facebookmetapixel
Life Certificate for Pensioners 2025: पेंशनधारक ध्यान दें! ये लोग नहीं कर सकते डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र जमाGold-Silver Price Today: सोने की कीमतों में गिरावट, 1 लाख 21 हजार रुपए के नीचे; चांदी के भी फिसले दामSwiggy vs Zomato: डिस्काउंट की जंग फिर शुरू! इस बार कौन जीतेगा मुनाफे की लड़ाई?₹238 से लेकर ₹4,400 तक के टारगेट्स! ब्रोकरेज ने इन दो स्टॉक्स पर दी खरीद की सलाहDelhi AQI Today: दिल्ली में सांस लेना हुआ मुश्किल! ‘बहुत खराब’ AQI, विशेषज्ञों ने दी चेतावनी₹9 तक का डिविडेंड पाने का आखिरी मौका! ये 5 कंपनियां 6 नवंबर को होंगी एक्स डेट परTata Motors CV के शेयर कब से ट्रेडिंग के लिए खुलेंगे! जानें लिस्टिंग की पूरी डिटेलAI को पंख देंगे AWS के सुपरकंप्यूटर! OpenAI ने $38 अरब की साझेदारी की घोषणाStock Market Update: शेयर बाजार सुस्त, सेंसेक्स में 100 अंकों की गिरावट; मिडकैप्स में हल्की बढ़तStocks To Watch Today: Airtel, Titan, Hero Moto समेत इन स्टॉक्स पर रहेगा निवेशकों का फोकस

