कई बार आप किसी चीज के लिए लड़ रहे होते हैं और आपको पता होता है कि आपकी जीत की संभावना काफी कम है, फिर भी इससे आपका हौसला नहीं टूटता है।
कुछ ऐसा ही आंध्र प्रदेश के तकरीबन 15 विस्थापित किसानों के साथ है, जो महबूबनगर लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी जंग में उतरे हैं। महबूबनगर जिले के पोलपल्ली गांव के इन किसानों का चुनावी दंगल में उतरने का मकसद केवल इतना है कि वे आम लोगों का ध्यान अपनी परेशानियों और तकलीफों की ओर खींचना चाहते हैं।
ये ऐसे किसान हैं जिनकी जमीन का अधिग्रहण विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) लगाने के लिए किया जा चुका है। हालांकि ऐसा नहीं है कि राजनीति से सरोकार नहीं रखने वाले किसान पहली बार चुनाव के मैदान में उतरे हैं। इससे पहले भी मई 2008 में उपचुनावों में किसानों ने चुनावी संग्राम में किस्मत आजमाया था।
जदचेरला विधानसभा सीट से 13 किसानों ने चुनाव लड़ा था। यह अलग बात है कि उनके पक्ष में कुल 13,500 मत ही पड़े थे और उन सभी की जमानत राशि जब्त कर ली गई थी। फिर भी उन्हें इस बात का कोई मलाल नहीं था।
उन्हें केवल इस बात की खुशी थी कि सेज के खिलाफ शुरू की गई लड़ाई में वे राज्य के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच पाए हैं। पर इस दफा उनका मकसद इस मसले को लेकर पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचना है।
किसानों की समस्या 2003 में शुरू हुई थी जब तेलूगु देशम सरकार ने पोलपल्ली और मुदुरेड्डीपलली गांवों में सेज के विकास के लिए 969 एकड़ जमीन की पहचान की थी। वर्ष 2005 में कांग्रेस सरकार ने जमीन अधिग्रहण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और इस तरह करीब 350 छोटे और मझोले किसानों को अपनी जगह से विस्थापित होना पड़ा था।
इनमें से आधी से अधिक जमीन जनजातीय और दलितों की थीं। किसानों ने बताया कि उन्हें उनकी जमीन के लिए 18,000 से 50,000 रुपये प्रति एकड़ के बीच की रकम चुकाई गई थी। जबकि किसानों का कहना है कि उनके जमीन की बाजार कीमत प्रति एकड़ 20 लाख रुपये के करीब है।