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तबाही, भय, भूख और मौत ही नियति बन गई है

Last Updated- December 07, 2022 | 6:48 PM IST

बिहार में बाढ़ ने विभीषिका का रूप ले लिया है। हालत का अंदाज लगाना मुश्किल तो हो ही रहा है, लेकिन प्रभाव साफ नजर आ रहा है।


करीब 10 दिलों में पांव पसार चुके कोसी की धार ने 25-30 लाख लोगों को प्रभावित किया है और 50 हजार लोगों के बारे में तो अभी कोई खबर ही नहीं मिल रही है। बाढ़ प्रभावित इलाके में संपत्ति, फसलों, मवेशियों के नुकसान का आकलन करना मुश्किल है। साथ ही ऊंचे इलाकों पर पशुओं की लाशें, शौच की समस्या बीमारियों को दावत दे रही हैं।

बिहार में बाढ़ कोई नई बात नहीं है। हर साल आती है और चली जाती है। लेकिन इस साल आई बाढ़ ने 48 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ा है, नदी ने 48 साल पहले वाला रास्ता पकड़ लिया है। पिछले 10 दिन से विभीषिका का रूप ले चुकी बाढ़ से डरे लोगों का पलायन शुरू हो चुका है। पटना के रहने वाले बाढ़ मुक्ति अभियान के संयोजक दिनेश कुमार मिश्र इन दिनों अररिया के पुलकहां गांव में हैं।

वे बताते हैं, ‘लोग घर छोड़कर भाग रहे हैं तो नाव वाले उन्हें लूट रहे हैं, वहीं गावों में उनकी संपत्ति को भी जमकर लूटा जा रहा है। साफ है कि घर वापसी के बाद वे दाने-दाने को मोहताज होने वाले हैं।’ एक लंबे अरसे के बाद केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों से रोजगार की संभावनाएं बढ़ी थीं।

बिहार से लोगों के पलायन का यह सबसे बड़ा कारण था कि बाढ़ के चलते कृषि से फायदा नहीं होता था और लोग पेट की आग बुझाने के लिए दूसरे शहरों की राह पकड़ते थे। यह स्थिति तब थी जब बिहार के कुछ एक जिले बाढ़ की चपेट में आते थे।

पूसा के कृषि वैज्ञानिक एस. के. झा ने कहा, ‘अररिया, पूर्णिया, मधेपुरा और सुपौल में कहीं ऐसी जगह नहीं है जहां बाढ़ का पानी न पहुंचा हो। इन इलाकों में धान की फसल तो खत्म हो चुकी है, बाढ़ घटने के बाद यह देखना है कि वहां पर गेहूं उत्पादन के योग्य मिट्टी भी है या सब बालू वाला इलाका हो गया है।’

ग्रामीण इलाकों में तो अभी से भगदड़ सी शुरू हो गई है। जिनके रिश्तेदार दूसरे राज्यों में हैं, वे अपना घर बार छोड़कर भाग रहे हैं। खौफ का आलम ये है कि उन्हें विश्वास नहीं है कि कब उनके घर भी पानी में डूब जाएं।

मधेपुरा के सिंहेसर गांव के अमन सिंह कहते हैं, ‘हम लोगों ने सामान बांध लिया है और एक दो दिन के अंदर दिल्ली जाने की तैयारी में हैं। आसपास के इलाकों में पानी लगा है जिससे निकलने में दिक्कत हो रही है।’ मधेपुरा के ही लालपुर के नोनियारी टोला के गया सिंह कहते है, ‘पिछले सौ साल में हमारे पुरखों ने 5 बार गांव बसाए हैं। जब एक जगह अन्न-पानी का जुगाड़ हो जाता है तो आने वाली पीढ़ी को दूसरी जगह भागना पड़ता है। क्या किया जाए, कैसे पेट पाला जाए?’

बाढ़ का जायजा लेने के लिए प्रधानमंत्री का बिहार दौरा भी होना है। बिहार विधानसभा के कांग्रेस विधायक दल के नेता डॉ. अशोक कुमार ने कहा, ‘इस बार तो हद हो गई है। जब भी बाढ़ आती है तो इसे दो देशों का मसला कहा जाता है और अगले साल तक के लिए चर्चा टल जाती है। प्रधानमंत्री के दौरे में हम लोगों की यही मांग होगी कि वह नेपाल सरकार से बात करें और इस समस्या का स्थाई समाधान निकालें।’

इस साल की बाढ़ में एक खास बात यह भी है कि पिछले साल तक जिन इलाकों में बाढ़ आती थी, वे इलाके बाढ़ से या तो कम प्रभावित हुए हैं या बिल्कुल प्रभावित नहीं हुए हैं। बंधे के टूटने से पानी की रफ्तार इतनी तेज है कि जिस इलाके में बाढ़ का पानी पहुंचा है, वहां तबाही का मंजर ही दिखाई देता है।

एस. के. झा कहते हैं, ‘पिछले साल की तुलना में कम इलाके में पानी पहुंचा है, लेकिन जहां पहुंचा है वहां तबाही है। नुकसान भी पिछले साल की तुलना में दो से तीन गुना ज्यादा हो सकता है।’

सूरत-ए-हाल

पिछले 10 दिनों की बाढ़ में 25 से 30 लाख से अधिक लोग प्रभावित
नाव वालों की लूटमार से पड़ रही है दोहरी मार
अररिया, पूर्णिया, मधेपुरा में लोग हुए दाने दाने के लिए मोहताज

First Published - August 27, 2008 | 9:34 PM IST

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