राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में देश में सबसे आगे होने का दावा करने वाली मध्य प्रदेश सरकार की पोल उस समय खुलती नजर आई।
जब भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में इस योजना को लागू करने में अनेक खामियां गिनाते हुए कहा है कि सभी पंजीकृत परिवारों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जा सका है जबकि अवयस्कों को भी जाब कार्ड में शामिल कर लिया गया है।
राज्य विधान सभा में हाल ही में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2 फरवरी 2006 से 18 जिलों में लागू इस योजना के तहत सभी पंजीकृत परिवारों को 100 का रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया। अपात्र कार्यों को क्रियान्वित करने से कार्य अपूर्ण पडे थे, निधियों को जारी करने में देरी और मजदूरी में भुगतान में देरी करने के प्रकरण भी सामने आए।
रिपोर्ट के अनुसार कुछ मामलों में जाब कार्ड पर परिवार के सदस्यों के फोटो चिपकाने में देरी हुई थी जबकि अवयस्कों को भी जाब कार्ड में शामिल कर लिया गया। रोजगार देने के लिए कोई वार्षिक कार्ययोजना अलग से तैयार नहीं की गई।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रोजगार मांग एवं रोजगार प्रदाय पंजी या तो संधारित नहीं की गई अथवा अपूर्ण रुप से संधारित की गई थी जिसके कारण वास्तविक रुप से रोजगार की मांग एवं रोजगार प्रदाय का पता नहीं किया जा सकता था। मस्टर रोलों की समीक्षा में पाया गया कि जॉब कार्ड में अवयस्कों को रोजगार दिया गया था।
राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में अनेक खामियां गिनाते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि जनपद तथा ग्राम पंचायत स्तर पर वर्ष 2006-07 में आंतरिक लेखा परीक्षा नहीं की गई जबकि योजना के कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण प्रारंभ नहीं किया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि विभाग इच्छित प्रयोजन की पूर्ति करने के लिए इस परियोजना का कार्यान्वयन मितव्यई, प्रभावशील तथा दक्ष ढंग से करने में असफल रहा क्योंकि पेंशन की गणना, वेतन सृजन तथा विभागों की बैंक पावतियों का समाधान इत्यादि जैसा अधिकांश महत्वपूर्ण काम हाथ से ही किया जाता रहा।
साफ्टवेयर में मध्यप्रदेश कोषागार नियमावली 27 के तहत अनियमित आहरणों आक्समिक देयकों एवं डुप्लीकेट देयकों को त्रुटिपूर्ण पारित करने की जांच करने के लिए कोई प्रावधान नहीं था जबकि राज्य वित्त अनुवीक्षण प्रणाली द्वारा जनित विभिन्न प्रतिवेदनों में त्रुटियां देखी गईं जिन्हे हाथ से सुधारने के लिए मजबूर होना पडा। मध्यप्रदेश में 53 जिला कोषागारों और 159 उपकोषागारों में अक्तूबर 2001 से एकीकृत कोषालय कम्प्यूटरीकरण परियोजना शुरु की गई थी।