कई लोगों का मानना है कि 6 से 8 अप्रैल तक आयोजित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक कोविड-19 महामारी फैलने के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण बैठक होगी। केंद्रीय बजट के ठीक बाद फरवरी में समिति ने रीपो और रिवर्स रीपो दरें क्रमश: 4 प्रतिशत और 3.35 प्रतिशत के स्तर पर अपरिवर्तित रखी थीं। समिति ने यह भी कहा कि आवश्यकता महसूस होने तक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) उदार रवैया जारी रखेगा। हालांकि फरवरी के बाद परिस्थितियां काफी बदल गई हैं। अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व स्वीकार कर चुका है कि महंगाई खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है और उसने इस पर अंकुश लगाने के लिए हरसंभव उपाय करने की बात कही है। फेडरल रिजर्व मार्च में ब्याज दर 25 आधार अंक बढ़ा चुका है और आगे भी इसमें वृद्धि संभावित है। 10 मार्च को यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने वित्तीय प्रोत्साहन वापस लेने की समय सीमा एक तिमाही कम कर दी। बैंक ने स्वीकार किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आर्थिक वृद्धि दर और महंगाई के अनुमानों में संशोधन की आवश्यकता होगी।
बैंक ऑफ इंगलैंड ने भी 16 मार्च को नीतिगत दर में 25 आधार अंक की वृद्धि की थी। उसका मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बढ़ती महंगाई लोगों की आय घटा सकती है और वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा साबित हो सकती है। युद्ध की वजह से आपूर्ति व्यवस्था प्रभावित होने से महंगाई एक प्रमुख समस्या बनती जा रही है। भू-राजनीतिक जोखिमों और तेल एवं अन्य वस्तुओं के दाम में बढ़ोतरी से अनिश्चितता और बढ़ रही है। फरवरी में मौद्रिक नीति समिति की बैठक के समय कच्चा तेल 90 डॉलर प्रति बैरल था मगर मार्च के शुरू में यह 139 डॉलर तक पहुंच गया था और इस समय 103 डॉलर प्रति बैरल के इर्द-गिर्द है।
अब कोविड महामारी थमने और आर्थिक गतिविधियों का हाल बताने वाले आंकड़े (विनिर्माण, सेवा और वस्तु और सेवा कर आदि) हालात पटरी पर लौटने की गति सुस्त रहने के संकेत दे रहे हैं। निजी निवेश में अब भी तेजी नहीं आई है। अगर इन तथ्यों पर विचार करने के बाद आरबीआई उदार रवैया जारी रखता है और नीतिगत दरें निचले स्तर पर बरकरार रखने का निर्णय करता है तो इसके खिलाफ कुछ तर्क दिए जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए भारत से निर्यात हाल तक मजबूत रहा था मगर अब युद्ध और दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा दरें बढ़ाने के बाद वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान कम किया जा रहा है। इससे भारत से निर्यात पर असर होगा और आयात महंगा हो जाएगा। इसका नतीजा बढ़े व्यापार घाटे के रूप में सामने आएगा। देश की वृद्धि दर को भी बहुत मजबूत नहीं कहा जा सकता है। निजी उपभोग व्यय (मांग) मार्च 2020 की तुलना में मार्च 2022 में कम हो गया है। संभवत: इसी वजह से आरबीआई को लगता है कि मांग की वजह से महंगाई नहीं बढ़ी है बल्कि यह आपूर्ति में आई बाधा का नतीजा है। फरवरी 2022 में खुदरा महंगाई आठ महीनों के उच्चतम स्तर 6.07 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। मगर दुनिया के विकसित देशों में महंगाई से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। उदाहरण के लिए अमेरिका में महंगाई चार दशकों के उच्चतम स्तर पर है जबकि ब्रिटेन में फरवरी में महंगाई मार्च 1992 के बाद से सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई। एक और ध्यान देने योग्य बात यह है कि आरबीआई बाजार से नकदी वापस खींचने के उपाय भी कर रहा है। उसने दूसरे केंद्रीय बैंकों से काफी पहले यह प्रक्रिया शुरू कर दी थी। 3.35 प्रतिशत के स्तर पर रिवर्स रीपो दर उपयोगी नहीं रह गई है क्योंकि वित्तीय प्रणाली से रकम वैरिएबल रेट ऑक्शन के जरिये कम की जा रही है और अल्प अवधि की दरें चार प्रतिशत के करीब पहुंच गई हैं।
सवाल है कि महंगाई को लेकर दूसरे केंद्रीय बैंकों की तुलना में आरबीआई का रुख किस तरह अलग रह सकता है? आरबीआई को निश्चित तौर पर महंगाई के अपने अनुमानों में संशोधन करना होगा। फरवरी में वित्त वर्ष 2023 के लिए केंद्रीय बैंक ने औसत महंगाई 4.5 प्रतिशत स्तर पर रहने का अनुमान जताया था। अब अधिकांश विश्लेषकों का कहना है कि यह 5.6 प्रतिशत या इससे अधिक रह सकती है। भारत में महंगाई अस्थायी नहीं है और चिंता वास्तविक लग रही है। समाचार माध्यमों में आ रही खबरों के अनुसार सरकार महंगाई से जुड़ी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए जीएसटी का पुनगर्ठन टाल सकती है। क्या आरबीआई महंगाई पर धैर्य रखकर आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ाने का दांव खेल सकता है?
गवर्नर शक्तिकांत दास कभी-कभार ही दिखने वाला संतुलन साधने का प्रयास कर रहे हैं। अगर आरबीआई फिलहाल उदार रुख जारी रखता है तो इससे मुझे कोई खास आश्चर्य नहीं होगा। यह वित्तीय प्रणाली में पर्याप्त नकदी की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा। आखिरकार सरकार ने वित्त वर्ष 2023 में बाजार से 14.31 लाख करोड़ रुपये सकल उधारी लेने की योजना बनाई है और इसका प्रबंधन आरबीआई को ही करना है। इनमें लगभग 60 प्रतिशत (8.45 लाख करोड़ रुपये) रकम चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में जुटाई जाएगी। ऐसे समय में जब सरकार ने इतने बड़े स्तर पर उधार लेने का मन बना लिया है तो क्या आरबीआई रंग में भंग डालना चाहेगा? संयोग से आरबीआई डॉलर सेल-बाई स्वैप (डॉलर की बिक्री और एक निश्चित अवधि के बाद इसकी खरीदारी) कर रहा है और बाजार से नकदी वापस ले रहा है। यह आरबीआई को अपने सरकारी प्रतिभूति खरीद कार्यक्रम के लिए खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) के जरिये बॉन्ड खरीदारी की गुंजाइश दे रहा है। इस तरह आरबीआई सरकार के उधारी कार्यक्रम को समर्थन दे सकता है। हालांकि इन बातों के बावजूद मौद्रिक नीति समिति रीपो और रिवर्स रीपो दरों के बीच अंतर कम करने के लिए रिवर्स रीपो दर बढ़ा सकता है और इसी दौरान उदार रुख भी जारी रख सकता है। यह बाजार को उतना परेशान नहीं करेगा क्योंकि इस कदम को अल्प अवधि की दर वृद्धि को औपचारिक रूप देना समझा जाएगा। वैरिएबल रेट रिवर्स रीपो ऑक्शन के जरिये यह पहले ही किया जा चुका है।