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बिज़नेस स्टैंडर्ड सीमा नैजरेथ अवॉर्ड 2023: मीडिया व कूटनीति के बीच पनप रहा रिश्ता-पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन

“पत्रकारिता का अर्थशास्त्र भले ही बदल गया हो, लेकिन मुझे उम्मीद है कि हम लोगों की जरूरत के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचारों के तरीके खोज लेंगे।”

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बीएस संवाददाता   
Last Updated- April 03, 2024 | 10:40 PM IST

पत्रकारों और राजनयिकों के बीच संबंधों में बदलाव तथा राजनीति और तकनीक इसे कैसे प्रभावित कर सकती हैं? पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश सचिव रहे शिवशंकर मेनन ने आज पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए 25वें बिज़नेस स्टैंडर्ड-सीमा नैजरेथ अवॉर्ड 2023 कार्यक्रम में अपने मुख्य भाषण में यह सवाल उठाया। यह पुरस्कार हर साल बिज़नेस स्टैंडर्ड के 30 साल से कम उम्र के पत्रकारों को दिया जाता है।

चीन में अपने कार्यकाल के दिनों को याद करते हुए मेनन ने कहा, ‘अभाव और प्रतिकूल परिस्थितियों में, हम सभी ने एक साथ काम किया और जानकारी साझा की।’ उन्होंने बताया, ‘मुझे पहली बार 1970 के दशक की शुरुआत में पेइचिंग में सांस्कृतिक क्रांति के व्यस्त दिनों के दौरान कूटनीति में पत्रकारिता की भूमिका के बारे में पता चला।’

मेनन ने कहा कि आपातकाल के बाद जब वह दिल्ली लौटे तब भी विदेश नीति के जानकारों और पत्रकारों के बीच यह विश्वास मजबूत बना रहा। उन्होंने कहा, ‘विश्वास का सम्मान किया गया और एक समझ थी कि हम भारत के पक्ष में हैं और एक जटिल तथा कभी-कभी शत्रुतापूर्ण दुनिया से निपट रहे हैं।

उन्होंने कहा कि मीडिया से बात करने के 42 वर्षों के दौरान ऐसा केवल दो बार हुआ कि सार्वजनिक रूप से विश्वास में कही गई किसी बात के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया। मेनन ने कहा, ‘यह विश्वास और पेशेवराना अंदाज का उल्लेखनीय रिकॉर्ड है।’

उन्होंने स्पष्ट किया कि यह मिलीभगत नहीं है या ऐसा भी नहीं है कि मीडिया ने सत्ता के सामने सच बोलने या असुविधाजनक सच्चाइयों को उजागर करने या वस्तुनिष्ठ वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने का अपना काम नहीं किया है। मेनन ने कहा कि यह मीडिया ही था जो सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए तैयार था, खास तौर पर आपातकाल के बाद के दिनों में।

मेनन ने कहा कि उस समय सरकार और राजनेता आलोचना को लेकर उतने संवेदनशील नहीं थे। उन्होंने कहा, ‘पत्रकारिता की राय के प्रति सरकार की यह संवेदनशीलता इस तथ्य के कारण भी थी कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर के कई राजनेता खुद पत्रकार थे जैसे कि अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और पीवी नरसिंह राव।’

उन्होंने कहा, ‘आज अधिकांश पूर्णकालिक राजनेता हैं जिनके पास वास्तविक दुनिया के अन्य व्यवसायों का कोई अनुभव नहीं है। राजनेताओं की पिछली पीढ़ी पत्रकार, प्रोफेसर, वकील थे मगर आज, राजनीति को उनके पूरे समय, ऊर्जा और प्रयास की आवश्यकता है।’

मेनन ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप राजनेता अब आलोचना को लेकर ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं और और सार्वजनिक बहस और परिचर्चा में शामिल होने में कम सक्षम होते हैं। उन्होंने कहा कि तर्कवादी भारतीय अब निजी तौर पर अपने कौशल का प्रयोग करते हैं।

पिछले दौर को याद करते हुए उन्होंने कहा मीडिया वह मंच भी था जहां विचारों पर बहस और उन्हें परिष्कृत किया जाता था, जहां नीतियों को समझाया जाता था, सहमति बनाई जाती थी साथ ही विदेश में मित्रों और विरोधियों दोनों के लिए राजनयिक संकेत दिए जाते थे। उन्होंने कहा कि चीजें अब बदल रही हैं। उनका कहना था, ‘मीडिया ने नीति निर्माण, जनमत निर्माण और सार्वजनिक बहस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।’

