थे।’
यूरोप में फुटवियर का निर्यात करने वाली और तैयार करने वाली कंपनी एटी एक्सपोर्ट्स के मालिक राजीव वासन का आगरा के बाहरी इलाके में एक बड़ा कारखाना है। वह कहते हैं, ‘कुल मिलाकर, जीएसटी संगठित क्षेत्र के लिए और विशेष रूप से निर्यात करने वाली कंपनियों के लिए एक शानदार कदम रहा है।’ वह कहते हैं कि यह घरेलू कंपनियों के लिए कठिन रहा है। जूते-चप्पलों आदि के लिए उलट शुल्क संरचना का मुद्दा खराब रहा।
वासन एएफएमईसी के महासचिव हैं, जिसमें वैसे जूतों के निर्माता शामिल हैं जो केवल अन्य देशों में निर्यात करते हैं। दूसरी संस्था, आसमा है जिनमें वैसे फुटवियर निर्माता शामिल हैं जो घरेलू बाजार में बिक्री करते हैं। इसके अध्यक्ष ओपिंदर सिंह लवली ने नियमों, दरों और स्पष्टीकरणों में लगातार बदलाव सहित उन्हीं मुद्दों पर बात की।
आगरा के एक कर वकील अनिल वर्मा कहते हैं, ‘जीएसटी कानूनों और नियमों में कई बदलाव हुए हैं। एक औसत एमएसएमई कारोबार के मालिक या यहां तक कि चार्टर्ड अकाउंटेंट और वकीलों के लिए, इसे बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। हम इस बात की सराहना करते हैं कि खामियों, भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी आदि से निपटने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन हर बार जब जीएसटी परिषद की बैठक होती है तब आप खूब बदलाव देखेंगे चाहे वह जीएसटी दाखिल करने की तारीख हो फॉर्म, ई-वे बिल, रिफंड, दरों आदि पर भी ऐसा ही है। ’
जीएसटी की कारोबारी रैंकिंग
अधिकांश कारोबारी इस बात को स्वीकार करते हैं कि कुल मिलाकर और महामारी के दौरान कुछ मामलों को छोड़कर जीएसटी अधिकारियों के साथ उनका व्यवहार निष्पक्ष रहा है। स्थानीय स्तर पर जो भी हल किया जा सकता है उसे सरकारी अधिकारियों के साथ लगातार बातचीत के माध्यम से निपटाया जाता है जबकि बड़े मुद्दे नई दिल्ली में प्रशासनिक श्रृंखला में भेजी जाती है।
एक और मुद्दा जो कारोबारों को परेशान करता है वह यह है कि वस्तुओं पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाया जा सकता है लेकिन इसे सेवाओं में नहीं पाया जा सकता है। एनसीआईसी के उपाध्यक्ष मयंक मित्तल बताते हैं, ‘जीएसटी की एक व्यावसायिक रैंकिंग होनी चाहिए थी। कंपनियों की रैंकिंग इस आधार पर की जानी थी कि वे कितनी तत्परता से जीएसटी रिटर्न दाखिल करती हैं या उन्होंने धोखाधड़ी की हो या सेंध लगाई हो आदि। हालांकि ऐसा नहीं हुआ है। हम चाहते हैं कि इस रैंकिंग को यह जानने के लिए लागू किया जाए कि हम किसके साथ व्यापार कर रहे हैं।’
वर्मा का कहना है कि केंद्रीय और राज्य जीएसटी अधिकारियों की एमएसएमई से जुड़े सभी नियमों में बदलाव और स्पष्टीकरण के बारे में विशेष रूप से पकड़ होनी चाहिए विशेष रूप से क्षेत्रीय भाषाओं में। उनका कहना है कि कर प्रणाली ने निश्चित रूप से कारोबारों के लिए प्रशासनिक लागत में वृद्धि कर दी है। एनसीआईसी के शर्मा इससे सहमत हैं। वह कहते हैं, ‘हमें अपने सीए और वकीलों को अधिक भुगतान करना है और अतिरिक्त लिपिक कर्मचारियों को काम पर रखना है। इसके अलावा आपको लेनदेन का मिलान करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि जीएसटी रिटर्न समय पर दाखिल किए जाएं। अगर गलतियां बनी भी रहती हैं तब भी आप कभी भी अपना कर क्रेडिट वापस नहीं पा सकते हैं।’