मध्य प्रदेश के बुरहानपुर का कपड़ा उद्योग कोरोना की मार से उबर चुका है और यह कारोबार कोरोना पूर्व के स्तर से भी बेहतर हो गया है। बुरहानपुर के सभी पावरलूम अब चलने लगे हैं। यहां बनने वाले कपड़े का उपयोग स्कूल मटेरियल मसलन ड्रेस, बैग, जूते आदि में काफी होता है। दो साल बाद पूरी तरह से स्कूल खुलने के कारण बड़े पैमाने पर कपड़े की मांग बढ़ी है।
बुरहानपुर में चमड़े और रेक्सीन में लगने वाले कपड़े का अस्तर भी काफी बनता है। इसकी भी मांग बढ़ी है। बुरहानपुर मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा पावरलूम केंद्र है। बुरहानपुर में 45,000 सामान्य पावरलूम और 5,000 उच्च स्पीड वाले ऑटो लूम हैं। यहां रोजाना 50 लाख मीटर कपड़ा बनता है।
पावरलूम के अलावा बुरहानपुर में 40 से 45 कपड़ा प्रोसेस व साइजिंग इकाइयां हैं। बुरहानपुर में कपड़े का सालाना कारोबार 3,500 से 4,000 करोड़ रुपये है। यह उद्योग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर 70 से 75 हजार लोगों को रोजगार देता है।
लखोटिया फैब्रिक्स के जयप्रकाश लखोटिया ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि कोरोना की पहली लहर के दौरान कारोबार ठप ही रहा है। दूसरी लहर के बाद कारोबार सुधरना शुरू हुआ। अब कारोबार कोरोना के पहले के स्तर से भी बेहतर हो गया है। बुरहानपुर के सभी 45,000 सामान्य पावरलूम चलने लगे हैं।
पिछले साल 35 हजार लूम ही चल रहे थे। अब सभी ऑटो लूम भी चल रहे हैं। कोरोना से पहले उद्यमियों की नई पीढ़ी का रुझान प्रॉपर्टी कारोबार में चला गया था, अब वे कपड़ा कारोबार पर ध्यान देने लगे हैं। इससे भी कारोबार सुधरने को बल मिला है। लखोटिया ने कहा कि बुरहानपुर के कपड़े की स्कूल ड्रेस मटेरियल में मांग खूब रहती है। यहां कपड़े से स्कूल ड्रेस तो बनती ही है। साथ ही स्कूल के बैग व जूते में लगने वाला अस्तर भी यहां बनता है।
बुरहानपुर टेलरिंग मटेरियल जैसे कॉलर में बकरम कपड़े का बड़ा बाजार है। कोरोना के कारण स्कूल बंद थे तो कपड़े व अस्तर की मांग भी सुस्त थी। अब दो साल बाद पूरी तरह से सभी स्कूल खुल गए हैं और रुकी हुई मांग एकदम निकली है। इसलिए बुरहानपुर का कपडा कारोबार कोरोना से पहले के स्तर से भी अच्छा हो गया है।
सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी के बाद कपड़े के थैले की मांग और बढ़ने से यहां के कारोबारियों को फायदा होगा। बुरहानपुर के कपड़ा उद्यमी व मध्य प्रदेश लघु उद्योग संघ के प्रदेश सचिव फरीद सेठ कहते हैं कि बुरहानपुर में बेल्ट, पर्स, फुटबॉल, ऑटो रिक्शा कवर, गाड़ी शीट कवर आदि में चमड़ा व रेक्सीन में लगने वाले अस्तर बड़े पैमाने पर बनता है। साथ ही यहां कॉलर, महिलाओं के सूट, ब्लाउज, पेटीकोट,साडी फॉल, साफा, धोती, रजाई, खोल, झंडे/बैनर/पोस्टर आदि के लिए भी कपड़े बनते हैं।
