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  लेख  युद्ध की रणनीतियां फिर से लिखे जाने की जरूरत
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युद्ध की रणनीतियां फिर से लिखे जाने की जरूरत

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता | नई दिल्ली—August 30, 2022 10:07 PM IST0
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रूस-यूक्रेन युद्ध सातवें महीने में प्रवेश कर गया है और इस युद्ध में कई विशेषज्ञों के पूर्वानुमान का गलत निकलना आंखें खोल देने वाला है। रूस ने फरवरी में यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू की थी, उस समय कई विशेषज्ञों ने अनुमान जताया था कि रूस की सेना कुछ हफ्तों में आसानी से युद्ध जीत लेगी।
 

सभी आंकड़े रूस को बढ़त दिखा रहे थे। रूस की जनसंख्या 3.5 गुना ज्यादा है। रूस की जनसंख्या 14.4 करोड़ है जबकि यूक्रेन की 4.4 करोड़ है। इसी तरह रूस की प्रति व्यक्ति आय चार गुना ज्यादा थी। साल 2021 में रूस की प्रति व्यक्ति आय 10,219 डॉलर जबकि यूक्रेन की 2,450 डॉलर थी। इनसे युद्ध में फर्क पड़ता है और छोटे व गरीब देश की युद्ध जीतने की संभावना नगण्य होती है।
 

रूस के पास परमाणु हथियार होने के साथ-साथ ही पारंपरिक हथियारों में सर्वोच्चता प्राप्त है। यूक्रेन की नौसेना तुलनात्मक रूप से इतनी छोटी है कि उसकी बात करना भी बेमानी है। यूक्रेन की नौसेना की पहुंच भी बहुत सीमित है। यूक्रेन के पास छोटी व पारंपरिक हथियारों वाली वायुसेना है और कहीं से भी विशालकाय रूसी वायुसेना के आसपास भी नहीं है। रूस के पास अत्याधुनिक हथियार व हेलीकॉप्टर हैं। यूक्रेन की तुलना में रूसी हथिायार व तोपखाना छह गुना बढ़ा है।
 

हाल यह है कि रूस ने यूक्रेन का डिजिटल मानचित्र भी बना लिया है जिसमें यूक्रेन की एक-एक मीटर जमीन को दर्शाया गया है। इसका मतलब यह है कि रूस सैन्य अभियान की बहुत अच्छी योजना भी बना सकता है। ऊपर से रूस विश्व में तेल, गैस और धातुओं का सबसे बड़ा उत्पादक है। उसके पास आधारभूत संरचना के बुनियादी तत्त्व प्रचुरता में हैं। ऐसे में यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि रूस अपनी सेनाओं को तेजी से एक जगह से दूसरी जगह, खराब होने वाले यंत्रों को सहजता से बदल सकता है और गोला बारूद कम होने पर आसानी से उसे पहुंचा सकता है। टैंक से सैन्य कार्रवाई करने के लिए यूक्रेन का भूगोल उपयुक्त है क्योंकि यूक्रेन में चंद ही प्राकृतिक अवरोधक जैसे नदियां आदि हैं। यूक्रेन की सरजमीं ऐसी है कि मशीनों से सैनिकों को तेजी से एक-जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। लेकिन अगर हम द्वितीय विश्वयुद्ध का इतिहास देखें तो इस क्षेत्र में सबसे लंबा युद्ध खींचा था।
 

युद्ध शुरू होने पर आम राय से इस मुद्दे के इर्द गिर्द नीतियां बनाई जा रही थीं : यूक्रेन पर रूस का कब्जा होने के बाद विश्व क्या करेगा? इसके बाद रूस का अगला कदम क्या होगा?
 

लेकिन हम रूसियों की तरफ से जुझारूपन की कम प्रवृत्ति और आश्चर्य रूप से अक्षमता का भाव देखते हैं। इससे रूस के उद्देश्य अब सीमित हो गए हैं। रूस की रणनीति यह है कि पूर्वी यूक्रेन को धीरे-धीरे काटकर अलग किया जाए और शहरी क्षेत्रों को गोलाबारी कर तबाह कर प्रतिरोधक क्षमता कम करना है। हालांकि यूक्रेन की सेना नाटो से मिले अत्याधुनिक हथियारों के बूते रूसी सेना को अत्यधिक नुकसान पहुंचा रहा है।
 

