भारतीय शेयर बाजार इस समय नई बुलंदियों पर पहुंच गया है। अर्थव्यवस्था में उम्मीद से अधिक सुधार, कंपनियों की लागत में भारी कमी, सस्ती ब्याज दरें और विदेशी निवेश की धारा बहने से घरेलू शेयर बाजार में उछाल जारी है। एक ऐसा भी समय आया था जब बाजार 40 प्रतिशत तक नीचे फिसल गया था। तेजी केवल भारतीय बाजारों तक ही सीमित नहीं है। कोविड-19 से बचाव के टीके पर सकारात्मक खबरें आने के बाद दुनिया भर में जोखिम भरी परिसंपत्तियों में भारी उछाल आई है। उदाहरण के लिए यूरोपीय शेयरों के लिए नवंबर अब तक का सबसे शानदार महीना रहा है, वहीं अमेरिकी शेयरों के लिए भी यह उन गिने-चुने अवसरों में एक रहा जब किसी एक महीने में उन्होंने दो अंकों में प्रतिफल दिए।
ऐसा लगता है कि कम समय में अधिक प्रतिफल देने वाले (ग्रोथ) एवं तकनीकी शेयरों से हटकर गैर-अमेरिकी शेयर बाजारों और बैंक, आर्थिक हालात पर निर्भर रहने वाले एवं जिंस शेयरों की तरफ झुकाव बढ़ा है और यह अपने शुरुआती चरण में है। अमेरिका मुद्रा डॉलर कई महीनों के निचले स्तर पर पहुंच गई है। जाहिर है, इसका सबसे अधिक लाभ तेजी से उभरते बाजारों को मिला है। वैश्विक बाजारों में भारी मात्रा में उपलब्ध नकदी की वजह से तेजी से उभरते बाजारों में निवेश बढ़ा है, लेकिन यह तो महज शुरुआत कही जा सकती है। इस समय एमएससीआई ईएम (इमर्जिंग मार्केट) सूचकांक में केवल पांच देशों- चीन, कोरिया, ताइवान, भारत और ब्राजील- की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से अधिक है।
इस बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था पर पैनी नजर रखने वाले सम्मानीय एवं ज्ञानवान लोगों की चिंतित करने वाली और नकारात्मक टिप्पणी भी सामने आ रही है। ऐसा नहीं है कि उन्होंने नकारात्मक पहलुओं पर अधिक ध्यान दिया है, वास्तव में देश की अर्थव्यवस्था और इसके परिदृश्य को लेकर उनकी चिंताएं जायज ही दिखती हैं। बुनियादी चिंता दीर्घ अवधि में भारत की वृद्धि दर को लेकर है। क्या वृद्धि दर 5 प्रतिशत से नीचे आ गई है? उनका मानना है कि हमारी समस्या राजकोषीय संरचना, कमजोर वित्तीय प्रणाली और निजी क्षेत्र से निवेश में कमी से जुड़ी है। उन्हें सरकार द्वारा शुल्क बढ़ाने से भी चिंता हो रही है। ये सभी बातें उन चुनौतीपूर्ण हालात की ओर इशारा कर रही हैं, जिनसे होकर हमारा देश पिछले कुछ वर्षों में गुजरा है। इसी समाचार पत्र में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक में भारत में जीडीपी/प्रति व्यक्ति (डॉलर में) आय की दर चक्रवृद्धि आधार पर केलव 3.2 प्रतिशत रही थी, जबकि इसके मुकाबले चीन में यह 9.2 प्रतिशत रही थी। एक दशक पहले चीन का जीडीपी/प्रति व्यक्ति आय अनुपात भारत का 3.3 गुना था, जो अब बढ़कर 5.5 गुना हो गया है।
ऐसा नहीं है कि वैश्विक निवेशक इन चिंताओं से वाकिफ नहीं है। भारत को लेकर उनका रवैया सतर्क रहा है। देश की अर्थव्यवस्था और वृद्धि दर से जुड़ी चिंताओं के बीच सकारात्मक पहलू तलाशने वाले लोगों की भी कमी नहीं है। अब यह स्पष्ट लग रहा है कि वित्त वर्ष 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी वापस करेगी। आधार प्रभाव और सामान्य गतिविधियां दोबारा शुरू होने से वृद्धि दर में जरूर तेजी दिखेगी। प्रश्न यह है कि उसके बाद क्या होगा? देश की अर्थव्यवस्था को लेकर जताई कुछ चिंताओं पर विचार किया जा सकता है। पिछले एक दशक में देश का वित्तीय तंत्र जिस हालत में था, उसके मुकाबले यह अब कहीं अधिक मजबूती स्थिति में है। अब सभी बैंकों ने बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाई है और उनके पास भरपूर रकम है। बड़ी कंपनियों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों से जुड़ी समस्या पकड़ में आ गई है और उनके समाधान भी दिए जा रहे हैं। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) का संकट भी अब थम गया है। बैंकों की मानें तो खुदरा और लघु एवं मझोले उद्यमों में कोविड-19 महामारी के बाद एनपीए का जोखिम पैदा नहीं हुआ है। कर्ज भुगतान टालने की छूट (मॉरेटोटिरयम), क्रेडिट गारंटी योजना आदि इसकी वजह हो सकती है, लेकिन कुल मिलाकर सभी बैंक ऋण लौटाने की उनकी निरंतरता देखकर काफी उत्साहित हैं। हालांकि कुछ रियायतें खत्म होने के बाद अगले कुछ महीनों में कर्ज भुगतान में रुकावट आ सकती है, लेकिन बैंकों को ऐसा नहीं लगता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कमजोर जरूर दिख रहे हैं, लेकिन उनका मुनाफा बढ़ रहा है।