आर्थिक हालात सुधरने के साथ ही यहां के कपड़ा कारोबार में भी सुधार आया है बुरहानपुर चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के चेयरमैन प्रशांत श्रॉफ भी मानते हैं कि कोरोना की मार से उबरकर अब बुरहानपुर का कपड़ा उद्योग रफ्तार पकड़ रहा है। बुरहानपुर के कपड़े की सूरत, भीलवाड़ा, अहमदाबाद, पानीपत, लुधियाना, कोलकाता आदि रेडीमेड कपड़ा बनाने वाले औद्योगिक केंद्रों में खूब मांग रहती है।
कपास की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव से बढी मुश्किलें
लखोटिया ने कहा कि कोरोना काल में कपास के दाम लगातार बढ़कर 55 हजार से 1.10 लाख रुपये प्रति गांठ (356) किलो हो गए थे। महंगे कपास से धागा भी महंगा हुआ था। कपास के दाम बढ़ने के दौरान कपड़ा कारोबारियों ने धागे के दाम और बढ़ने की आशंका में यह खूब खरीदा।
अब कपास के दाम घटकर 70-75 हजार रुपये गांठ पर आ गए हैं। जिससे धागा सस्ता होने से कपड़े की कीमत भी 28 रुपये से घटकर 22 रुपये प्रति मीटर रह गई है। कोरोना से पहले कीमत 18-19 रुपये मीटर थी।
लखोटिया कहते हैं कि कपास की कीमतों में उतार-चढ़ाव से अनिश्चितता का माहौल है। जिससे मई के बाद कारोबार में सुस्ती आई है। कारोबारी कपास के दाम और नीचे आने की उम्मीद में अब कपड़ा कम बनवा रहे हैं। हालांकि कपास की कीमतों में स्थिरता आने के साथ ही कपडे की बुनाई भी जोर पकड़ने की उम्मीद है।
बुरहानपुर पावरलूम बुनकर संघ के अध्यक्ष रियाज अहमद अंसारी कहते हैं कि महीने भर पहले रोजाना कपड़ा बुनने के लिए धागे का एक बंडल मिल जाता था। इन दिनों दो-तीन दिन में एक बंडल मिल रहा है। जिससे बुनकरों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो सकता है।
बुरहानपुर में बनने वाला टेक्सटाइल क्लस्टर
बुरहानपुर में 156 एकड़ में बनने वाले टेक्सटाइल क्लस्टर को राज्य सरकार ने मंजूरी दे दी है। सुखपुरी टेक्सटाइल क्लस्टर एसोसिएशन के चेयरमैन प्रशांत श्रॉफ ने बताया कि इस क्लस्टर को विकसित करने में 56 करोड़ रुपये खर्च होंगे। पहले यह राशि एसोसिएशन को खर्च करनी पड़ेगी और बाद में 20 करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में सरकार देगी। इस क्लस्टर में करीब 400 करोड़ रुपये का निवेश और 7,000 रोजगार पैदा होने की उम्मीद है। इस क्लस्टर में 250 इकाइयां लगने की संभावना है। जो कपड़े के कारोबार से ही संबंधित होगी।
श्रॉफ ने कहा कि अभी तक बुरहानपुर में ज्यादातर कपड़ा बुनने का ही काम होता है। कपड़ा प्रोसेस, साइजिंग व रेडीमेड कपड़ा बनाने का काम कम होता है। इस क्लस्टर के बनने के बाद बुरहानपुर के कपड़ा बुनने के साथ ही रेडीमेड कपड़ा निर्माण हब के रूप में भी उभरने की संभावना है। अभी बुरहानपुर में 20 से 25 कपड़ा प्रोसेस हाउस हैं। जिसमें डाइंग, ब्लीचिंग की जाती है और इतनी ही साइजिंग यूनिट हैं। जिनमें धागे को मजबूती देने के लिए इस पर स्टार्च व अन्य रसायन लगाया जाता है।