छोटे व मझोले उद्योग कोविड की चुनौती से उबर चुके हैं और कर्ज आराम से चुकाया जा रहा है। लघु एवं मझोले उद्यमों को कर्ज देने वाले सबसे बड़े संस्थान भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक शिवसुब्रमण्यन रमन मानते हैं कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी तो देश की वित्तीय व्यवस्था को होने वाला नुकसान बहुत कम हो जाएगा सरकारी गारंटी वाले कर्ज को चुकाने में चूक बहुत कम हो रही है। रमन ने सिद्धार्थ कलहंस को बताया कि एमएसएमई से कर्ज की वापसी सामान्य स्तर पर आ गई है। मुख्य अंश:
महामारी के दौरान MSME क्षेत्र सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ था। उसकी आज की स्थिति आपको कैसी लगती है?
सरकार ने आपात ऋण गारंटी योजना (ECLGS) शुरू की, जिसके तहत महामारी के दौरान बेहद कठिन चुनौतियों से गुजर रहे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) को आसानी से कर्ज मिलने लगा। MSME को लगभग 3.5 लाख करोड़ रुपये का ऋण प्राप्त हुआ। इस कदम से ये उद्यम एनपीए की श्रेणी में जाने से बच गए। भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के सम्मिलित प्रयासों की वजह से इन उद्योगों को बड़े पैमाने पर सहयोग मिला।
क्या कर्ज की वापसी समय पर हो रही है?
MSME की दशा में बहुत अधिक सुधार आया है, इसलिए कर्ज वापसी की स्थिति भी लगभग सामान्य हो गई है। सीमित संख्या में लोगों को रोजगार देने वाली छोटी इकाइयों पर ऐसे कर्ज दिख सकते हैं, जिनके वापस आने की उम्मीद नहीं के बराबर है। लघु व्यवसाय के क्षेत्र में 5 करोड़ रुपये से भी कम का ऋण जोखिम की बात होती है। हमें इस क्षेत्र को अलग से कुछ फायदा देना होगा। मगर बड़े संस्थानों ने कठिन परिस्थितियों से उबरने की जबरदस्त क्षमता दिखाई है।
कर्ज देने और रीफाइनैंस करने की आपकी प्रक्रिया में तकनीक की वजह से क्या बदलाव आया है?
आज हम पूरी तरह से डिजिटल हो चुके हैं। हम अपने अधिकारियों को लैपटॉप साथ रखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ताकि वे कर्ज के लिए आवेदन कर रहे ग्राहकों को ब्योरा भरने में मदद कर सकें। कारोबारों का मूल्यांकन हम अल्गोरिदम की मदद से करते हैं। हमारी ऋण मूल्यांकन प्रणाली पूरी तरह से डिजिटल है। कर्ज की रकम भी पूरी तरह डिजिटल प्रक्रिया से दी जाती है। यह काम केंद्रीय व्यवस्था के जरिये किया जाता है।
स्टार्टअप के लिए आपके फंड ऑफ फंड्स को 7,200 करोड़ रुपये की मंजूरी मिली है, लेकिन अब तक सिर्फ 2,500 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया है। इतना अंतर क्यों है?
यह फंड ऑफ फंड्स है। हमने 80 से ज्यादा एआईएफ को मंजूरी दी है, जिन्होंने तकरीबन 700 कंपनियों में निवेश किया है। इस प्रकार मंजूर की गई धनराशि लगभग 7,200 करोड़ रुपये है। इसमें थोड़ा समय लगने वाला है। कोई भी कंपनी बड़ी मात्रा में धन नहीं चाहती है। रकम हमेशा किस्तों में ही जारी की जाती है। आपको चार से पांच साल की अवधि दी जाती है जिसमें आप उस रकम का इस्तेमाल करते हैं। कुछ समय बाद हम कर्ज जारी होने की रफ्तार भी बढ़ते देखेंगे।
बैंकों का भी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को कर्ज देने पर जोर है। इससे सिडबी की गतिविधियों का दायरा सिमट तो नहीं जाएगा?
हमारा भविष्य इस बात पर निर्भर नहीं है कि हम प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को कितना कर्ज देते हैं। अब हम जोखिम को बेहतर तरीके से संभालने और बेहतर कर्ज देने पर विचार कर रहे हैं। हम डायरेक्ट फाइनैंसिंग पर अपनी लेखा-बही को और मजबूत बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहते हैं। हमें बड़े पैमाने पर डेटा प्राप्त हो रहा है और निगरानी की हमारी पूरी व्यवस्था को डिजिटल साधनों की मदद से ऑटोमेटेड बनाया जा रहा है। जीएसटी के आंकड़ों को अच्छी तरह समझने में महारत हासिल करने के लिए हमने कुछ फिनटेक कंपनियों के साथ काम किया है।
दो लाख करोड़ रुपये की कुल लेखा-बही में से 80 प्रतिशत रीफाइनैंसिंग और बाकी सीधा कर्ज है। इसमें कितनी वृद्धि का लक्ष्य है?
हम बैलेंस शीट तेजी से बढ़ाने के लक्ष्य के साथ काम कर रहे हैं। हमारी 80 शाखाएं हैं। एनबीएफसी रीफाइनैंसिंग भी ऐसा ही क्षेत्र है जिसे हम विकसित करना चाहते हैं। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) को हमसे कर्ज का फायदा मिलना चाहिए। हम NBFC पोर्टफोलियो की अच्छी तरह जांच करते हैं।