व्यय सुधार पर बने निकाय: देवरॉय

Last Updated- December 11, 2022 | 10:52 PM IST

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन विवेक देवरॉय ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की तर्ज पर केंद्र, राज्यों और स्थानीय निकायों में व्यय सुधार के लिए समिति गठित करने पर आज जोर दिया। थोक मुद्रास्फीति के 12 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बारे में उन्होंने कहा कि आर्थिक वृद्घि में सुधार कीमतों में वृद्घि से बड़ा मुद्दा है। बतौर मुख्य वक्ता बिज़नेस स्टैंडर्ड अवॉर्ड्स: उत्कृष्टता का जश्न कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देवरॉय ने कहा, ‘मेरे विचार से राज्यों के साथ बातचीत कर व्यय पर चर्चा के लिए जीएसटी परिषद जैसा एक मंच बनाने का यह सही वक्त है।’
उन्होंने कहा कि आम बजट आने वाला है और इसकी मांग हो रही है कि सरकार को बुनियादी ढांचे पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 10 फीसदी, शिक्षा पर 6 फीसदी, स्वास्थ्य पर 4 फीसदी और रक्षा पर 3 फीसदी खर्च करना चाहिए, जो कुल मिलाकर जीडीपी का 23 फीसदी होता है। लेकिन केंद्र और राज्यों के कर-जीडीपी अनुपात की तुलना करें तो यह आज 15 फीसदी से भी कम है। उन्होंने कहा, ‘कर राजस्व के तौर पर जीडीपी का 15 फीसदी तक मिलता है जबकि खर्च 23 फीसदी करने की मांग की जाती है।’
देवरॉय ने कहा कि अर्थशास्त्री कह सकते हैं कि सरकार को ज्यादा पूंजीगत खर्च करना चाहिए और इसके लिए प्रति-चक्रीय राजकोषीय नीति होनी चाहिए लेकिन महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन नीतियों में उसका स्तर कितना होना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि राज्यों में पूंजीगत व्यय में दो साल लग सकते हैं, ऐसे में प्रति-चक्रीय राजकोषीय नीति कब तक पूरी होगी। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि केंद्र सरकार के लिए क्या महत्त्वपूर्ण है और राज्य सरकार के लिए क्या अहम है।
केंद्र सरकार को उन क्षेत्रों पर खर्च करना चाहिए जो संघ की सूची में आते हैं और राज्यों की सूची वाले क्षेत्रों में से खर्च नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मान लें अगर कल को कोई और महामारी आ जाती है तो लोगों की प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए कि महामारी का निर्धारण महामारी रोग अधिनियम, 1897 द्वारा किया गया है। अब केंद्र के पास इस अधिनियम के तहत कोई अधिकार नहीं है सिवाय सीमा के। सभी अधिकार राज्यों के पास हैं। जरूरत पडऩे पर लॉकडाउन का अधिकार भी राज्य स्तर पर नहीं बल्कि स्थानीय प्रशासन के पास है।
देवरॉय ने कहा कि कुछ केंद्र प्रायोजित योजनाएं हैं जिनका 100 फीसदी वित्तपोषण केंद्र द्वारा किया जाता है, वहीं कुछ योजनाओं में राज्य सरकारों को भी बराबर का योगदान देना होता है। उन्होंने कहा, ‘हमें प्राथमिकता तय करने की जरूरत है कि केंद्र सरकार के लिए क्या जरूरी है और राज्य सरकारों के लिए क्या महत्त्वपूर्ण है। क्या स्वास्थ्य महत्त्वपूर्ण है? केंद्र सरकार को स्वास्थ्य पर खर्च करना चाहिए। लेकिन स्वास्थ्य पूरी तरह से राज्य की सूची में आता है।’   
देवरॉय ने कहा कि राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है जिसमें दो-तिहाई सार्वजनिक व्यय राज्य स्तर पर करने की बात कही गई है।
निजी पूंजीगत व्यय में सुधार के मसले पर देवरॉय ने कहा कि कुछ क्षेत्रों में निवेश में तेजी आई है। उन्होंने कहा कि मांग में सुधार होने के बाद पूंजी व्यय में भी तेजी आएगी।
कोविड की वजह से राज्य सरकार के स्तर पर पूंजीगत व्यय पिछड़ रहा है। उन्होंने कहा कि निजी व्यय सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर निवेश बढ़ाने की जरूरत है।
आम बजट आने में करीब डेढ़ महीना बचा है और उन्होंने सभी छूटों को खत्म कर प्रत्यक्ष कर में व्यापक सुधार पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘हर व्यक्ति और उद्यम की सामान्य मंशा होती है कि मेरे लिए रियायतों को जारी रखा जाए लेकिन दूसरों से वापस ले लिया जाए। इस तरह से आप वाजिब सुधार नहीं कर सकते हैं।’
उन्होंने कहा कि वृद्घि में सुधार हो रहा है और चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्घि 10 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है और अगले साल यह 7 फीसदी रह सकता है। उनका कहना है कि अगर महामारी की तीसरी लहर आती भी है तो अर्थव्यवस्था पर उसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
देवरॉय ने कहा कि शहरी श्रम बाजार में श्रमिकों की पहचान करने जैसे कुुछ मसले हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि निर्माण, व्यापार और परिवहन क्षेत्र में सुधार हुआ है और शहरी श्रम बाजार भी बेहतर प्रदर्शन शुरू कर रहा है।
देवरॉय ने कहा कि देश ने दो साल गंवा दिए लेकिन इस दो साल के बाद आर्थिक वृद्घि ज्यादा प्रभावित नहीं होगी। थोक मुद्रास्फीति के 12 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बारे में देवरॉय ने कहा कि ज्यादा चिंता आर्थिक वृद्घि में सुधार को लेकर होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि थोक मुद्रास्फीति के ताजा आंकड़ों के बावजूद मुद्रास्फीति के आंकड़े चिंताजनक नहीं लगते हैं।
महामारी की वजह से देश में कम से कम 20 करोड़ लोग गरीबी में पहुंच गए हैं। इस पर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं मालूम कि ये आंकड़े कहां से आए हैं। यह हो सकता है कि गरीबी रेखा से ऊपर आने वाले स्वास्थ्य पर निजी व्यय बढऩे की वजह से गरीबी रेखा के नीचे चले गए हों। अगर ऐसा है तो विकास के जोर पकडऩे पर वे फिर गरीबी रेखा से ऊपर आ जाएंगे।

First Published - December 14, 2021 | 11:26 PM IST

संबंधित पोस्ट