मंदी, दिल्ली में विधानसभा चुनाव और आतंकवाद की तिहरी मार ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में छोटे और मझोले कारोबारियों की कमर तोड़ दी है। पिछले साल जहां बेहद छोटे, छोटे और मझोले उपक्रम (एमएसएमई) के कारोबारियों ने 25 करोड़ रुपये का कारोबार किया था, वहीं अगर इस साल 10-15 करोड़ रुपये का कारोबार हो जाए, तो गनीमत है।
असम के सिलचर से आए सुनील डे ने इस मेले में गर्मियों के लिए खास शीतल पट्टी नाम की एक चटाई पहली बार प्रदर्शित की है, मगर एक सप्ताह बाद भी इसका कोई खरीदार नहीं है।
अति लघु, लघु और मझोले उपक्रम (एमएसएमई) मंत्रालय का लक्ष्य इन उद्योगों को प्रोत्साहित कर प्रतिस्पर्द्धी बनाना है।
इसके तहत कई योजनाएं चलाई जाती हैं। एमएसएमई के सहायक निदेशक बिजेन्द्र कुमार ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हम आईएसओ-9000 सर्टिफिकेट के जरिये गुणवत्ता, प्रक्रिया और सेवा सुनिश्चित करते हैं। इसके अलावा क्लस्टर विकास पर जोर दिया जाता है। हमारी कोशिश होती है कि एक तरह की इकाइयों को एक स्थान मुहैया कराया जाए, ताकि उनका बेहतर विकास हो।’
एमएसएमई के मायने
ऐसी इकाइयां जिनमें प्लांट और मशीन की लागत 1 लाख से 25 लाख रुपये के बीच होती है, उन्हें सूक्ष्म या अति लघु इकाई की श्रेणी में रखा जाता है। 25 लाख से 5 करोड़ रुपये तक की लागत वाली इकाई को छोटा उद्योग माना जाता है।
जिनमें ये लागत 5 करोड़ से 10 करोड़ रुपये के बीच हाती है, उन्हें मझोले उद्यम की श्रेणी में रखा जाता है।
बिजेन्द्र के मुताबिक, ‘इन इकाइयों को हम बैंकों के जरिये वित्त भी उपलब्ध कराते हैं। मंजूर इकाइयों को 2 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाती है। पूरे देश में हमारे 30 क्षेत्रीय कार्यालय और 28 शाखाएं हैं। मंत्रालय के तहत 10 टूल्स रूम है। हम चुनी गई इकाइयों को एक महीने का प्रशिक्षण देते हैं। उसके बाद एक परियोजना रपट तैयार की जाती है। रपट की मंजूरी के बाद वित्त मुहैया कराया जाता है।’
एमएसएमई स्टॉल पर खास
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में एमएसएमई को प्रोमोट करने के लिए देशभर से कई छोटी और मझोली इकाइयों को आमंत्रित किया गया है। मेले के जरिये ये इकाइयां वेंडरों की तलाश करती हैं और अपने कारोबार का विस्तार करती हैं। इस साल महिला उद्यमी और कारीगरों को विशेषकर प्रोत्साहित किया जा रहा है।
स्टॉल लगाने वाले कुल कारीगरों में लगभग 70 प्रतिशत महिला उद्यमी हैं और 15 प्रतिशत कारीगर हैं।