हाथ की बुनी दरी के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के बिसवां, खैराबाद और लहपुर कस्बों में कोराना संकट की मंदी से उबरने की छटपटाहट साफ नजर आती है। तीन महीनों की बंदी के बाद एक बार फिर इन इलाकों में करघों की खटपट सुनाई दे रही है।
देश और दुनिया भर में दरियों के लिए मशहूर सीतापुर एक बार फिर से उठ खड़ा होने की कोशिश कर रहा है। चार महीनों के सन्नाटे के बाद अब फिर से बाहर से ऑर्डर आने लगे हैं और स्थानीय व्यापारी भी माल उठाने आ रहे हैं। हालांकि अभी विदेश से तो ऑर्डर नही आ रहे हैं पर देश के ही कई राज्यों से व्यापारी माल मंगाने लगे हैं। सीतापुर की दरी की मांग दिल्ली, महाराष्ट्र से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक में है। कोरोना संकट के दौरान हुई तालाबंदी में सीतापुर में ढाई महीने तक दरी की बुनाई बंद रही। जून में लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी महज कुछ लोगों ने ही स्थानीय मांग के मुताबिक काम शुरू किया था। हालांकि अब करीब करीब ज्यादातर कारोबारियों ने दरी बनाना शुरू कर दिया है।
सीतापुर से हर साल करीब 300 करोड़ रुपये का दरी का कारोबार होता है। विदेशों में यूरोप और अमेरिका में भी यहां की बनी दरियां भेजी जाती हैं। सीतापुर में 20,000 से ज्यादा परिवार दरी की बुनाई के धंधे से जुड़े हैं। दरी कारोबारी अजय अवस्थी का कहना है कि 90 फीसदी लोग हथकरघे पर दरी की बुनाई करते हैं जबकि महज 10 फीसदी बड़े कारोबारियों नें पावरलूम लगा लिया है। हालांकि उनका कहना है कि सीतापुर की हाथ की बुनी दरियों का ज्यादा मांग है। मशीन की दरी के लिए आज भी लोगों को लुधियाना का माल दाम और काम के हिसाब से ज्यादा मुफीद लगता है।
दरी कारोबारी हकीम अंसारी का कहना है कि कोरोना संकट में बंदी रही, ऑर्डर नहीं आए और अब भी कम आ रहे हैं पर कच्चा माल भी एक बड़ी समस्या है। उनका कहना है कि 20,000 बुनकरों के बीच सरकारी मदद जो भी हो रही है वो नाकाफी है।
उत्तर प्रदेश सरकार की महत्त्वाकांक्षी एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में सीतापुर की दरी को शामिल किया गया है। ओडीओपी में आने के बाद सीतापुर की दरी के कारीगरों के लिए बिसवां में कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) बनाया जा रहा है। करीब 2.25 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे इस सीएफसी से न केवल दरी उद्योग के लिए कच्चा माल मिलेगा बल्कि इसकी डिजाइनिंग और तैयार माल की बिक्री में भी बुनकरों को मदद मिलेगी। ओडीओपी के तहत दो सालों में सीतापुर के 352 बुनकरों को अब तक प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है। चालू वित्त वर्ष में 250 और लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
उद्योग निदेशालय का कहना है कि बुनकरों को 25 लाख तक के कर्ज पर 25 फीसदी की सब्सिडी दी जा रही है जबकि 25 से 50 लाख रुपये तक के कर्ज पर 20 फीसदी सहायता दी जा रही है। हालांकि बीते साल 40 लाख रुपये सब्सिडी के मद में दिए गए जबकि इस साल एक करोड़ रुपये का लक्ष्य है।