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भारत में पाम तेल आत्मनिर्भरता पर आज जारी एक श्वेतपत्र में कहा गया है कि भारत को यदि पाम तेल आयात पर निर्भरता कम करनी है, तो 160.8 लाख हेक्टेयर छोटी जोत के धान के रकबा को पाम की खेती के उपयुक्त बनाना होगा, साथ ही पाम तेल की उत्पादकता को वर्तमान 2.4 टन से बढ़ाकर 4-5 टन प्रति हेक्टेयर करने के लिए एक केंद्रित रणनीति बनाने पर ध्यान देना होगा।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) और एशियन पाम ऑयल अलायंस (एपीओए) के सहयोग से सॉलिडारिडाड (Solidaridad) एशिया द्वारा तैयार किया गया यह श्वेत पत्र पाम तेल के आयात पर भारत की भारी निर्भरता को कम करने, घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और साल 2047 तक 50 प्रतिशत तक आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक व्यापक रणनीति प्रदान करता है।
सोलिडारिडाड एशिया एक नागरिक समाज संगठन है, जबकि एसईए और एपीओए प्रमुख उद्योग संगठन हैं। श्वेत पत्र में यह भी कहा गया है कि सरकार विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में जहां बुनियादी ढांचे की कमी एक बड़ी बाधा बनी हुई है, वहां ग्रामीण सड़कों, एफएफबी संग्रहण प्रणालियों और प्रसंस्करण सुविधाओं में रणनीतिक निवेश के माध्यम से पाम की खेती को समर्थन देने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना चाहिए। इसमें यह भी कहा गया है कि भारत में पाम तेल क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले निजी क्षेत्र को मजबूत किया जाना चाहिए। यह क्षेत्र देश की 82 बीज नर्सरियों में से 69 का मालिक है और 32 प्रसंस्करण मिलों में से 26 को चला रहा है।
पत्र में यह भी सुझाव दिया गया है कि क्षेत्रीय भारतीय तेल पाम अनुसंधान संस्थान (आईआईओपीआर) केंद्रों के माध्यम से अनुसंधान को मजबूत करना चाहिए।