गांवों को गरीबी से छुटकारा दिलाने और ताजे पानी के संरक्षण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के पांच जिलो में जलभूमि (वेटलैंड) संरक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की है।
इस योजना के दायरे में कुल 1,500 हेक्टेयर जमीन आएगी। इस कार्यक्रम के तहत आजमगढ़, लखीमपुर खीरी, इटावा, मैनपुरी और मथुरा के कुल आठ गीली जमीन वाले क्षेत्रों को चुना गया है। योजना का वित्त पोषण केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के मुख्य वन्यजीव संरक्षक डी एस नए सुमन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि परियोजना की कुल लागत 20 करोड़ रुपये है। राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित एक समन्वय समिति इसके कामकाज की निगरानी करेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब लोगों के जीवन में जलभूमि का काफी महत्व है क्योंकि उनके स्वास्थ्य, आजीविका और आर्थिक खुशहाली पर इसका व्यापक असर होता है। गांवों में गरीब लोग अपने जीवन यापन के लिए सीधे तौर पर जलभूमि जैसी पारिस्थितिकी पर निर्भर रहते हैं और परिस्थितिकी तंत्र के नुकसान का सबसे अधिक खामियाजा इन्हें ही उठाना पड़ता है।
जलभूमि का दायरा काफी बड़ा है और इसमें झील, तलाब से लेकर दलदली जमीन तक शामिल हैं। आम आदमी की पानी संबंधी जरुरतों को पूरा करने के लिए इनकी बड़ी भूमिका है। जलभूमि से मूल्यवान वनस्पतियां भी मिलती हैं। जल भूमि से कृषि, पशुओं और घरेलू उपयोग के लिए ताजा पानी मिलता है और भूजल के स्तर को ऊपर उठाने में मदद मिलती है।
सुमन ने बताया कि परियोजना का उद्देश्य जलभूमि का संरक्षण और उनमें सुधार लाना है, ताकि इन क्षेत्रों से अच्छे नतीजे मिल सकें और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाया जा सके। इस योजना के तहत मछली पकड़ने को भी प्रोत्साहन दिया जाएगा।
उत्तर प्रदेश में पिछले साल ऐसी ही एक परियोजना के तहत राय बरेली, हरदोई, कन्नौज, उन्नाव और अलीगढ़ में पांच जलभूमि क्षेत्र का सुधार किया गया था। सुमन ने बताया कि ‘इन पांच क्षेत्रों में काम अभी भी जारी है और हमें इन परियोजनाओं में अच्छी खासी सफलता मिली है। इससे उत्साहित होकर हमने परियोनजा के दायरे में 8 नए क्षेत्रों को शामिल किया है।’
गांव वालों को इस परियोजना के लाभों के बारे में बताया जा रहा है। उन्हें अपनी कार्यकुशलता और आय क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षित और प्रेरित किया जा रहा है। केन्द्रीय पर्यावरण और वन भूमि ने 1980 में पहली बार जलभूमि के लिए देश भर में सर्वेक्षण किया था। उत्तर प्रदेश में जलभूमि के बड़े क्षेत्र बहराईच, हरदोई, ललितपुर, मिर्जापुर, सीतापुर, सोनभद्र और उन्नाव हैं।
जलभूमि संरक्षण काफी बड़ी परियोजना है और इसके लिए बड़ी संख्या में लोगों और संस्थानों के बीच आपसी सहयोग की जरुरत है। आंकड़ों के जरिए प्रत्येक राज्य में जलभूमि की पहचान की जा सकती है और देश भर में जलभूमि के तंत्र का गठन किया जा सकता है। राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 के अनुसार भारत में ताजे पानी के संसाधनों में नदियां, भूजल और जलभूमि शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक की महत्वपूर्ण भूमिका है।