मेनन ने कहा, ‘दो कारक इस बदलाव की व्याख्या करते हैं। इनमें से एक हमारी राजनीति की बदलती प्रकृति है। यह लगातार ऊपर से नीचे थोपी जाने वाली प्रक्रिया बन गई है और राजनीति समय के साथ मध्य मार्ग से दक्षिण धुर की ओर बढ़ा है। अब हालत यह हैं कि नेता अपनी करियर संभावनाओं को लेकर खुद ही असुरक्षित महसूस करते हैं।’

मेनन ने कहा कि आज राजनयिकों और पत्रकारों का संवाद एक आधिकारिक प्रवक्ता के माध्यम से होता है और राजनयिक मुद्दों पर पत्रकारों का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के साथ संवाद भी नियंत्रित होता है।

उन्होंने कहा कि मित्र देशों और विरोधियों को संकेत देने के लिए कूटनीति में सार्वजनिक बयानों के इस्तेमाल में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। उन्होंने कहा, ‘लेकिन यहां भी, इसके लिए उपलब्ध अन्य गैर-पत्रकारिता चैनलों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।’ उन्होंने इस ओर ध्यान दिलाया कि कैसे प्रौद्योगिकी ने इस खेल को बदल दिया है।

मेनन ने कहा, ‘पहले के तकनीकी बदलावों जैसे टेलीविजन का आना प्रिंट के लिए पूरक साबित हुआ न कि यह कोई विकल्प बना। लेकिन सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) में क्रांति मूल्यवर्धन के साथ ही एक विकल्प भी बनी और इसने नेताओं तथा राजनयिकों को अपने लक्षित दर्शकों के साथ संवाद करने के लिए वैकल्पिक माध्यम दिया।

उन्होंने कहा कि आईटीसी के चलते कूटनीति के तहत अन्य बाहरी कारकों को सार्वजनिक संकेत देने की जरूरत कम हो गई है ऐसे में कूटनीति में परंपरागत मीडिया की भूमिका भी सीमित हो गई। मेनन ने कहा कि विकसित देश बनने के लिए हमें अच्छी पत्रकारिता करने के साथ-साथ अभाव की राजनीति जैसी समस्याओं से आगे बढ़ने की जरूरत है।

पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए बिज़नेस स्टैंडर्ड सीमा नैजरेथ अवार्ड 2023 दिल्ली में कार्यरत सहायक समाचार संपादक सार्थक चौधरी को प्रदान किया गया। इस पुरस्कार के तहत 50,000 रुपये, एक चांदी की कलम और प्रशस्ति पत्र प्रदान किए जाते हैं। बिज़नेस स्टैंडर्ड की युवा पत्रकार सीमा नैजरेथ की मार्च 1999 में मृत्यु होने के बाद उनकी याद में नैजरेथ परिवार और बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा यह पुरस्कार दिया जाता है।

जूरी ने विभिन्न क्षेत्रों एवं व्यवसायों में आम लोगों पर नीतियों का प्रभाव को संवेदनशील एवं प्रभावशाली तरीके से उजागर करने के लिए चौधरी की सराहना की। इसमें फसल विविधीकरण के साथ किसानों की कठिनाइयों, नेट जीरो के लिए सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों के संघर्ष और विदेश में अपने युवाओं को शिक्षित करने के लिए मध्यवर्गीय भारत के बलिदानों के बारे में बताया गया है।

इस साल समारोह का आयोजन वर्चुअल माध्यम से किया गया। मुंबई के संवाददाता अजिंक्य कावले को स्पेशल मेंशन पुरस्कार दिया गया। इसके तहत 10,000 रुपये और प्रशस्ति पत्र प्रदान किए जाते हैं। जूरी ने पाया कि कावले ने पत्रकारिका के अपने छोटे से सफर में प्रभावशाली खबरें करने में रुचि दिखाई है और उनका दायरा काफी व्यापक रहा है।

सीमा नैजरेथ के पिता पीए नैजरेथ ने कार्यक्रम के समापन पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए पहले पुरस्कार समारोह को याद किया जिसका आयोजन उनकी बेटी के जन्मदिन 21 फरवरी को राष्ट्रपति भवन में हुआ था। कूटनीति के बारे में उन्होंने कहा कि कूटनीति के लिए इसे वस्तुनिष्ठ होना और संबंधित सरकार को हरसंभव बेहतरीन आकलन प्रदान करना आवश्यक है।

First Published : April 3, 2024 | 10:40 PM IST