महाराष्ट्र में किसानों के एक समूह ने पेन के समीप मुंबई-गोवा हाइवे के वाशी नाका को दो घंटे से अधिक के लिए बंद कर दिया।
ये किसान विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) का विरोध कर रहे थे। हालांकि किसानों के इस समूह को यह मालूम नहीं है कि सेज होता क्या है। ये किसान रिलायंस इंडस्ट्रीज समूह की कंपनी मुंबई सेज प्राइवेट लि (एमएसईजेडपीएल) द्वारा दिए जा रहे पुनर्स्थापन पैकेज पर सरकार की मंजूरी का विरोध कर रहे हैं।
एमएसईजेडपीएल रायगड़ तालुका के 35 गांवों में सेज का विकास कर रही है जिसमें पेन, उरान और खालापुर भी शामिल है। वैसे तो यह विरोध शांतिपूर्ण रास्ता रोको अभियान के तहत चल रहा था लेकिन जब कुछ प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की गाड़ियों को क्षति पहुंचाने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज भी किया। इस लाठीचार्ज की तस्वीरें ले रहे बिजनेस स्टैंडर्ड के फोटोग्राफर दिव्यकांत सोलंकी पर भी पुलिस ने लाठी चलाई और उनका कैमरा भी छीन लिया। इस प्रदर्शनकारियों से ज्यादा जोश पुलिस वालों में दिखा जिन्होंने इस हाइवे को बंद रखने की भरपूर कोशिश की।
मुंबई से गोवा और कोंकण जाने वाली गाड़ियों की दिशा को बदलकर इन्हें पनवेल के रास्ते खोपोली और पाली के रास्ते भेजा गया। इस हाइवे को पूरी तरह से बंद रखा गया। इस विरोध प्रदर्शन में 500 किसान जमा हुए थे और वे इस बात को लेकर अनभिज्ञ थे कि सेज का मतलब क्या होता है। उन्हें यह भी पता नहीं है कि किस तरह का राहत पैकेज दिया जा रहा है और वे यह भी नहीं जानते कि उन्हें इस पैकेज के तहत क्या मिलेगा।
दिव गांव के किसान एकनाथ ठाकुर के पास ढ़ाई एकड़ धान की जमीन है। उनसे जब पूछा गया कि वे सेज का विरोध क्यों कर रहे हैं, तो उनका जबाव था कि हम लोग किसी उद्योग द्वारा भूमि अधिग्रहण का विरोध नही कर रहे हैं। सेज के तहत यहां गगनचुंबी इमारत बनाई जाएगी और इसमें फै न्सी स्विमिंग पूल और हेलिपैड बनाए जाएंगे। इसके बाद स्थानीय लोग यहां नौकरों का काम करेंगे या इन रईसों के ड्राइवर बनेंगे। इससे तो अच्छा है कि हम किसान ही रहे।
ज्यादातर किसान का जबाव लगभग इसी तरह का था। हालांकि कुछ ने रिलायंस के द्वारा दी जा रही पैकेजों के बारे में भी थोड़ी बात की। वाधव गांव के किसान हरिदास म्हात्रे पैकेज को लेकर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि रिलायंस ने 10 लाख प्रति एकड़ का ऑफर दिया है। अगर रिलायंस अपने वादे के मुताबकि 12.5 प्रतिशत भूमि उसे वापस भी कर देता है, तो भी मुश्किल से इसकी कीमत 25 लाख प्रति एकड़ ही होगी।
अगर इस जमीन को ऐसे ही बेचा जाए तो इसकी कीमत एक एकड़ के लिए 60 लाख रुपये मिलेंगे, तो कोई रिलायंस को अपनी जमीन क्यों बेचे। म्हात्रे की बातों का समर्थन किसान देवीचंद नाइक भी करते हैं। वे कहते हैं कि सरकार ने हमारी जमीन के अधिग्रहण को लेकर यह प्रस्ताव जारी किया है कि हम अपनी जमीन दूसरों के हाथ न बेचें। लेकिन अगर आज मुक्त अर्थव्यवस्था है तो हम अपनी जमीन किसी को भी बेच सकते हैं।
सरकार इस प्रस्ताव के जरिये रिलायंस को मदद कर रही है। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही सामाजिक कार्यकर्ता सुरेखा देवी ने कहा कि बिना गांव वालों से पूछे सरकार ने रिलायंस के पुनर्स्थापना पैकेज को स्वीकार करने की बात स्वीकार कर ली है। यह सर्वथा गलत है।
वैसे सेज के निर्माण के लिए जमीन लेते समय कंपनियां बड़े-बड़े वादे करती है लेकिन उसे पूरा नहीं किया जाता है। तो इस हालत में गांव वाले क्या करेंगे उन्होंने कहा कि अगर सरकार उनकी मांग 24 जुलाई तक नहीं मानती है तो किसान और मजदूर पार्टी के नेता भूख हड़ताल पर बैठेंगे।