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हर साल बह जाती है फसल

Last Updated- December 07, 2022 | 6:48 PM IST

वर्ष 2007 के दौरान बिहार के 22 जिलों में बाढ़ से तबाही मची थी। जिसमें करीब 11850 गांव प्रभावित हुए थे।


इस दौरान 17 लाख हेक्टेयर जमीन की खेती बर्बाद हो गयी थी और इससे बिहार को 1332.04 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। पिछले साल की बाढ़ में लगभग 6.90 लाख मकान ढह गए थे जिससे करीब 990.98 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

इस बार बिहार की श्राप कोसी नदी के कहर से बिहार के 14 जिले के प्रभावित होने की बात सामने आ रही है। पिछले साल के आंकड़ों को आधार माना जाए तो बिहार में इस साल (2008 में ) बाढ़ से कम से कम 1000 करोड़ रुपये की फसल के नुकसान का अनुमान है तो कम से कम 800-900 करोड़ रुपये के जान-माल के नुकसान की आशंका है।

बाढ़ से मुख्य रूप से प्रभावित कोसी डिवीजन के आयुक्त यूके नंदा ने सहरसा से बिजनेस स्टैंडर्ड को फोन पर बताया, ‘बाढ़ से मुख्य रूप से बिहार के 11 जिले प्रभावित हैं। ये सभी जिले मुख्य रूप से कृषि आधारित है और यहां चावल  व मक्के की खेती सबसे अधिक होती है। एक जिले में कम से कम 30-40 हजार हेक्टेयर जमीन की खेती बर्बाद हो गयी है।’

हालांकि उन्होंने यह भी साफ तौर पर कहा कि किसी भी प्रकार के नुकसान का अनुमान अभी नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि इन इलाकों में अब भी पानी आ रहा है। बिहार सरकार के अधिकारियों का यह भी कहना है कि इस बार की बाढ़ पिछले साल के मुकाबले काफी भयावह है।

औद्योगिक नुकसान के बारे में पूछने पर बिहार औद्योगिक विकास विभाग के निदेशक महेश प्रसाद ने पटना से बताया, ‘इन इलाकों में काफी कम संख्या में उद्योग है। हालांकि अभी नुकसान के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।’ पिछले 50 सालों के इतिहास में आयी सबसे प्रलयकारी बाढ़ से सुपौल, मधेपुरा, अररिया, सहरसा व पूर्णिया जिले प्रभावित है। मधेपुरा में कुल 1,36,646 हेक्टेयर जमीन पर खेती होती है।

यहां देसी व उम्दा नस्ल की 1 लाख 10 हजार से अधिक भैंस है और 1 लाख 70 हजार से अधिक गाएं हैं। इसके अलावा यहां 222886 बकरियां भी हैं। सुपौल व मधेपुरा के 90 फीसदी इलाके बाढ़ की चपेट में है और कहा जा रहा है कि वहां के मवेशियों का भी कुछ पता नहीं है। जाहिर है मधेपुरा में 90 हजार हेक्टेयर की खेती खराब होने की पूरी संभावना है। वैसे ही 70 फीसदी मवेशियों के पानी में बह जाने की आशंका है।

सुपौल में मात्र 1 लाख 5 हजार हेक्टेयर जमीन पर खेती की जाती है। और यहां की फसल के बचने की कोई संभावना नहीं है। हालांकि प्रशासन को इस बात की उम्मीद है कि बाढ़ के पानी निकलने के बाद वे फिर से खेती कर सकते हैं। नंदा कहते हैं, ‘पानी हटने के बाद वे फिर से खेती कर लेंगे।

हालांकि वे खुद ही इस बात को स्वीकारते हैं कि खेती लायक जमीन होने में कम से कम तीन महीने का समय लगेगा। तब तक खरीफ की फसल तैयार हो जाएगी। बिहार प्रशासन के मुताबिक बाढ़ वाले इलाकों में उद्योगों की संख्या काफी कम है। मधेपुरा में लघु उद्योगों की संख्या मात्र 8 है तो अति लघु उद्योगों की संख्या 2875 है। कमोबेश यही संख्या बाढ़ से प्रभावित अन्य जिलों में भी है।

First Published - August 27, 2008 | 9:36 PM IST

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