जब गांव-गांव संवरता है, तब अपना भारत बनता है।
टीवी के इस विज्ञापन से बजाई जाने वाली नरेगा की डुगडुगी पर जनता की राय भले ही कुछ भी हो लेकिन कम से कम इसकी तान नेताओं को तो नहीं ही भा रही है, अब चाहे वह किसी भी दल के हों।
वह ऐसे कि हर चुनावी मौसम में नेता जी की जय-जयकार लगाने और गली-गली घूमकर उनका प्रचार करने के लिए उन्हें लोग इस बार चिराग लेकर ढूंढने पड़ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि नरेगा के चलते ही मजदूरों की दिहाड़ी में बीते दो सालों में जमकर तेजी आयी है।
जहां अब गांव में ही लोगों को 100 रुपये रोज पर काम मिलने लगा है तो शहरों में यह कम से कम 150 रुपये रोजाना है। दिहाड़ी के इतने ज्यादा हो जाने के कारण ही प्रत्याशियों को इस बार गिनती के लोगों से काम चलाना पड़ रहा है।
भाड़े पर प्रचार करने वाले इस बार करीब-करीब हर एक प्रत्याशी ने कम ही तादाद में लिए हैं। इस समय भाड़े का कार्यकर्ता शहरों में 150 से 180 रुपये रोज पर मिल रहा है तो गांवों में भी रेट 120 रुपये हो गए हैं। गेहूं की फसल कटने का समय होने के चलते शहरों में इस समय गांवों से आने वाले श्रमिकों की तादाद कम हो गई है।
ऊपर से दिनभर की दिहाड़ी में बढ़ोतरी ने प्रत्याशियों का बजट बिगाड़ कर रख दिया है। राजधानी के राजेंद्रनगर में प्लेसमेंट एजेंसी चलाने वाले साहिल अरोड़ा का कहना है कि इस बार प्रत्याशी रेट के चलते कम ही मांग कर रहे हैं भाड़े के समर्थकों की और सप्लाई भी कम ही है।
हालांकि चुनाव के मौसम में तो वैसे ही रेट बढ़ जाते हैं। उनका कहना है कि 2007 के विधानसभा के चुनाव में भाड़े का कार्यकर्ता 80 रुपये रोज में मिल रहा था तो इस बार 150 रुपये में वही कार्यकर्ता आने को तैयार नहीं है।
कांग्रेस से प्रदेश महासचिव अजय कुमार सिंह का कहना है कि पहले प्रत्याशी के साथ पार्टी वर्कर बिना किसी पैसे की आशा किए लगते थे और प्रचार को जोरदार ढंग से उठाते थे। आज कुछ तो नेता के चलते और कुछ हालात के नाते कार्यकर्ता उदासीन हो गया है नतीजन भाड़े पर लोग कार्यकर्ता का जुगाड़ कर रहे हैं।
श्रावस्ती लोकसभा सीट के अंर्तगत आने वाले पूरनपुर गांव के प्रधान विभूति सिंह का कहना है कि केंद्र ने नरेगा में 100 रुपये की मजदूरी तो तय कर दी पर यह नहीं सोचा कि इसे कितने दिन तक जारी रखा जा सकता है। उनका कहना है कि 100 रुपये की न्यूनतम मजदूरी हो जाने से खेती की लागत बढ़ी है।
प्रचार के लिए भाड़े के कार्यकर्ता के रेट बढ़ जाने पर उनका कहना है कि अब तो संघ और बहुजन समाज पार्टी के वर्करों ने भी निकलना बंद कर दिया है, ऐसे में भाड़े पर लोगों को लेकर प्रचार करना मजबूरी है। बहराइच से सपा प्रत्याशी शब्बीर अहमद ने भाड़े पर कार्यकर्ता लेने से इनकार किया पर उनका कहना है कि चुनाव में बैनर, पोस्टर लगाने वाले मजदूरों ने दाम तो बढ़ा ही दिए हैं।
नरेगा की वजह से बढ़ गई भाड़े के कार्यकर्ताओं की दरें
गांव में 100 रुपये तो शहरों में 150 रुपये मिल रही है मजदूरी
उम्मीदवारों को हो रही है काफी मुश्किल
2007 के विधानसभा चुनाव में 80 रुपया था भाड़ा, अब पहुंचा 150 रुपये पर
