लागत में कटौती और लाल फीताशाही को कम करने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य कृषि उत्पाद विपणन बोर्ड (मंडी परिषद) ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के साथ एक गठजोड़ किया है।
इस गठजोड़ के तहत एसबीआई किसानों के खातों का प्रबंधन करेगी। मंडी परिषद के निदेशक राजेश कुमार सिंह ने बताया कि ‘इस गठजोड़ में सबका फायदा है। इस समझौते से हर महीने 300 कर्मचारियों को यात्रा भत्ता और महंगाई भत्ता नहीं देना पड़ेगा और ब्याज की बचत होगी।
साथ ही लाल फीताशाही और भ्रष्टाचार का भी खात्मा हो सकेगा।’ सिंह ने बताया कि नई व्यवस्था 1 जुलाई से लागू हो जाएगी और सभी एपीएससी के खाते एसबीआई में खोले जाएंगे। इसके बाद धन का हस्तांतरण इलेक्ट्रानिक ढंग से हो सकेगा।
उन्होंने कहा कि ‘एसबीआई ने हमारी जरुरतों के हिसाब से एक साफ्टवेयर तैयार किया है।’ मंडी परिषद को राज्य के 71 जिलों की 247 कृषि उत्पाद विपणन समितियों (एपीएमसी) और 348 उप विपणन समितियों से राजस्व मिलता है। हर महीने प्रत्येक एपीएमसी और उप विपणन समितियां मंडी परिषद को राजस्व का अदा करतीं हैं।
मंडी परिषद को जुलाई से लेकर जून तक एक कृषि वर्ष में करीब 500 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है। एपीएमसी उत्तर प्रदेश कृषि उत्पाद विपणन बोर्ड कानून के प्रावधानों के तहत मंडी परिषद के साथ राजस्व का बंटवारा करतीं हैं।
अब तो बचत ही बचत
एपीएमसी मंडी परिषद को डिमांड ड्राफ्ट के जरिए राजस्व की अदायगी करतीं हैं और हर महीने एक व्यक्ति को लखनऊ ड्राफ्ट देने के लिए भेजती हैं। यह प्रक्रिया दोनों पक्षों के लिए खर्चीली रहती है। इस दौरान 247 लोग हर महीने लखनऊ की यात्रा करते हैं।
इन लोगों को टीए और डीए जैसे भत्ते देने पड़ते हैं और एपीएससी बैंक ड्राफ्ट के लिए बैंक को कमीशन देता है। सिंह ने बताया कि ‘खाता प्रबंधन के लिए एमओयू से हमारी लागत में काफी कमी आएगी और एपीएमसी को बैंक ड्राफ्ट पहुंचाने के लिए लोगों की अनावश्यक आवाजाही नहीं होगी। मौजूदा प्रणाली के तहत एपीएससी द्वारा हमें दिया जाने वाला धन 10 दिन तक हवा में ही अटका रहता है।’
एसबीआई का साथ
भारतीय स्टेट बैंक ने मंडी परिषद के लिए विशेष साफ्टवेयर तैयार किया है। इसकी मदद से लाल फीताशाही पर तो लगाम लगेगी ही साथ ही कर्मचारियों के टीए और डीए पर आने वाले खर्च को बचाया जा सकेगा।