आने वाली गर्मियों में कानपुर वासियों को बिजली की कमी से जूझना पड़ सकता है। इसकी वजह है टोरेंट को मिलने वाले बिजली वितरण ठेके में देरी हो गई है।
इस ठेके में सफल बोलीकर्ता के तौर पर सामने आई टोरेंट पावर को अभी तक आशय पत्र नहीं मिला है। जबकि कंपनी को यह ठेका मिलने की घोषणा पिछले महीने की 20 तारीख को ही कर दी गई थी।
पहले इस परियोजना का विरोध कानपुर इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी (केस्को)के कर्मचारी निजीकरण कर रहे थे। लेकिन अब टोरेंट ने ही इस परियोजना पर काम करने से कदम पीछे कर लिए है। माना जा रहा है कि कंपनी कानपुर के बजाय आगरा में बिजली वितरण करने को लेकर इच्छुक है। कंपनी को आगरा में बिजली का वितरण करने में ज्यादा मुनाफे की उम्मीद है।
कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि कंपनी को कानपुर में काम शुरू करने में थोड़ा समय लगेगा। जबकि केस्को और उत्तर प्रदेश बिजली निगम के अधिकारियों ने बताया कि कंपनी अब कानपुर में काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है।
नियमों के मुताबिक टोरेंट को आशय पत्र जारी होने के 40 दिनों के भीतर यानी 1 अप्रैल को ही परिचालन कार्य शुरू करना है। हालांकि अभी तक कं पनी ने इस परियोजना के अधिग्रहण के लिए सरकार को लगभग 90 करोड़ रुपये की गारंटी राशि का भी भुगतान नहीं किया है।
टोरेंट को केस्को सौंपने से पहले कंपनी की परिसंपत्ति के संयुक्त मूल्यांकन की औपचारिकता भी पूरी करनी है। केस्को के पास लगभग 1,000 करोड़ रुपये की परिसंपत्ति है। केस्को के मुख्य इंजीनियर रंणधीर सिंह ने बताया कंपनी की परिसंपत्तियों का मूल्यांकन करने के लिए लगभग 6 संयुक्त समितियों का गठन किया जाएगा। इन समितियों में दोनों कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
उन्होंने बताया कि अभी भी अधिग्रहण की आखिरी तारीख में लगभग 10 दिन बाकी हैं और इतने समय में सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी की जा सकती हैं। टोरेंट के प्रबंधक (क्षेत्रीय) जी एस पांडेय ने बताया कि हो सकता है कि इस अधिग्रहण में देरी हो सकती है, लेकिन यह होगा जरूर।
दिलचस्प बात यह है कि आगरा बिजली वितरण की बोली कानपुर के बाद खोली गई थी और राइट इश्यू भी 25 दिन बाद जारी किया गया था। लेकिन टोरेंट वहां सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद कानपुर से पहले काम शुरू कर चुकी है।
केस्को कर्मचारी संगठन के नेता विजय त्रिपाठी ने बताया के कानपुर में बिजली खरीदना काफी महंगा पड़ता है। इससे कंपनी को करोड़ों का नुकसान होने की आशंका है और यही वजह है कि कंपनी इस अधिग्रहण में देरी कर रही है।
