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क्लस्टर कार्यक्रम पर गंभीर उत्तर प्रदेश

Last Updated- December 07, 2022 | 7:00 AM IST

छोटे और मझोले उद्योगों को धन मुहैया कराने और दूसरे जरियों से मदद देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में औद्योगिक क्लस्टर बनाने का प्रस्ताव किया है।


जिला उद्योग केंद्र लखनऊ के महानिदेशक अवनीश चतुर्वेदी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि उन्होंने केंद्र सरकार को 145 क्लस्टर की सूची सौंपी थी। इनमें से 55 प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया है। लखनऊ में स्टील, टेराकोटा, चिकन और प्लास्टिक के चार औद्योगिक क्लस्टर पहले से ही मौजूद हैं।

स्टील, चिकन और टेराकोटा को बढ़ावा देने के लिए जिला उद्योग केंद्र (डीआईसी) प्रमुख नोडल एजेंसी है और प्लास्टिक क्लस्टर को संचालित करने के लिए केंद्रीय प्लास्टिक इंजीनियरिंग और तकनीकी संस्थान (सीआईपीईटी) नोडल एजेंसी की भूमिका निभाता है। चतुर्वेदी ने कहा कि एक कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) को 20 से 25 किलोमीटर में विकसित किया जा सकता है जिसमें 200 हस्तशिल्पी काम कर सकते हैं।

इसी तरह का सीएफसी स्टील के लिए बनाने की योजना बनाई जा रही है, जिसमें सामग्रियों की खरीदारी से लेकर उसके विकास, फर्नीचर और प्रबंधन के नित नवीन डिजाइन आदि को विकसित किया जाएगा। इससे हस्तशिल्पी को अपनी कुशलता बढ़ाने का भरपूर मौका मिलेगा। राज्य में 3,50,000 एमएसएमई हैं और ये लखनऊ, आगरा, मुरादाबाद, मेरठ, कानपुर, सहारनपुर, बरेली, भदोई जैसे इलाकों में फैले हुए हैं।

इन इकाइयों में चिकन, जरदोई, चमड़ा, कारपेट, लकड़ी काटना और तांबा के बर्तन बनाने का काम होता है। विभाग ने लखनऊ में स्टील फैब्रिकेशन और स्टील की संरचना में लगे 5000 लोगों के लिए 206 इकाइयों की पहचान की है और इस संबंध में अपनी रिपोर्ट सौंपी है। राज्य में स्टील उद्योग का सालाना टर्न ओवर 40 करोड़ रुपये का है।
एक सर्वे के मुताबिक यह कहा गया है कि 56 प्रतिशत इकाइयों में मशीनों का बहुत कम इस्तेमाल होता है।

चौंकाने वाली बात यह है कि मात्र 8 प्रतिशत ऐसी इकाइयां हैं जहां आधुनिक मशीन तकनीक का इस्तेमाल होता है। इस सर्वेक्षण के दौरान 100 इकाइयों से उनकी राय मांगी गई। प्रशिक्षण, मार्केटिंग और तकनीक सहयोग देने वाले इस प्रोजेक्ट पर अनुमानित खर्च 105.48 करोड़ रुपये आने की संभावना है। चतुर्वेदी ने कहा कि हस्तशिल्पी, व्यापारी, निर्माता, और आपूर्तिकर्ता को मिलाकर इस स्कीम के तहत एक स्पेशल परपस व्हेहिकल (एसपीवी) बनाया जाएगा।

शुरुआती तीन सालों तक तो विभाग इस सारे कामों का निष्पादन करेगी और उसके बाद इसका जिम्मा इनमें से किसी एक को दे दिया जाएगा। इस क्लस्टर कार्यक्रम के तहत आने वाले कुल खर्च का 80 प्रतिशत केंद्र सरकार, 15 प्रतिशत खर्च राज्य सरकार और बांकी के 5 प्रतिशत इस स्कीम को प्रोमोट करने वाले वहन करेंगे। इसके अलावा सरकार और जिन क्लस्टर को बनाने की योजना बना रही है, उसमें उन्नाव और हरदोई में जरी और जरदोजी, लखनऊ में आभूषण, रायबरेली में वनारसी साड़ी और लखीमपुर खेरी में बर्तन बनाने का है।

क्लस्टर विकास कार्यक्रम केंद्र सरकार के एमएसएमई मंत्रालय के तहत आता है और इसके अंतर्गत प्रशिक्षण, मार्के टिंग और सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में छोटे और मझोले उद्योग निदेशालय उत्तर प्रदेश भी एक भागीदार है।

First Published - June 22, 2008 | 11:32 PM IST

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