मध्य प्रदेश सरकार ने वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) को अपनाने से इनकार कर दिया है, जबकि केन्द्र सरकार में मुताबिक 2010 से राज्यों के लिए यह नया कर अनिवार्य होगा।
इससे कुछ वर्ष पहले मध्य प्रदेश ने वैट को अपनाने से इनकार किया था। इस बात जीएसटी की बारी है। जीएसटी के प्रभावी होने के साथ ही राज्य स्तर पर ही अप्रत्यक्ष करों को मिला दिया जाएगा और केवल एकल कर संरचना रह जाएगी।
राज्य के वित्त मंत्री राघव जी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘हम अपने कारोबारियों और व्यापारियों को एक और जटिल कर प्रणाली को अपनाने के लिए कैसे कह सकते हैं जबकि वे अभी तक मूल्य वर्धित कर (वैट) को समझने के लिए ही जूझ रहे हैं। केन्द्र सरकार पश्चिमी देशों की मांग आधारित अर्थव्यवस्था की नकल क्यों कर रही है?’
उन्होंने कहा कि ‘भारत की अपनी परंपरागत लेखा प्रणाली है और वैट के क्रियान्वयन के बाद सभी राज्यों पर दबाव काफी बढ़ा है। यदि हम नए कर लगाते हैं तो कीमतों में बढ़ोतरी होगी। कम से कम मध्य प्रदेश तो जीएसटी को अपनाने के लिए तैयार नहीं है।’
राघव जी ने आगे कहा कि जीएसटी में सेवा कर भी शामिल है जबकि राज्यों को केन्द्र से सेवा कर में कोई हिस्सेदारी नहीं मिलती है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को राज्यों की समस्याओं पर विचार करना चाहिए। टैक्सों की सूची में केन्द्र की अभी भी भारी भरकम हिस्सेदारी है।
मध्य प्रदेश जैसे राज्य बड़े वने प्रदेश के प्रबंधन की कठिनाइयों से जूझना पड़ता है लेकिन कुल उगाहे गए कर में उनके हिस्से महज 30 प्रतिशत राशि ही आती है। इसे कम से कम 50 प्रतिशत होना चाहिए। मध्य प्रदेश में वैट के तौर पर 6,000 करोड़ जुटाए गए हैं।