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साहित्य में AI: नए अवसर या चुनौती लाई?

प्रकाशन के साथ-साथ लेखन के क्षेत्र में भी एआई का प्रयोग धड़ल्ले से होने लगा है, ऐसे में देखना होगा कि यह इन दोनों क्षेत्रों पर क्या असर डाल सकता है

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संदीप कुमार   
Last Updated- September 14, 2025 | 10:08 PM IST

‘डेथ ऑफ एन ऑथर’ यानी एक लेखक की मौत। वर्ष 2023 में आए एडन मार्शीन के इस उपन्यास ने दुनिया भर के साहित्य जगत में हलचल मचा दी थी क्योंकि इस उपन्यास का 95 फीसदी हिस्सा जेनरेटिव एआई टूल यानी चैटजीपीटी की मदद से लिखा गया था। इसी प्रकार जापान में उभरते हुए लेखकों को दिया जाने वाला प्रतिष्ठित अकुतागावा पुरस्कार 2024 में एक ऐसे उपन्यास को दिया गया जिसका थोड़ा हिस्सा एआई टूल चैटजीपीटी की मदद से लिखा गया था। इस उपन्यास का नाम है ‘द टोक्यो टॉवर ऑफ सिंपथी’ और इसकी लेखिका हैं री कुडन।

कुछ लोगों ने इसे लेखक की प्रयोगशीलता माना तो कुछ अन्य लोगों ने इसे मौलिकता की क्षति के रूप में परिभाषित किया। इन घटनाओं के सामने आते ही यह बहस छिड़ गई कि लेखन की दुनिया में कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस अथवा एआई) की क्या भूमिका हो सकती है और क्या यह वाकई रचनात्मकता की दृष्टि से वास्तविक लेखकों जैसी रचनाएं प्रस्तुत कर सकता है? हिंदी का साहित्य जगत भी पीछे नहीं रहा और साहित्यिक पत्रिका वनमाली में लेखक अमित श्रीवास्तव की एआई की सहायता से लिखी गई एक कहानी प्रकाशित की गई। कहानी का शीर्षक था- ‘आला-बाला मकड़ी का जाला।’ इस कहानी के बारे में लेखक अमित श्रीवास्तव कहते हैं, ‘इस कहानी को लिखने के पहले मैंने चैटजीपीटी को अपनी कुछ रचनाएं दी थीं जिनको समझकर उसने कहानी की भाषा विकसित की। इसे लिखने के लिए मुझे कुछ प्रॉम्प्ट भी देने पड़े।’

लेखक कहते हैं, ‘मेरा अनुभव यह रहा कि पूरी कहानी लिखने के बजाय किसी चरित्र को विकसित करने में, किसी पात्र की कहानी बुनने में, संवाद लिखने में या कहानी को कोई मोड़ देने में इसका बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर आप एआई को अच्छे तरीके से कोई प्रॉम्प्ट देते हैं तो कई बार बहुत चौंकाने वाले परिणाम सामने आते हैं| मुझे लगता है कि यह माध्यम ढेरों संभावनाओं से भरा हुआ है और आने वाले समय में इसका बहुत बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है।’

इन रचनाओं के लिए एआई (चैटजीपीटी या अन्य) जो वाक्य रचते हैं वे हमारी भाषाओं में रची गई उन अनगिनत पुस्तकों, लेखों तथा अन्य रचनाओं से लिए जाते हैं जो इंटरनेट पर मौजूद हैं। यह जो वाक्य, पैराग्राफ या लेख लिख पाता है वह केवल इसलिए संभव हो पाते हैं कि वे इंटरनेट पर पहले से मौजूद हैं। यही इसकी ताकत भी है और इसकी कमजोरी भी।

कैसे लिखते हैं एआई टूल्स?

चैटजीपीटी या अन्य एआई टूल्स का लेखन दरअसल हम सभी के लेखन से बना है। हमारे द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से या अन्य तरीकों से जो भी लिखित सामग्री इंटरनेट पर डाली जाती है, एआई टूल्स उन सभी को एकत्रित करके उसका इस्तेमाल करते हैं। मिसाल के तौर पर चैट जीपीटी लार्ज लैंग्वेज मॉडल यानी एलएलएम का इस्तेमाल करते हुए एकत्रित आंकड़ों का अध्ययन करता है और इस प्रकार वह अपने दम पर नई बात लिखने की क्षमता अर्जित करता है। इस प्रकार वह एक प्रकार के मशीनी लेखक की भूमिका निभाता है।

लोकभारती प्रकाशन के संपादक और कथाकार मनोज कुमार पांडेय ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘ यह सही है कि हिंदी के कुछ लेखकों ने अपनी कहानी या अपनी रचना का ढांचा खड़ा करने के लिए एआई का प्रयोग किया है लेकिन निकट भविष्य में हिंदी साहित्य पर एआई के उपयोग या एआई के लेखन का कोई तात्कालिक प्रभाव या कोई तात्कालिक संकट नहीं नजर आता है। इसकी मुख्य वजह है मानव व्यवहार की अनिश्चितता और अपनी संवेदनाओं को अलग-अलग शब्द देने की उसकी क्षमता। उदाहरण के लिए मुझे संदेह है कि एआई कभी भी फणीश्वरनाथ रेणु या कहें गीतांजलि श्री जैसे लेखकों के शब्दों-उनके मुहावरों को दोहरा सकता है। फिलहाल तो वह केवल मानक शब्दों का ही प्रयोग करता दिखता है।’

