छत्तीसगढ़ सरकार ने नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन
छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी मांगों में राज्य के लिए बिजली का कोटा निर्धारित करने और लोगों को रोजगार देने की मांग रखी है। राज्य के जल संसाधन मंत्री हेमचंद यादव ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि
‘किस तरह का समझौता?
सिपत बिजली परियोजना को राज्य के जल संसाधनों से पानी उपलब्ध कराने के लिए एनटीपीसी के साथ अविभाजित मध्य प्रदेश के समय और छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद किसी तरह का समझौता नहीं किया गया है। कुछ समय पहले तक बिजली संयत्र को पानी राज्य की तरफ से आपसी सहमति के आधार पर दिया जा रहा था। इसके पीछे किसी तरह का समझौता नहीं था।‘
एनटीपीसी के प्रंबधन ने राज्य सरकार पर सिपत जल परियोजना के लिए पानी की सप्लाई को रोकने पर समझौते से विश्वासघात करने का आरोप लगाया है। एनटीपीसी का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा ऐसा करने से
12,000 करोड़ रुपये की लागत वाली सिपत बिजली परियोजना की 500 मेगावाट वाली ईकाई अधर में लटक गई है।
आने वाली गर्मी के दिनों में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गोवा, गुजरात और छत्तीसगढ़ में उठने वाली बिजली की अतिरिक्त मांग को पूरा करने के लिए इस इकाई को मार्च के अंत में या अप्रैल को प्रांरभ में शुरु किया जाना था। लेकिन राज्य सरकार द्वारा पानी की आपूर्ति रोकने के कारण परीक्षण के 14 दिनों के बाद ही पानी की कमी के चलते इस ईकाई को रोकना पड़ा है।
सिपत बिजली परियोजना के अलावा छत्तीसगढ़ में एनटीपीसी का एक और प्लांट राज्य की बेरुखी का सामना कर रहा है। कोरबा में
2100 मेगावाट वाले बिजली संयत्र में 500 मेगावाट यूनिट के विस्तार के लिए भी आवश्यक पानी की सप्लाई बंद हो गई है। इससे यह ईकाई भी अधर में लटक गई है।
कोरबा बिजली संयत्र में पानी की सप्लाई रोके जाने के प्रश्न के जवाब में हेमचंद यादव ने कहा कि ‘पानी की सप्लाई प्लांट प्रंबधन की गुजारिश पर बंद की गई है। राज्य सरकार ने पानी देने से कभी भी इनकार नहीं किया है। बात केवल राज्य सरकार की मांगों को मानने की है।‘
दूसरी ओर एनटीपीसी के अधिकारियों का कहना है कि एनटीपीसी जैसी एजेंसी के लिए यह संभव नहीं है कि वह कुल उत्पादन का
7.5 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार को अलग अलग दरों पर दे सके। इसके अलावा सीपत परियोजना से बेघर होने वाले 3,000 लोगों रोजगार दे पाना भी संभव नहीं है।