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‘अर्थव्यवस्था को ताकत देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की जरूरत’

Last Updated- December 12, 2022 | 4:21 AM IST

बीएस बातचीत
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के निवर्तमान अध्यक्ष उदय कोटक का कहना है कि कोविड-19 की दूसरी लहर से अर्थव्यवस्था को पहुंची चोट पर मरहम लगाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत आन पड़ी है। श्रीमी चौधरी ने कोविड महामारी और अर्थव्यवस्था से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर उनसे बात की। संपादित अंश:
टीकाकरण पर क्या सीआईआई उद्योग जगत की किसी खास मांग पर विचार कर रहा है?
सीआईआई अपने सदस्यों (कंपनियों) के साथ मिलकर उनके कर्मचारियों के टीकाकरण पर काम कर रहा है और इस दिशा में प्रगति भी हो रही है। भारतीय कारोबार एवं उद्योग के लिए टीके की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए हम सरकार और टीका विनिर्माताओं के साथ काम कर रहे हैं।

क्या सरकार की टीकाकरण नीति प्रभावी रूप से काम कर रही है?
टीकाकरण का सफल क्रियान्वयन भविष्य में देश की अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस समय टीकाकरण कार्यक्रम के लिए तीनतरफा (केंद्र, राज्य एवं निजी क्षेत्र) चर्चा हो रही है और इसमें प्रत्येक भागीदार एक दूसरे से प्रतिस्पद्र्धा करते दिख रहे हैं। इससे स्थिति पेचीदा हो जाएगी। अब टीकाकरण पर राज्यों का निजी क्षेत्र से प्रतिस्पद्र्धा करना कितना असरदार होगा इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। मुझे लगता है कि सरकार को टीकाकरण के लिए आवश्यक खुराक का 75 प्रतिशत हिस्सा स्वयं खरीदकर राज्यों को इनका वितरण करना चाहिए। शेष 25 प्रतिशत हिस्सा निजी क्षेत्र को सीधे आवंटित किया जा सकता है।

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से अर्थव्यवस्था पर कितना असर होगा?
इसे लेकर कोई संदेह नहीं कि कोविड-19 संक्रमण का देश की अर्थव्यवस्था पर असर दिखेगा। मेरा आकलन है कि वित्त वर्ष 2022 के अंत तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार उतना ही रह जाएगा जितना वित्त वर्ष 2020 के अंत में था। इसे ऐसे समझें कि अगर वित्त वर्ष 2020 में यह 100 था तो वित्त वर्ष 2021 में 8 प्रतिशत गिरावट के साथ यह 92 रह गया। वित्त वर्ष 2022 के अंत में 8 से 9 प्रतिशत वृद्धि के साथ यह वापस 100 पर आ जाना चाहिए।

क्या अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की जरूरत है?
अर्थव्यवस्था पर कोविड महामारी का असर कम करने और आर्थिक गतिविधियों को तेजी देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की जरूरत है। सबसे पहले समाज के कमजोर वर्ग के लोगों तक प्रत्यक्ष नकद अंतरण जैसे माध्यमों से रकम सीधी पहुंचाई जा सकती है। इसके बाद 3 लाख करोड़ रुपये के आपात कोष के प्रावधानों के तहत अत्यधिक दबाव झेल रहे क्षेत्रों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। सरकार को सभी क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक योजना तैयार करनी चाहिए और वित्तीय मदद की राशि बढ़ाकर 5 लाख करोड़ रुपये की जानी चाहिए।

भविष्य में दफ्तर की कार्य पद्धति कैसी रहने वाली है?
कार्यालयों में अब पहले की तरह चहल-पहल नहीं रह जाएगी। मुझे लगता है कि कर्मचारियों की संख्या पहले जितनी रहने के बाद भी दफ्तरों आदि के लिए जगह की मांग निश्चित तौर पर कम होगी। व्यावसायिक गतिविधियों एवं दफ्तरों के लिए जगह कुछ जरूर उपलब्ध रहेगी लेकिन अब लोग अपने घरों से ही ज्यादातर काम करेंगे। अब कर्मचारियों के लिए कार्यालय आने की बंदिश समाप्त हो जाएगी और वे दुनिया के किसी कोने से भी काम कर सकते हैं।

महामारी में लोगों से उनके रोजगार छिन गए हैं। क्या भविष्य में स्थिति सामान्य हो जाएगी?
रोजगार के मोर्चे पर हुए नुकसान को बेहतर ढंग से समझने के लिए इसे दो हिस्सों- रणनीतिक एवं ढांचागत- में विभाजित किया जाना चाहिए। रणनीतिक इसलिए क्योंकि महामारी के कारण कारोबार थम गया है, लेकिन कुछ समय बाद यह दोबारा रफ्तार पकड़ लेगा। ढांचागत से तात्पर्य है कि कारोबारी ढांचा अब बुनियादी तौर पर बदल चुका है और पहले की तरह नहीं रह गया है। मुझे लगता है कि आने वाले समय के लिए नए कौशल, नए अवसर, नई प्रतिभाएं, ढांचागत बदलाव आवश्यक हो गए हैं।  

 

First Published - May 27, 2021 | 11:43 PM IST

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