नकदी की दिक्कत हमेशा एक समस्या रही है और इसके निपटने के लिए आवास दरें लगभग अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गई हैं। दरों में बदलाव के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में दरों में कमी के बाद मांग में उल्लेखनीय तेजी आई है। पिछले कुछ वर्षों में कमजोर मांग के मद्देनजर कुछ महीनों से थमी खरीदारी जोर पकडऩे से लंबे समय तक यह आर्थिक गतिविधियों में तेजी की कारण बनेगी।
कंपनियों के पूंजीगत व्यय के मोर्चे पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान पहली बार तेजी दिख रही है। आईसीआईसीआई बैंक ने हाल में ही अपने विश्लेषक सम्मेलन में कंपनियों द्वारा किए जाने वाले पूंजीगत व्यय में तेजी आने की चर्चा की थी। दूसरे बैंक भी इसी तरह की बात कह रहे हैं। बड़ी कंपनियों ने क्षमता विस्तार की कवायद शुरू कर दी है। उदाहरण के लिए अल्ट्राटेक सीमेंट ने अपने मौजूदा संयंत्र की क्षमता 2 करोड़ टन बढ़ाने की घोषणा की है। सीमेंट, इस्पात, रसायन, अक्षय एवं दवा खंडों में क्षमता विस्तार की प्रक्रिया में तेजी आई है। प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी प्रवाह भी अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। कोविड-19 से पहले के मुकाबले बड़ी एवं कुशल प्रबंधन वाली कंपनियां क्षमता विस्तार को लेकर अधिक उत्साह दिखा रही हैं। हालांकि यह फिलहाल शुरुआती स्तर पर है, लेकिन हालत सुधरने के स्पष्ट संकेत मिलने लगे हैं।
सरकार ने विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए भी प्रयास किए हैं। इसी दिशा में शुरू की गई उत्पादन-संबद्ध योजना (पीएलआई) कम से कम मोबाइल फोन के लिए तो पूरी समझदारी वाला कदम लग रहा है। इस योजना ने पूरी दुनिया का ध्यान इसने अपनी तरफ खींचा है। दूसरे क्षेत्रों के लिए इस योजना का ढांचा परखा जा सकता है, लेकिन यह बदलाव लाने वाली पहल साबित हो सकती है। मैंने पहले कभी देश की किसी सरकार को कारोबारी माहौल सुधारने पर इतना केंद्रित होते और चर्चा करते नहीं देखा था। कारोबारी माहौल सुधारने के लिए कई कदम उठाए गए हैं और आगे और कदम उठाए जाएंगे। उद्योग जगत से मिल रही प्रतिक्रियाओं के अनुसार इनमें सभी कदम प्रभावी साबित नहीं हुए हैं, लेकिन सुधार तो जरूर दिखा है।
एक दूसरा बड़ा बदलाव कंपनी स्तर पर हुआ है। कोविड-19 के दौरान कंपनियों ने लागत में जिस तरह कमी की है वह हैरान करने वाली है। ऐसी ज्यादातर कंपनियों का लगता है कि उन्होंने संरचनात्मक रूप से लागत कम कर ली है और उत्पादकता में सुधार कर लिया है। वे कोविड-19 से पूर्व की तरह ही राजस्व में मुनाफे की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत तक रखने का लक्ष्य लेकर चल रही हैं। वित्त वर्ष 2022 में अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ राजस्व में सुधार से मुनाफा बढऩा चाहिए।
एक दूसरा पहलू पूंजी आवंटन है। उदाहरण के तौर पर टाटा समूह पर विचार किया जा सकता है। चेयरमैन एन चंद्रशेखरन के नेतृत्व में समूह पूंजी पर प्रतिफल और मुनाफे पर अधिक ध्यान दे रहा है। महिंद्रा समूह और कुछ दूसरे बड़े कारोबारी समूहों में भी कुछ ऐसा ही रहा है। निवेश की गई पूंजी, नकदी प्रवाह और पूंजी आवंटन पर अधिक जोर साफ दिख रहा है। कंपनियों के व्यवहार में आए इस बदलाव को बाजार का भी साथ मिल रहा है। पूंजी आवंटन पर जोर यूं बना रहा तो शेयर पर प्रतिफल और बढ़ेगा। यह रुझान फिलहाल एकदम शुरुआती स्तर पर है, लेकिन कंपनियों के साथ हो रही चर्चाओं और व्यवहार में यह बात स्पष्ट रूप से दिख रही है।
बाजार भी स्पष्ट संदेश भेज रहा है। वित्त वर्ष 2022 में वृद्धि दर उछलेगी और मंदडिय़ों की उम्मीद से अधिक ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी। बाजार में तेजी इस बात का संकेत दे रही है कि सुधार की रफ्तार का आधार पुख्ता रहेगा। इसके साथ ही पूंजी पर प्रतिफल और मुनाफे में नाटकीय रूप से सुधार होगा। भय एवं चिंताओं से बाजार को आगे निकलते देख कई लोग तेजडिय़ों की बातों पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। कम से कम तेजडिय़ों की यह बात जरूर उन्हें माननी चाहिए कि बाजार कुछ सकारात्मक बातों की ओर इशारा जरूर कर रहा है। भारत में अक्सर बाजार को जुआघर समझ कर इसे खारिज कर दिया जाता है और इसके संकेतों को नजरअंदाज किया जाता है। वैश्विक स्तर पर शेयर बाजार को एक प्रमुख आर्थिक संकेतक के तौर पर देखा जाता है। नीति निर्धारक बाजार की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। अब चीजें स्पष्ट तौर पर बदल गई हैं। केवल समय ही बताएगा कि उत्साहित बाजार और मंदडिय़ों में किसका आकलन सही है। 12 महीने काफी दिलचस्प होने जा रहे हैं।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं।)