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ट्विटर के गढ़ में सेंध लगाता देसी ‘कू’

Last Updated- December 12, 2022 | 8:31 AM IST

भारत में अचानक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर हलचल बढ़ गई है। किसानों के विरोध प्रदर्शन को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर को सरकार के साथ गतिरोध का सामना करना पड़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल और रविशंकर प्रसाद सहित कई मंत्री ट्विटर के एक देसी संस्करण ‘कू’  पर जा रहे हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी आईटी मंत्रालय एवं भारतीय डाक के साथ इस प्लेटफॉर्म पर आ चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले साल अगस्त में मन की बात में ‘कू’ को मेड-इन-इंडिया ऐप की संज्ञा दी थी हालांकि अभी भी वह या प्रधानमंत्री का आधिकारिक कार्यालय इस प्लेटफॉर्म पर नहीं आया है। प्रधानमंत्री के ट्विटर पर 6.55 करोड़ से अधिक फॉलोअर हैं और सरकार ने जानकारी का प्रसार करने के लिए इस प्लेटफॉर्म का बड़े पैमाने पर उपयोग किया है।
पिछले साल अप्रैल में लॉन्च किया गया ‘कू’ ऐंड्रॉइड फोन उपयोगकर्ताओं के लिए हिंदी, कन्नड़, तमिल, तेलुगू और मराठी सहित छह भाषाओं में उपलब्ध है, हालांकि अंग्रेजी इंटरफेस अभी तक केवल आईओएस पर उपलब्ध है। जब आप ऐप डाउनलोड करते हैं, तो एक चिरौंजी पीली चिडिय़ा पेज पर आपका स्वागत करती है। अगर आप ट्विटर से ट्वीट करते है तो ‘कू’ से कूइंग करते है।
इसका इंटरफेस साफ, स्पष्ट है और मौजूदा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के ट्रेंड, फीड, हैशटैग वगैरह जैसी विशेषताओं के साथ इसका उपयोग करना काफी आसान है। इसमें प्रोफाइल पेज ट्विटर से काफी मिलते-जुलते हैं, लेकिन फीड इंटरफेस कम अव्यवस्थित सा लगता है। यह ऐप प्रोफेशन, लोकप्रियता और प्रोफाइल जानकारियों के आधार पर प्रोफाइलों को भी अलग करता है, जिसमें सरकार, न्यूज पेपर एवं चैनल, पत्रकार, कवि तथा लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, कारोबारी जैसी श्रेणियां उपलब्ध हैं।  
दिलचस्प बात यह है कि सराकरी हैंडलों से किए गए सभी कू अंग्रेजी में हैं और इसमें बुधवार को एक ट्विटर ब्लॉग पर की प्रतिक्रिया भी शामिल है। वहीं अमेरिकी कंपनी ट्विटर ने कानूनी अनुरोधों का पालन नहीं करने वाले मामले पर सरकार के साथ अपनी बातचीत को आगे बढाया है।
कू ऐप भी टैक्सीफॉरश्योर को लॉन्च करने वाले अप्रमेय राधाकृष्ण के दिमाग की उपज है।  इससे पहले राधाकृष्ण ने मयंक बिदवाटका के साथ मिलकर एक और स्वदेशी ऐप ‘वोकल’ विकसित किया था। सीईओ राधाकृष्ण के अनुसार वोकल, रेडिट तथा कोरा की तरह स्वदेशी भाषा में उपलब्ध एक प्लेटफॉर्म है।  
उपयोगकर्ता वोकल पर अपनी भाषा में सवाल पूछते हैं और कई विशेषज्ञ उनका जवाब देते हैं। बिदवाटका कहते हैं, ‘ये विशेषज्ञ न केवल सवालों का जवाब देना चाहते हैं बल्कि स्वतंत्र रूप से अपनी राय भी व्यक्त करना चाहते हैं। माइक्रोब्लॉगिंग किसी की राय को व्यक्त करने का सबसे अच्छा प्रारूप है, इसलिए हमने देखा कि क्या हो रहा है और यह महसूस किया कि इसमें देसी भाषा का अभाव है। जब हमने ट्विटर पर देखा, तो भारतीय भाषाओं में बहुत कम पैठ थी, इसलिए हमने महसूस किया कि इसकी काफी जरूरत है।’
ऐप के नौ महीने की अवधि में 30 लाख से अधिक डाउनलोड हो चुके हैं  और बिदवाटका का दावा है कि उनका उत्पाद लोगों को सर्च करने के लिए बेहतर इंटरफेस उपलब्ध कराने के साथ ट्विटर की तुलना में अधिक सुलझा हुए मंच प्रदान करता है। एक बार जब आप इस प्लेटफॉर्म पर अपनी भाषा का चयन करते हैं, तो आप उस भाषा में लिखने वाले लोगों को देखना शुरू कर देते हैं। कंपनी असमिया, मणिपुरी, उर्दू और संस्कृत सहित इस वर्ष के अंत तक 25 भाषा विकल्प उपलब्ध कराने की प्रक्रिया में है।
