कर्नाटक में 244 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए चुनाव में करीब एक महीना ही बाकी है। इसलिए सभी पार्टियां चुनावों की अपनी रणनीतियां, वादे, जाति के समीकरण और मुद्दे तैयार करने में जुटी हैं।
कर्नाटक विधानसभा के लिए पिछले चुनाव मई 2018 में हुए थे और त्रिशंकु विधानसभा मिली थी। 104 सीट के साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी मगर बहुमत हासिल नहीं कर सकी। 80 सीट वाली कांग्रेस और 37 सीट वाली जनता दल सेक्युलर यानी जद (एस) ने चुनाव के बाद गठबंधन की सरकार बना ली और हरदनहल्ली देवेगौड़ा कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन जुलाई 2019 में दोनों पार्टियों के कई विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया और गठबंधन की सरकार गिर गई। उसके बाद भाजपा ने बूकनकेरे सिद्धलिंगप्पा येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाई। उन्होंने जुलाई 2021 में इस्तीफा दे दिया और राज्य की कमान बसवराज सोमप्पा बोम्मई के हाथ में आ गई।
कर्नाटक विधानसभा में इस समय सत्तारूढ़ भाजपा के 121 विधायक हैं। कांग्रेस के विधायकों की संख्या 70 है और उसकी सहयोगी जद (एस) के पास 30 विधायक हैं। लेकिन इस बार स्थिति काफी अलग है।
कर्नाटक के कम से कम दो सबसे कद्दावर नेता-सिद्धरमणहुंडी सिद्धरामे गौड़ा सिद्धरमैया और येदियुरप्पा – इस चुनाव के बाद चुनावी राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर चुके हैं।
कुमारस्वामी भी चुनावी राजनीति छोड़ने का संकेत दे चुके हैं मगर उनके समर्थकों का कहना है कि उन्होंने अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया है। कुछ मामलों में यह चुनाव सरकार गठन और राजनीतिक ताकत के लिहाज से जितना अहम है उतना ही अहम विभिन्न राजनीतिक दलों में उत्तराधिकार की योजना के लिहाज से भी है।
दांव पर बहुत कुछ
मगर बहुत कुछ और भी दांव पर लगा है। राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘जिन क्षेत्रों में भाजपा का दबदबा है, वहां वह अपने चरम पर पहुंच चुकी है। सत्तारूढ़ पार्टी को 2024 में कई राज्यों में झटका लगना तय है और उसकी भरपाई के लिए उसके पास बहुत कम गुंजाइश है। 2019 के लोकसभा चुनावों में उसने कर्नाटक में 26 सीटें (पार्टी के समर्थन से निर्दलीय द्वारा जीती गई सीट समेत) जीती थीं। यदि पार्टी उनमें से आधी भी हार जाती है तो देश में कहीं भी (तेलंगाना के अलावा) मौजूदा सीटों में इजाफा कर उस नुकसान की भरपाई करने की उम्मीद वह नहीं लगा सकती। उसे कर्नाटक पर अपनी पकड़ बनाए रखनी होगी।’
वह कहते हैं कि कांग्रेस के लिए भी बहुत कुछ दांव पर लगा है। यादव का कहना है, ‘कांग्रेस के लिए यह चुनाव जीतना बहुत जरूरी है। महाराष्ट्र में सत्ता गंवाने के बाद विपक्ष के बाद संसाधनों की बेहद कमी है और उसे कम से कम एक ऐसा धनी राज्य चाहिए, जहां के धनी लोग विपक्षी पार्टियों को चंदा देने में डरते नहीं हैं। इस समय कर्नाटक ही इकलौती संभावना है। राजनीतिक लिहाज से कहें तो कर्नाटक ही बताएगा कि कांग्रेस फिर उबरेगी या नहीं।’
मुद्दे
इस चुनाव में मुद्दे पिछले चुनावों से अलग नहीं हैं। येदियुरप्पा ने कहा है कि भाजपा को राज्य में अपनी सरकार के प्रदर्शन की बात करनी चाहिए। लेकिन पार्टी में दूसरे लोग मानते हैं कि स्कूली छात्राओं के लिए हिजाब, टीपू सुल्तान पर बहस और लव जिहाद जैसे दूसरे मुद्दे उठाना बेहतर होगा।
स्थानीय अखबारों के मुताबिक भाजपा राज्य इकाई के प्रमुख नलिन कुमार कतील ने मंगलूरु में पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा, ‘सड़क और नालियों जैसे छोटे मुद्दों की चर्चा मत कीजिए… अगर आपको अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है और अगर आप लव जिहाद रोकना चाहते हैं तो आपको भाजपा की जरूरत है।’
भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का भी भारी फायदा मिलने वाला है। पिछले छह महीनों में प्रधानमंत्री सात बार राज्य का दौरा कर चुके हैं।
कांग्रेस का कहना है कि भाजपा जितना प्रदर्शन की बात करेगी उतना ही विपक्षी पार्टी के लिए बेहतर रहेगा क्योंकि सत्तारूढ़ भाजपा भ्रष्टाचार में डूबी है। कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डोड्डलाहल्ली केंपेगौड़ा शिवकुमार ने कहा, ‘हमने राज्य में सरकारी ठेके हासिल करने के लिए कथित तौर पर कमीशन और घूस दिए जाने का मुद्दा लगातार उठाया है। हाल ही में भाजपा विधायक माडाल विरुपाक्षप्पा को रिश्वत के एक मामले में तुमकुरु में क्यातसंद्रा टोल प्लाजा के पास गिरफ्तार किया गया।’
उन्होंने कहा कि पार्टी के पास प्रशासन सुधारने की अच्छी तरकीबें हैं। शिवकुमार ने कहा, ‘कांग्रेस ने परिवार की हरेक महिला मुखिया को 200 यूनिट मुफ्त बिजली और 2,000 रुपये देने का वादा किया है। यदि बिजली की चोरी रुक जाए, यदि बिजली विभाग में 40 प्रतिशत भ्रष्टाचार रोक दिया जाए, अगर हम हजारों करोड़ रुपये का बकाया वसूल पाए तो कुछ भी असंभव नहीं है।’
क्षेत्र
भाजपा ने नया मोर्चा पार करने की ठान ली है – पुराना मैसूरु, मांड्या और हासन के क्षेत्र, जहां जनता दल (सेक्युलर) का वर्चस्व रहा है। इस क्षेत्र की 61 सीटों में से भाजपा 12 से ज्यादा कभी नहीं जीत सकी है। 2020 में दो उपचुनावों (मांड्या में कृष्णराजपेटे और तुमकुरु में सिरा) के अलावा पार्टी को इलाके में पैठ बनाने के लिए जूझना ही पड़ा है।
इसी तरह कांग्रेस को तटीय कर्नाटक में जीतने के लिए जोर लगाना होगा, जहां दो दशकों से भी ज्यादा समय से भाजपा उसे बुरी तरह पीट रही है।
एक छोटा खतरा और भी है। कई खनन घोटालों में हाथ होने के कारण चर्चा में आए रेड्डी बंधु जी जनार्दन रेड्डी (उर्फ बेल्लारी किंग) ने अपनी पार्टी शुरू कर दी है, जो बेल्लारी और मध्य कर्नाटक में 15-20 सीटों पर लड़ेगी। जिस चुनाव में एक-एक सीट अहम है, वहां रेड्डी बंधु किसके पाले में आएंगे, यह देखने की बात होगी।