बिहार के बाढ़ पीड़ित बैंकों में जमा अपने ही पैसों के लिए भी तरस गए हैं। पैसा निकालने के लिए उन्हें बाढ़ के खत्म होने के साथ बैंकों की डूबी हुई शाखा के खुलने का इंतजार करना पड़ेगा।
बाढ़ पीड़ित इलाकों में पेंशन से गुजारा करने वालों का और भी बुरा हाल है। महीने के पहले सप्ताह में उन्हें पेंशन मिल जाती थी, लेकिन इस बार उन्हें इस महीने के अंत तक भी पेंशन मिलने की कोई संभावना नहीं है। इसलिए कि उनका खाता भी डूब गया है और बैंक की शाखा भी। बैंकों की तरफ से कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं की गयी है।
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर स्वतंत्रता सेनानी के इंतजार में खड़े रामधनी कहते हैं, ‘मैं दिल्ली से हर महीने अपने माता-पिता को पैसे भेजता हूं जिसे वे बैंक में जमा कर देते हैं। सुपौल के सुरजापुर स्थित भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की शाखा में उनके पिता का एकाउंट है। लेकिन शाखा भी डूब चुकी है और पिताजी के खाते भी। एसबीआई की अन्य शाखा ने उन्हें पैसे देने से मना कर दिया है। पैसे के अभाव में सुरक्षित निकलने के बावजूद वे न तो मेरे पास आ सकते हैं और न ही किसी अन्य रिश्तेदार के पास जा सकते हैं।’
सहरसा व पटना की एसबीआई शाखा में बात करने पर बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया गया, ‘अगर खातेधारी के पास चेकबुक है तब तो उसे किसी और शाखा से भी पैसे मिल सकते हैं लेकिन चेकबुक भी नहीं है और पासबुक डूब चुका है या जिस शाखा में उसका एकाउंट है वह डूब चुका है और चेकबुक नहीं है तो उसे बाढ़ के समाप्त होने का इंतजार करना पड़ेगा।’
बिहार में बाढ़ से प्रभावित जिलों के 40 फीसदी से अधिक बैंक डूब चुके हैं। अकेले पूर्णिया मॉडयूल में एसबीआई की कुल 126 शाखाओं में से 50 डूब चुकी हैं। सुपौल इलाके में कोरिया पट्टी, छातापुर, सुरजापुर, प्रतापगंज, बीरपुर, बलुआ बाजार, सिमराही बाजार स्थित एसबीआई की 8 से अधिक शाखा तो मधेपुरा में धबोली व अन्य शाखाओं के साथ मुख्य शाखा भी डूब चुकी है।
कमोबेश यही हाल अन्य बैंकों की शाखाओं का भी है। बिहार में बाढ़ से मुख्य रूप से प्रभावित जिलों की संख्या 11 है। इन इलाकों में एसबीआई के अलावा पंजाब नेशनल बैंक, सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया जैसे सरकारी बैंक सक्रिय है। ग्रामीण इलाकों में निजी बैंक व एटीएम की संख्या शून्य है।