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बिहार पर बाढ़ का प्रहार

Last Updated- December 07, 2022 | 7:44 PM IST

बिहार सरकार ने वर्ष 2007 में आयी बाढ़ को ‘अनप्रिसिडेंट’ यानी कि अभूतपूर्व करार दिया था और इस दौरान किए गए राहत कार्यों के लिए भी सूबे की सरकार ने अपनी पीठ खूब थपथपाई।


यहां तक कि सरकारी वेबसाइट पर इस कार्य को खूब बढ़-चढा कर पेश किया गया। लेकिन इस साल गत 22 अगस्त को कोसी के करवट बदलने से जो कहर बरपा उसके सामने प्रांतीय सरकार के हाथ-पैर फूल गए। बिहार के विकास की गाड़ी ‘बैक गियर’ में आ गयी।

उद्यमियों व कारोबारियों के अनुमान के मुताबिक कुल 3000-4000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। बिहार के सकल घरेलू उत्पाद को राष्ट्रीय स्तर की बराबरी के लिए 12-13 फीसदी की गति से दौड़ना होगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल बिहार के कुल 22 जिलो में बाढ़ आयी थी। लगभग 17 लाख हेक्टेयर जमीन की फसल बर्बाद हो गयी और कुल 1332.04 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

इसके अलावा 6.90 लाख घर ढह गए जिससे 990 करोड़ रुपये की हानि हुई। लेकिन इस बार यह नुकसान काफी अधिक है। हालांकि बाढ़ से कुल 16 जिले प्रभावित है और इनमें से छह जिलों की हालत काफी गंभीर बतायी जा रही है।

बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (बीआईए) के अध्यक्ष केपी झुनझुनवाला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को पटना से बताया, ‘सिर्फ मकान व अन्य निर्माण की भरपाई करने में ही 3000 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा। बाढ़ के कारण कम से कम 500 रुपये का कारोबार बीते 15 दिनों में प्रभावित हुआ है।

फसल व पशुधन के नुकसान का अनुमान लगाना अभी काफी कठिन है।’ वे यह भी कहते हैं कि उत्तरी बिहार में बाढ़ का आना कोई नयी बात नहीं है और यह लगभग हर साल आती है। सरकारी आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं। वर्ष 2004 के दौरान बिहार में बाढ़ से 14 लाख हेक्टेयर की फसल बर्बाद हो गयी थी तो वर्ष 2002 में लगभग 10 लाख हेक्टेयर की।

बिहार के उद्यमियों के मुताबिक इस साल 17 लाख हेक्टेयर से अधिक की फसल बर्बाद हो जाएगी और कम से कम 8 लाख लोग बेघर हो जाएंगे। क्योंकि छह जिलों में तो कुछ भी नहीं बचा। इन लोगों के लिए सरकार की तरफ से मकान बनाने पड़ेंगे। जैसा कि गुजरात में भूकंप के बाद किया गया था।

मवेशियों के बारे में बिहार के आपदा प्रबंधन का कहना है कि 15 लाख से अधिक मवेशी बाढ़ से प्रभावित हुए हैं और इनमें से कितने जिंदा है और कितने मर गए, इसकी जानकारी अभी नहीं मिल पायी है। आपदा प्रबंधन के मुताबिक इन जानवरों को बीते 15 दिनों से खाना नसीब नहीं हुआ है।

उद्योगों को हुए नुकसान के बारे में बीआईए का कहना है कि बाढ़ से पीड़ित इलाकों में उद्योगों की संख्या काफी कम है। कुछ कृषि प्रसंस्करण से जुड़े छोटे उद्योग जरूर है जिसके सुरक्षित बचने का कोई सवाल ही नहीं उठता।

फसल के बारे में बिहारवासियों ने बताया कि तीन महीने में पानी निकल जाने की उम्मीद है। और पानी निकलते ही वे दूसरी फसल की बुवाई कर देंगे। झुनझुनवाला कहते हैं, ‘इस तबाही ने बिहार को कम से कम 3 साल पीछे कर दिया है। इसकी भरपाई के लिए सब कुछ सामान्य होने पर सरकार को विकास की गति में काफी तेजी लानी पड़ेगी।’

First Published - September 3, 2008 | 10:14 PM IST

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