इस युद्ध में द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह हवाई जहाजों से बमों की बारिश नहीं की जा रही है। यह युद्ध प्रथम विश्व युद्ध के खंदक में लड़े जाने वाले युद्ध के करीब है। इससे एक छोटे से क्षेत्र में कब्जा करने के लिए बहुत ज्यादा कीमत अदा करनी पड़ेगी। पहले के पूर्वानुमान गलत निकल जाने के कारण भविष्य में होने वाली घटनाओं का अनुमान करना मुश्किल हो गया है।
 

रूस अभी भी अपने लक्ष्यों को हासिल (जो भी हों) को प्राप्त कर सकता है लेकिन उसे इसके लिए कहीं ज्यादा कीमत अदा करनी पड़ सकती है। इस युद्ध ने यूक्रेन में बहुत तबाही मचाई है और इस तबाही से उबरने में यूक्रेन को बरसों लग जाएंगे। उधर इस युद्ध के कारण रूस का घरेलू उत्पादन आधिकारिक रूप से चार प्रतिशत घट गया है और यह लड़ाई जारी रहने पर यह और गिरेगा। यदि वैश्विक संदर्भ में बात की जाए तो यूक्रेन के युद्ध का असर सीमाओं से परे पड़ा है। यूक्रेन से गेहूं का निर्यात बाधित होने के कारण अफ्रीका भुखमरी के मुहाने पर आ गया है और रूस से गैस की आपूर्ति बाधित होने के कारण पश्चिमी यूरोप बेहद खराब ठंड को झेल रहा है। वैश्विक स्तर पर धातुओं, सेमीकंडक्टर, कागज सहित अन्य कई वस्तुओं की आपूर्ति की श्रृंखला टूट गई है।
 

वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला बनाने के जोड़ तोड़ के प्रयास जारी हैं लेकिन इसके सार्थक परिणाम नहीं आ रहे हैं। इस शृंखला को बनाने में समय लगेगा और इसका जलवायु परिवर्तन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। जैसे जर्मनी ने परमाणु ऊर्जा के लिए संयंत्रों को बनाने का काम रोककर पारंपरिक कोयला ईंधन बिजली संयंत्रों की ओर लौटने का विचार कर रहा है। भूराजनैतिक परिदृश्य पर सोशल मीडिया नया आयाम जोड़ रहा है। सभी पक्षों से सूचना और गलत सूचनाओं का प्रवाह बढ़ गया है। लड़ाई उस घनी आबादी में पहुंच चुकी है जहां हरेक के पास स्मार्टफोन है और उसकी सोशल मीडिया तक पहुंच है। दर्जनों पेशेवर पत्रकार, हजारों सैनिक छोटे-छोटे युद्धग्रस्त क्षेत्रों से रिपोर्टिंग कर रहे हैं। सोशल मीडिया ने युद्ध क्षेत्र से बाहर आने वाली सूचनाओं को अपने अनुसार बदल दिया है। लोग सोशल मीडिया पर अपनी सोच के अनुसार सूचनाएं डाल रहे हैं। इनमें से कुछ लोगों को कुछ मामलों में सतही जानकारी तक नहीं है लेकिन वे लोग अपनी व्यक्तिगत परेशानियों जैसे  महंगाई और बेरोजगारी से उपजी पीड़ा के अनुसार टीका टिप्पणी कर रहे हैं। दूसरी तरफ विश्व की बहुत बड़ी आबादी चुनाव में मतदान करती है। ऐसे में राजनीतिज्ञ चुनाव जीतने के लिए इन टीका टिप्पणियों का स्वाभाविक रूप से इस्तेमाल कर सकते हैं।
 

कई विशेषज्ञों के अनुमान गलत निकल जाने के कारण युद्ध की रणनीतियों को नए सिरे से लिखे जाने की जरूरत है। क्यों थिंक टैंक, सेना विशेषज्ञों और नीतियों की समीक्षा करने वालों का अनुमान गलत निकल गया? उनसे कहां चूक हुई? 1960 के दशक में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ एनलाई से फ्रांसीसी क्रांति (जो 1789 में हुई थी) की सफलता के बारे में सवाल पूछा गया था। चाउ ने कहा था कि इस बारे में बताना जल्दबाजी होगी। लिहाजा हमें 21वीं सदी में तेज व कम अस्पष्ट जवाब चाहिए, अन्यथा नीतिगत प्रतिक्रियाएं गलत होंगी और वे बहुत देर से आएंगी।

यूक्रेनरूसरूस-यूक्रेन युद्ध
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