बिदवाटका ने कहा, ‘हमारी टीम पहले से ही वोकल के माध्यम से भारत के लिए नवाचार कर रही थी, इसलिए ‘कू’ के जरिये बेहतर अनुभव उपलब्ध कराना हमारे लिए आसान था। हम पहले दिन से कू के निर्माताओं से बहुत रुचि प्राप्त कर रहे थे।’ इसने पिछले हफ्ते मौजूदा निवेशकों एक्सेल, कलारी कैपिटल, ब्लू वेंचर्स और ड्रीम इनक्यूबेटर से फंडिंग के जरिये 41 लाख डॉलर जुटाए जिसमें एक नए निवेशक 3वन4 की भी भागीदारी रही।
उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि ट्विटर जैसे मौजूदा लोकप्रिय मंच से प्रतिस्पर्धा करने के लिए कू को बहुत अधिक उपयोगकर्ताओं को अपने मंच पर लाना होगा। सरकार को भी इसका समर्थन करने के लिए अपना पूरा जोर लगाना होगा। संचार-रणनीति सलाहकार कार्तिक श्रीनिवासन ने कहा, ‘इस तथ्य को छोड़कर कि सरकारी निकायों और कुछ लोकप्रिय हस्तियों ने इसका उपयोग किया है, कू के पास ट्विटर का एक सक्षम विकल्प होने के लिए कुछ भी अनूठा नहीं है। यह सिर्फ एक और तरह का ट्विटर है। देश में टिकटॉक के भी कई क्लोन देखे गए हैं जो उसकी अनुपस्थिति को भरने का प्रयास कर रहे हैं। यह छोटी अवधि की दौड़ की तरह लग रहा है।’
हालांकि कई लोग इसकी सफलता को लेकर सकारात्मक हैं। नाउफ्लोट्स के सह-संस्थापक जसमिंदर सिंह गुलाटी ने कहा, ‘भले ही यह ट्विटर की तरह दिखता हो, लेकिन यह भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है, इसलिए इसका विस्तार हो सकता है।’ हालांकि श्रीनिवासन बताते हैं अगर आप ट्विटर पर भारतीय भाषओं में लिखना चाहते हैं तो आपको सिर्फ एक गूगल कीबोर्ड की मदद लेनी होगी।
ग्रेहाउंड रिसर्च के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी संचित वीर गोगिया ने कहा, ‘इस तरह के प्लेटफॉर्म विकसित करने का प्राथमिक कारण विभिन्न ऐप के बीच देखे गए अंतर को भरना है। इसके अलावा, ऐसे प्लेटफॉर्मों  को स्वतंत्र प्लेटफार्मों के रूप में देखा जाना चाहिए जो सूचना एवं विचारों के आदान-प्रदान सहायक होते हैं। जब तक कू सहित विभिन्न ऐप यह उपलब्ध कराते रहेंगे, उनकी उपयोगिता बनी रहेगी।’
पिछले साल सरकार द्वारा टिकटॉक सहित चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगाने के बाद से, सोशल मीडिया ऐप के कई भारतीय संस्करण बाजार में आ गए हैं। कुछ ऐप को लाखों लोगों ने डाउनलोड किया जो कुछ पूरी तरह फेल हो गए। ट्विटर का एक अन्य स्वदेशी विकृप, टूथर भी पिछले साल के अंत में सामने आया, जिसमें माइक्रोब्लॉगिंग के तरह कई विशेषताएं शामिल थीं। हालांकि यह अपनी पहचान नहीं बना सका।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी ब्रांड अपने प्रतिद्वंद्वी के क्लोन की तरह नहीं दिखना चाहता है, हालांकि लोग इस तरह के गुरिल्ला विज्ञापन में संलिप्त होते हैं जब उनके पास शून्य से शुरुआत करके ब्रांड बनाने के लिए आवश्यक मात्रा में संसाधन नहीं होते हैं।  
ब्रांड विशेषज्ञ हरीश बिजूर कहते हैं, ‘कई माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइटों को उस तरह की पहुंच एवं दृश्यता नहीं मिलती है जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है। इसलिए, उस क्षेत्र के सबसे बड़े खिलाड़ी के समान नाम होना बेहतर है।’ वह बताते हैं, ‘यदि आप एक माइक्रोब्लॉगिंग साइट हैं तो आप एक नाम लेते हैं जो ट्विटर की तरह दिखता है या लगता है। यदि आप एक नेटवर्किंग साइट हैं, तो आप एक लिंक्डइन की तरह अपने नाम में एक ‘इन’ डालना चाहते हैं।’

First Published - February 10, 2021 | 11:32 PM IST

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