युवा आलोचक शशिभूषण मिश्र कहते हैं, ‘इससे दोनों तरह के हालात निर्मित हो सकते हैं। यह भी संभव है कि लेखक तथा अन्य रचनात्मक लोग खुद लिखने के स्थान पर अपने काम के कुछ हिस्से को इन एलएलएम से कराना शुरू कर दें। दूसरी ओर यह भी हो सकता है कि अच्छे लेखक अपनी लिखी हुई सामग्री को जल्दी इंटरनेट पर जारी होने देने से बचना आरंभ कर दें क्योंकि यह सामग्री इंटरनेट पर जाते ही चैटबोट के डेटा सेट का हिस्सा बन जाएगी और परोक्ष रूप से वास्तविक मौलिक लेखन के विरुद्ध जाएगी।’ मिश्र कहते हैं, ‘साहित्य में एआई का इस्तेमाल विचारों और विषय-वस्तु के विकास में मददगार हो सकता है, लेकिन इसके परिणाम पूरी तरह मौलिक नहीं हो सकते। एआई मॉडल ढेर सारे मौजूदा डेटा पर प्रशिक्षित होते हैं और ऐसी विषय-वस्तु तैयार करते हैं जो इंटरनेट पर पहले से मौजूद है।

नतीजा, मौलिकता का अभाव।’

स्पष्ट है कि एआई-जनित सामग्री का एक बड़ा नुकसान मानवीय पहलू का अभाव है। लेखन एक कला है जिसे उसकी मानवीयता और वास्तविकता के लिए महत्त्व  दिया जाता है। एआई सुझाव और विचार दे सकता है, लेकिन इसमें लेखक जैसा मानव ज्ञान नहीं होता। किसी भी रचना के लिए मौलिक विचार और भाव आवश्यक हैं जो एआई नहीं उत्पन्न कर सकता।

एआई की रचनात्मक सीमाएं

स्पष्ट है कि एआई कि रचनात्मकता की सीमाएं भी हैं। इनकी भाषा आकर्षक हो सकती है लेकिन वह अक्सर इंसानी मनोभावों, सांस्कृतिक संदर्भों और निजी अनुभवों से अनभिज्ञ होती है। ऐसे में यह दीर्घकालिक महत्त्व की कोई कृति रच पाने में समर्थ नहीं दिखती। एआई द्वारा किया गया लेखन मौलिक नहीं होने के कारण उस पर साहित्यिक चोरी की तोहमत लगना भी संभव है। बहुत संभव है कि आने वाले समय में एआई स्वतंत्र लेखन के बजाय लेखकों की कल्पनाशीलता को बढ़ाने का माध्यम बना रहे।

प्रकाशन जगत पर एआई का असर

लेखन से इतर हिंदी के प्रकाशन जगत की बात करें तो वह एआई के उपयोग को लेकर आशान्वित नजर आता है। इससे उनका दायरा बढ़ रहा है और लागत में भी कमी आ रही है।

प्रभात प्रकाशन के निदेशक पीयूष कुमार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘एआई टूल्स वर्तनी, व्याकरण और प्रूफ पढ़ने में सक्षम हैं जिससे काम की गति तेज हुई है और गुणवत्ता भी बेहतर हुई है क्योंकि वह मानव त्रुटियों से रहित है। अनुवाद भी पहले से आसान हो गया है जिससे हिंदी प्रकाशन का दायरा विश्व स्तर तक फैल रहा है।’

कुमार ने कहा कि एआई किताबों के लेआउट, कवर डिजाइन, फॉन्ट चयन और डेटा विश्लेषण में भी मददगार साबित हो रहा है। प्रकाशकों को यह समझने में भी मदद मिल रही है कि पाठक इन दिनों किस तरह की पुस्तकें पढ़ रहे हैं। ऐसे में इसके इस्तेमाल से जहां प्रकाशकों की लागत कम हो रही है, वहीं पुस्तकों के अलावा ई-बुक, ऑडियो बुक, ऐनिमेशन, इंटरैक्टिव कहानियां आदि भी एआई के माध्यम से अधिक आसानी से तैयार की जा रही हैं।

कुल मिलाकर एआई के कारण साहित्य का नियंत्रित विस्तार होता नजर आ रहा है। वह साहित्य की भाषाई दक्षता और अभिव्यक्ति में नई संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त कर रहा है लेकिन वह बेलगाम नहीं है। एआई की रचनात्मकता सीमित है और उस पर लेखकों का नियंत्रण बरकरार है।

निकट भविष्य में भी मानवीय स्पर्श और मौलिकता लेखन के केंद्र में बनी रहेगी और लेखन पर मशीन का दबदबा नहीं होगा लेकिन जैसा कि विशेषज्ञों का कहना है, एआई अभी अपने शुरुआती दौर में है इसलिए भविष्य में भाषाई रचनात्मकता के क्षेत्र में इसका प्रदर्शन कैसा होगा और यह लेखन पर क्या असर डालेगा, यह भविष्य के गर्भ में है।

First Published : September 14, 2025 | 10:08 PM IST