नवी मुंबई हवाईअड्डा परियोजना से विस्थापित हुए परिवारों के पुनर्वास में देरी के कारण इस महत्वाकांक्षी परियोजना का काम शुरू से ही प्रभावित होता रहा है। सरकार विस्थापितों की समस्याएं हल करने का दावा कर रही है लेकिन परियोजना से प्रभावित लोग वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए एक बार फिर आंदोलन का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। कोविड के चलते धरना प्रदर्शन में लगी रोक के बावजूद सैकड़ों लोगों ने सिडको कार्यालय के सामने एकत्र होकर मुआवजा समय पर देने की मांग की।
मुंबई हवाईअड्डे की भीड़भाड़ को खत्म करने के लिए नवी मुंबई हवाईअड्डे को विकल्प के तौर पर तैयार किया जा रहा है। करीब 17 हजार करोड़ रुपये की लागत से बन रहे इस हवाईअड्डे को तैयार करने के लिए इस इलाके के 10 गांव के करीब 2000 परिवारों को अपनी जमीन और घर छोडऩा पड़ा है। यहां से विस्थापित किए गए लोगों को उनके जमीन का मूल्य और घर दूसरी जगह तैयार करके दिये गए हैं लेकिन गांव वालों का आरोप है कि हवाईअड्डा बनाते वक्त सिड़को की तरफ से इन लोगों से जो वादे किए गए थे वो पूरे नहीं किए गए। जैसा कि नवी मुंबई के उल्वे इलाके में बन रहे इस नए हवाईअड्डे में सिडको ने आसपास के तकरीबन दस गांव के लोगों की जमीन ली है।
अखिल भारतीय किसान सेना रायगड के अध्यक्ष रामचंद्र म्हात्रे ने कहा कि हवाई अड्डे के अंदर जो गांव आए हैं, सिडको के कहने पर उन्होंने घर तो खाली कर दिया लेकिन अभी तक उनको पूरी तरह से तैयार घर नहीं दिए गए हैं। इस परियोजना से प्रभावित लोगों के घर जब तक पूरी तरह से तैयार नहीं होते तब तक बाजार दर पर विस्थापितों को घरों का किराया मिलना चाहिए। इन गांवों में ज्यादातर लोगों का व्यवसाय मछली मारने का था इसी से उनका घर चलता था। हवाईअड्डे के निर्माण के कारण उनका काम भी छिन गया है इसीलिए विस्थापितों को नौकरी दी जाए। भूसंपादन कानून 2013 के आधार पर जमीन का मुआवजा मिलना चाहिए। आंदोलन कर रहे लोगों ने भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा कि सभी को एक समान पुनर्वास पैकेज व दूसरे लाभ मिलने चाहिए।
नवी मुंबई हवाईअड्डा को विकसित करने और इस परियोजना के कारण विस्थापित किए गए परिवारों के पुनर्वास की जिम्मेदारी शहर एवं औद्योगिक विकास निगम (सिडको) के पास है।
