जीवनशैली पर मंदी का असर पड़ने से तनाव कम करने वाली दवा निर्माताओं की चांदी हो रही है।
पिछले साल सितंबर से लेकर अभी तक इन दवाओं की बिक्री में 100 फीसदी का इजाफा हुआ है। खासतौर पर पिछले 6 महीनों में इन दवाओं की बिक्री काफी तेजी से बढ़ी है।
उत्तर प्रदेश के केमिस्ट ऐंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन (यूपीसीडीए) के अध्यक्ष नंद किशोर ओझा ने बताया, ‘अल्प्राजोलेम, वैलियम और लोराजेपम की बिक्री में 100-200 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ‘
इन दवाओं की बिक्री बढ़ने का एक और बड़ा कारण है कि यह सभी दवाएं असंगठित किराना स्टोरों पर भी आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। उन्होंने बताया, ‘हालांकि एच (नुकसानदायक) दवाओं को बगैर लाइसेंस के बेचने पर प्रतिबंध है। लेकिन इनकी बढ़ती मांग और अच्छे खासे मुनाफे के कारण रिटेलर इन्हें बगैर लाइसेंस के भी बेचते हैं।’
लगभग 6 महीने पहले इन दवाओं की बिक्री रोजाना 30 लाख रुपये होती थी। लेकिन अब यह बिक्री बढ़कर करोड़ों रुपये में हो गई है। इसके लिए दवा बनाने वाली कंपनियों को आपूर्ति बढ़ाने के लिए कहा गया है। शहर के एक अग्रणी थोक दवा विक्रेता अशोक अग्रवाल ने बताया कि दवा निर्माताओं को ऑर्डरों की आपूर्ति एक हफ्ते पहले ही करनी पड़ रही है।
उन्होंने बताया, ‘आखिरी बार इन दवाओं की मांग लगभग एक दशक पहले इतनी बढ़ी थी। उस समय कई टेक्सटाइल मिल बंद हुई थी।’ मनोवैज्ञानिक डॉ. उन्नति कुमार ने बताया, ‘मनोरोगियों में से 80 फीसदी ऐसे लोग हैं जो नौकरी छिन जाने के कारण और नौकरी नहीं मिलने वाले के कारण तनावग्रस्त हैं। ज्यादा समस्या चमड़ा उद्योग से जुड़े हुए लोगों को हो रही हैं।’